पढिगे पूत कुम्हार के सोलह दूनी आठ,
घूमते बर्तन लेकर हाट,
जमाते गधे पे अपनी ठाठ.
बोलता मुझसे सुन दद्दा,
रात को मैं पीता अद्धा,
शहर में ख़ाक कमाते हो,
गाँव तो खाली आते हो,
मूछ ऊपर से घोट दई,
शर्म भी शहर में बेंच दई,
जब तक इंग्लिश ना लाओगे,
पढ़े तुम नहीं कहाओगे.
कहा तब मैंने सुन कल्लू
अबे तू तो पूरा लल्लू
बोल मैं इंग्लिश लेता हूँ
टैक्स सरकार को देता हूँ
मुझे कम्पूटर भी आता
बैंक में है मेरा खाता.
सुन कल्लू ये बोला बैन
तभी दिखते हो तुम बेचैन
मोह माया में तुम पड़ते
बात पर अपनी ही अड़ते
साथ में क्या कुछ जाएगा
कमाएगा क्या पायेगा
शहर में ब्याह रचाया हूँ
पढी घर बीबी लाया हूँ
हमारे घर साजो सामान
समझ कल्लू तू कहना मान
सुना है सब मैंने भाई
शहर की बीबी जो आई
चाय तुमसे बनवायेगी
पार्टी में वो जायेगी
पढोगे कल्लू तभ ही कार
तुम्हारे घर पर आयेगी
पढ़ाई है असली सम्मान
तुम्हे ये भाई भायेगी
अभी गधहे पर बैठे हो
तभी तो गधे कहाते हो
काम करते ना कोई खाश
अधिक पैसे ना पाते हो
उसे समझाया घंटे चार
हो गए सारे सब बेकार
दुबारा मैं समझाऊंगा
द्वार कल्लू के जाऊंगा.
Thursday, January 28, 2010
Wednesday, January 27, 2010
ये सूरत सांवली-सलोनी अति विधाता ने जो दीन्ही है...
ये सूरत सांवली-सलोनी अति विधाता ने जो दीन्ही है,
गोरी बनने को मुख पाउडर लगावेंगी.
पहनेगी ऊँची हील की सैंडिल,
लगाके क्लिप बालों में नागिन सी बनजावेंगी.
घूमेंगी अमीनाबाद हज़रत महल पार्क,
गुड एंड शाक कहकर हांथ मिलावेंगी.
कहें 'शिशु' कल को यही सुंदरियाँ अपने को
विश्व सुन्दरी कहालावेंगी.
गोरी बनने को मुख पाउडर लगावेंगी.
पहनेगी ऊँची हील की सैंडिल,
लगाके क्लिप बालों में नागिन सी बनजावेंगी.
घूमेंगी अमीनाबाद हज़रत महल पार्क,
गुड एंड शाक कहकर हांथ मिलावेंगी.
कहें 'शिशु' कल को यही सुंदरियाँ अपने को
विश्व सुन्दरी कहालावेंगी.
प्रजापति की पिकनिक में जमा हुए कुछ वीर,
प्रजापति की पिकनिक में जमा हुए कुछ वीर,
सबसे पहले पहुंचे रेलवे अधिकारी भाई 'सत्यवीर'.
उसके बाद हेमेंटेच के मालिक जो 'हेमंत' 'सुनीता',
'हर्ष' और 'स्वागत' से जिनने दिल सबलोगों का जीता.
'दीपक' सूरज बनकर आया मौसम बन गया अच्छा,
जगतपिता 'जगदीश' आये फिर लेकर बीबी बच्चा.
