Tuesday, April 21, 2009

हाय मंहगाई है! हाय मंहगाई है!

हाय मंहगाई है! हाय मंहगाई है!
शोर चहुंओर सुनाई रहा जोर जोर
काम-धाम कोई नहीं, लोग बेहाल हैं,
मालामाल जो पहले थे अभी फटेहाल हैं।
शेयर का गेयर फंसा है मोटर गाड़ी में,
फैशन को छोड़छाड़ महिला है साड़ी में।
डेटिंग भी नेट पर है कौन जाय होटल में
बिल बहुत आवत है टुटपुजिंया होटल में।
घरमा नहीं हल्दी है घरमा नहीं मिर्चा है।
लेइलेउ लोन संइयां कहीं से उधार में
खर्चा स्कूटर का उतना ही पड़े बलम
इसलिए हम घूमेंगे टाटा नैनों कार में।
'शिशु' कहें शर्म के मारे बुरा हाल है
बड़े बड़े अफसर की बदल गयी चाल है।

जबसे मैंने नया जूता खरीदा है मेरी चाल बदल गयी है

जबसे मैंने नया जूता खरीदा है
मेरी चाल बदल गयी है
पर जमाने की चाल वही है
दोस्त कहते हैं कि
मैं बायें पैर पर ज्यादा वजन डालने लगा हूं।
बात यह है कि
दाहिने पैर की तकलीफ टालने लगा हूं।
(सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता जूता-2 से साभार)

Wednesday, April 15, 2009

अर्थ का अनर्थ

आचार्य जी उपदेश दे रहे हैं-आत्मा अमर है। इस संसार में जो भी आया है जायेगा। लेकिन कोई भी इंसान मरता नहीं। बस एक चोला छोड़ा और दूसरा पकड़ा। मतलब। मतलब यह कि आत्मा अमर है। अब यह चोला शब्द जो है स्त्री और पुरूष दोनों के लिए प्रयोग में लाया जाता है, जबकि देखा जाय तो पुरूष के लिए चोला और स्त्री के लिए चोली होना चाहिए। लेकिन हमें अर्थ का अनर्थ नहीं करना है इसलिए इसे चोला ही कहना ठीक होगा।

खुशबू और बदबू दो अलग-अलग शब्द हैं। शहरी और पढ़े-लिखे लोग इसे बखूबी समझते हैं। लेकिन उन भोले-भाले गांव देहात के निवासियों के लिए अभी भी इसका एक ही शब्द है। वे इसे महक कहते हैं। यदि खुशबू है तो वे इसे कहते हैं कि क्या अच्छी महक है और यदि कहीं से बदबू आ रही है तो वे उसे भी महक कहते हैं लेकिन थोड़ा नाक सिकोड़ कर, क्या अजीब सी महक आ रही है। शहरी लोगों के सामने यदि कोई इसे कहे तो वे तो यही कहेंगे कि क्या अर्थ का अनर्थ कर रहे हो यार।

अर्थ का अनर्थ करने में यदि देखा जाय तो पुरूष कहीं महिलाओं की तुलना में आगे हैं। अब KLPD को ही ले लीजिए, किसी वैज्ञानिक से इसका अर्थ पूछेंगे तो वह किसी धातु का शूक्ष्म रूप ही बतायेगा। किसी इंगिलिष विज्ञान से पूछेंगे तो वह अलग-अलग शब्दों द्वारा इसका वर्णन करेगा, और यदि किसी महिला से पूछेंगे तो वह कहेगी- (K)क्या (L)लौट आये (P)पुराने (D)दिन। लेकिन अब यदि यही किसी सयाने पुरूष से पूछेंगे तो वह इसका अर्थ का अर्नथ कर देगा ।

मुझे
तो इस अर्थ के अनर्थ से यह समझना है कि क्या अर्थ के अनर्थ को करने वाले ज्यादा पढ़े-लिखे होते हैं क्या अनर्थ का अर्थ बताने वाले ज्यादा समझदार। सवाल का इंतजार है।

Wednesday, April 1, 2009

हैपी अप्रैल फूल..............

मित्र ने बधाई दी, कहा हैपी अप्रैल फूल,
सेम टू यू कहकर मैं भी हो गया कूल।
मैंने कहा क्या सेम टू यू बोलना ज़रूरी है?
उसने कहा बेवकूफ ज़रूरी नहीं, यह तो मजबूरी है,
क्योंकि जो भी पश्चिमी त्यौहार है,
उससे हम हिन्दुस्तानियों को प्यार है।
अरे मिया तुम क्या समझोगे,
तुमसे तो बोलना ही बेकार है।
इसलिए कि तुम अभी भी 20वीं सदी में जी रहे हो
बाजार में कब की इंग्लिश ही आ गयी तुम अभी देशी ही पी रहे हो
आदमी कहां से कहां पहुंच गया
नासमझ भी अंग्रेजी समझ गया
तुम अभी तक झूलेलाल ही रहे, तुम्हें कुछ नहीं पता
इसलिए कह रहा हूं अंग्रेजी सीख और हिंदी को बता धता
तभी पढ़े-लिखे कहलाओगे
नहीं तो गंवार हो और गंवार ही कहलाओगे।