Thursday, June 25, 2009
तुम काम के हो मेरे तुम मांगलो इनाम
तुम काम के हो मेरे तुम मांगलो इनाम
तुम सत्य बोलते रहे तुम सत्य के गुलाम
मैं झूठ बोल जीत गया तुमको मेरा सलाम
तुम घूम - घूम कर करते रहे प्रचार
मैं भरी भीड़ बोला बस हो गया प्रचार
तुम जेल से हो डरते तुम्हे जेल का मलाल
मैं जेल जैसे पहुँचा बस हो गया कमाल
पहचान जाओगे अगर मैं कौन हूँ क्या नाम?
लिखकर मुझे बताना बस लिखना मेरा काम
Tuesday, June 16, 2009
लड़ता देख हम दोनों को बिल्ली चट कर गयी मलाई!
कुत्ता कुत्ते से बोला ये, क्यूँ लड़ता मेरे भाई,
लड़ता देख हम दोनों को बिल्ली चट कर गयी मलाई!
गधा मनुष्य को देखकर बोला मीठे बैन,
हम तो चलो गधे हैं दादा तुम हो क्यूँ बेचैन!
चिडिया घर में शेर देखकर बन्दर बोला बानी
मैं तो चलो शरारत करता तुमने क्या की थी शैतानी
देखि जीत ओबामा की माया जी थीं बोलीं
अब तक यूपी था मेरा अब दिल्ली मेरी होली
देखि गरीबी ग्राफ से प्रोग्रामर ये बोला
तुम सब बैठ के बज़ट बनाओ मैं फैलाता झोला
Sunday, June 14, 2009
चार दिनों से घंटी वाली मीटिंग में था भाई
चार दिनों से घंटी वाली मीटिंग में था भाई
इसीलिये मन की बातें ना ब्लॉग में हैं कह पाई
घंटी से होती शुरुआत घंटी बजी तो होती रात
घंटी बजते खाना होता घंटी बज जाती तो बात
घंटी वो भी देशी ना थी इसीलिये बैठना जरूरी
कुछ तो अपने मन से बोले कुछ लोगों की थी मजबूरी
घंटी घंटों के हिसाब से अपना काम कराती
जैसे ही कुछ देर करी तो घंटी थी बज जाती
घंटी बोली कार्यालय को रखो व्यवस्थित हर दम
हर मैनुअल को स्वयं बनाओ करो सुचारू हर दम
इस घंटी वाली मीटिंग में कुछ बड़बोले आते
बात सही थी पता ना उनको पर बोले ही जाते
'शिशु' का मकसद था बस इतना आपको यह बतलाऊं
रहा कंहा इतने दिन तक मै सच - सच बात बताऊँ
Tuesday, June 2, 2009
हे संसद के देवता तुमसे मेरी आस...............
कोटि-कोटि तुमको नमन, तुमसे है अरदास,
हे संसद के देवता तुमसे मेरी आस!
बिजली, पानी गाँव में पहुंचा दो सरकार,
सड़क बना दो देल्ली जैसी तुमसे है दरकार!
काम दिलादो गाँव में, हो जैसी जिसकी शिक्षा,
मांग रहा हक़ आपसे नहीं समझना भिक्षा!
गमन-आगमन हो सुगम ऐसा करो उपाय,
रेल चले या ना चले बस लेकिन चल जाय!
कसम तुम्हे जो दी गयी उसपर खरे उतरना,
लाज ना जाये कुर्सी की ऐसा कुछ न करना!
विनती अंतिम एक है, हे संसद के देव,
रोटी, घर, कपडा मिले उत्तम स्वस्थ सदैव!
गलत कहा यदि दास ने तो देव रखो ये ध्यान,
क्षमा करो 'शिशु' समझ कर या अज्ञानी जान!
Monday, June 1, 2009
जरूर-जरूर मिलेंगे जरूरी नहीं.........
मिलेंगे इसलिए नहीं कोई मजबूरी नहीं है!
इशारों- इशारों में अब बात कम ही होती है,
क्यूंकि दोनों के बीच अब वो दूरी नहीं है!
दूरियां बांटी है मोबाइल और लिविंग रिलेशन ने
आगे और सुनो मियां बात अभी पूरी नहीं है!
फिल्मे भी कम ज्ञान नहीं देती दीवानों को,
प्यार कैसे करें सिखाते हैं ज़माने को,
अब लैला और मजनू कोई नहीं बनता,
मौका मिला एक दूसरे को फ़ौरन बदलता,
अब प्यार के लिए फैशन भी जरूरी है,
ब्रांड इसलिए पहना क्यूंकि मजबूरी है!
हाँ हमारे ज़माने की और बात थी
'शिशु' वो बात यंहा बताना जरूरी नहीं है!