दिखलाई 'प्रसाद' ने 'प्रतिभा' बेटा-बेटी के संग आये,
देखा जब 'स्वत्रंत' को सबने हर्षित होकर सब मुस्काये,
पुलिश प्रसाशन था मुस्तैद जब आये 'शिवराज'
आये 'विनय' 'प्रजापति मालिक' छोड़ घरेलू काज
शादी का विज्ञापन देते बिलकुल ही जो मुफ्त
'राठोर जी' 'गोला' संग आये दिखते बिलकुल चुस्त
हंसते रहते हैं 'दुष्यंत' राज है इसमें कुछ भारी,
अगली मीटिंग में आयेंगे बात जान लूँगा सारी,
'इन्द्रजीत' गरजे बन इन्द्र सिंघासन धरती के डोले,
कान लगाकर सुना सभी ने जब 'राजेन्द्रजी' बोले
'अच्छे लाल' हैं दिल के अच्छे इसीलिये मन भाते
देखा मीटिंग में जब भी तो सबके बाद वही आते
कठिन पढ़ाई वाले भाई सौम्य सभ्य से दिखते
नाम याद है नहीं मुझे पर अब डॉक्टर हैं लिखते
दीपक भाई उनका नाम लिखकर जरा बताना
अगली मीटिंग में जब आना उन्हें साथ में लाना
आईटीआई थे पर बीटेक 'हरिराम' जी ने कर डाला
छोटे पद से मैनेजर बन सबको हैरत में डाला
पुत्र 'प्रवीण' गर्व से बोला पिता ही असली मार्ग दिखाते
जब भी होती कोई मुश्किल हल वो उसका हमें बताते
सिविल परीक्षा की तैयारी में लगा हुआ 'संदीप'
प्रजापति परिवार में कर देगा रोशन वो दीप
'अजय' ने बोला राजनीति में क्यूँ पड़ते हो भाई
राजेंद्र जी बोले यारों इस बिन संभव नहीं लडाई
'वर्मा' जी ने अपना गुस्सा जोर-शोर से दिखलाया
बोले मैसेज मैं करता पर मैसेज पर ना कोई आया
क्यूँ समाज है अबतक पिछड़ा कारण जरा बताना
विनय, सत्यवीर फिर बोले असल बात पर सब आना
सत्यवीर जी ने फरमाया गाँव में जाना बहुत जरूरी
वहीं पता तब लग पायेगा क्या है असली मजबूरी
'पुष्पा जी' का खाना खाने केवल ही 'शिशु' आया था
मगर 'सुनीता जी' का खाना भी कुछ कम ना भाया था
'प्रतिभा जी' ने फिर सबको था बारी-बारी खूब परोसा
मिलेगा अगली मीटिंग में भी मुझको तो है यही भरोसा,
नाम याद ना 'चावल वाली दीदी' मैं तो बोलूँगा
अगली मीटिंग में उनके खाने का डिब्बा खोलूँगा
भूल हुयी लिखने यदि कुछ 'शिशु' समझ जी करना माफ़
माफ़ करोगी मुझे पता है अलग और से हैं सब आप
सबसे पहले पहुंचे रेलवे अधिकारी भाई 'सत्यवीर'.
उसके बाद हेमेंटेच के मालिक जो 'हेमंत' 'सुनीता',
'हर्ष' और 'स्वागत' से जिनने दिल सबलोगों का जीता.
'दीपक' सूरज बनकर आया मौसम बन गया अच्छा,
जगतपिता 'जगदीश' आये फिर लेकर बीबी बच्चा.
दिखलाई 'प्रसाद' ने 'प्रतिभा' बेटा-बेटी के संग आये,
देखा जब 'स्वत्रंत' को सबने हर्षित होकर सब मुस्काये,
पुलिश प्रसाशन था मुस्तैद जब आये 'शिवराज'
आये 'विनय' 'प्रजापति मालिक' छोड़ घरेलू काज
शादी का विज्ञापन देते बिलकुल ही जो मुफ्त
'राठोर जी' 'गोला' संग आये दिखते बिलकुल चुस्त
हंसते रहते हैं 'दुष्यंत' राज है इसमें कुछ भारी,
अगली मीटिंग में आयेंगे बात जान लूँगा सारी,
'इन्द्रजीत' गरजे बन इन्द्र सिंघासन धरती के डोले,
कान लगाकर सुना सभी ने जब 'राजेन्द्रजी' बोले
'अच्छे लाल' हैं दिल के अच्छे इसीलिये मन भाते
देखा मीटिंग में जब भी तो सबके बाद वही आते
कठिन पढ़ाई वाले भाई सौम्य सभ्य से दिखते
नाम याद है नहीं मुझे पर अब डॉक्टर हैं लिखते
दीपक भाई उनका नाम लिखकर जरा बताना
अगली मीटिंग में जब आना उन्हें साथ में लाना
आईटीआई थे पर बीटेक 'हरिराम' जी ने कर डाला
छोटे पद से मैनेजर बन सबको हैरत में डाला
पुत्र 'प्रवीण' गर्व से बोला पिता ही असली मार्ग दिखाते
जब भी होती कोई मुश्किल हल वो उसका हमें बताते
सिविल परीक्षा की तैयारी में लगा हुआ 'संदीप'
प्रजापति परिवार में कर देगा रोशन वो दीप
'अजय' ने बोला राजनीति में क्यूँ पड़ते हो भाई
राजेंद्र जी बोले यारों इस बिन संभव नहीं लडाई
'वर्मा' जी ने अपना गुस्सा जोर-शोर से दिखलाया
बोले मैसेज मैं करता पर मैसेज पर ना कोई आया
क्यूँ समाज है अबतक पिछड़ा कारण जरा बताना
विनय, सत्यवीर फिर बोले असल बात पर सब आना
सत्यवीर जी ने फरमाया गाँव में जाना बहुत जरूरी
वहीं पता तब लग पायेगा क्या है असली मजबूरी
'पुष्पा जी' का खाना खाने केवल ही 'शिशु' आया था
मगर 'सुनीता जी' का खाना भी कुछ कम ना भाया था
'प्रतिभा जी' ने फिर सबको था बारी-बारी खूब परोसा
मिलेगा अगली मीटिंग में भी मुझको तो है यही भरोसा,
नाम याद ना 'चावल वाली दीदी' मैं तो बोलूँगा
अगली मीटिंग में उनके खाने का डिब्बा खोलूँगा
भूल हुयी लिखने यदि कुछ 'शिशु' समझ जी करना माफ़
माफ़ करोगी मुझे पता है अलग और से हैं सब आप
Tuesday, January 26, 2010
'शिशु' देश के नर-नारी सब करते जिसकी पूजा
नींद ना आती रात-बिरात दिखते दिन में सपने,
जब भी सुनते उसका नाम, लगते हैं सब जपने,
चारों ओर दिखाई देती बस उसकी ही छाया,
कहते हैं तकदीर में ना है सब उसकी है माया.
होती पलक बंद जब भी, तो देखें तेरी ही मूरत
दर्पण में खुद को जब देखें, देखें तेरी ही सूरत
नैनो में 'नैनो' बन बसती, माल में दिखती माल
प्रभू मिलादो उससे जल्दी करदो आज कमाल
'शिशु' देश के नर-नारी सब करते जिसकी पूजा
'धन्ना' की बेटी है 'धन्नो' नाम ना उसका दूजा
जब भी सुनते उसका नाम, लगते हैं सब जपने,
चारों ओर दिखाई देती बस उसकी ही छाया,
कहते हैं तकदीर में ना है सब उसकी है माया.
होती पलक बंद जब भी, तो देखें तेरी ही मूरत
दर्पण में खुद को जब देखें, देखें तेरी ही सूरत
नैनो में 'नैनो' बन बसती, माल में दिखती माल
प्रभू मिलादो उससे जल्दी करदो आज कमाल
'शिशु' देश के नर-नारी सब करते जिसकी पूजा
'धन्ना' की बेटी है 'धन्नो' नाम ना उसका दूजा
Tuesday, January 5, 2010
किसे भिखारी की संज्ञा दें? किसको बोलूँ राजा...,
होते कौन महान लोग हैं?
किसको लोग पूजते,
कौन लोग मेहनती कहाते?
काम से कौन जूझते।
किसकी धाक शहर में चलती?,
गाँव का होता नेता कौन,
कितना पढ़ा लिखा नेता हो?,
इस उत्तर पर क्यूँ सब मौन।
किसे भिखारी की संज्ञा दें?
किसको बोलूँ राजा,
किसकी बासी खबर बताएं?
किसकी बोलें ताज़ा।
कौन काम ऑफिस में करता,
कौन है करता फुल आराम,
किसको पैसे ज्यादा मिलते
किसको कम मिलता है दाम?
प्रश्न बहुत हैं उत्तर कम क्यूँ?
इसका भी उत्तर बतलाना,
पता लगे यदि इन प्रश्नों का
लिखकर 'शिशु' को जरा बताना।
किसको लोग पूजते,
कौन लोग मेहनती कहाते?
काम से कौन जूझते।
किसकी धाक शहर में चलती?,
गाँव का होता नेता कौन,
कितना पढ़ा लिखा नेता हो?,
इस उत्तर पर क्यूँ सब मौन।
किसे भिखारी की संज्ञा दें?
किसको बोलूँ राजा,
किसकी बासी खबर बताएं?
किसकी बोलें ताज़ा।
कौन काम ऑफिस में करता,
कौन है करता फुल आराम,
किसको पैसे ज्यादा मिलते
किसको कम मिलता है दाम?
प्रश्न बहुत हैं उत्तर कम क्यूँ?
इसका भी उत्तर बतलाना,
पता लगे यदि इन प्रश्नों का
लिखकर 'शिशु' को जरा बताना।
Sunday, January 3, 2010
अंकल जी पर है चढ़ी नए साल की मस्ती...
अंकल जी पर है चढ़ी नए साल की मस्ती,
आंटी जी को घुमा रहे इस बस्ती* उस बस्ती,
इस बस्ती उस बस्ती उम्र का किया न कोई लिहाज़
बच्चों जैसी हरकत करते घूमें अंकल-अंटी आज
'शिशु' कहें दोस्तों नाचो-गाओ सब त्यौहार मनाओ
पर अंकल-आंटी जैसी पीने की मस्ती ना लाओ
*(बियर बार)
पार्क घूम कर आया कल मैं बीबी भी थी साथ,
लड़के-लड़की घूम रहे थे डाल हांथ में हांथ,
डाल हांथ में हांथ शर्म हम दोनों को थी आती,
लड़की कान लगा लड़के के घंटो थी बतियाती,
'शिशु कहें ये फ़िल्मी कल्चर, या प्रगति हुयी है भारी
या असभ्य से सभ्य हो गए आज के सब नर-नारी।
आंटी जी को घुमा रहे इस बस्ती* उस बस्ती,
इस बस्ती उस बस्ती उम्र का किया न कोई लिहाज़
बच्चों जैसी हरकत करते घूमें अंकल-अंटी आज
'शिशु' कहें दोस्तों नाचो-गाओ सब त्यौहार मनाओ
पर अंकल-आंटी जैसी पीने की मस्ती ना लाओ
*(बियर बार)
पार्क घूम कर आया कल मैं बीबी भी थी साथ,
लड़के-लड़की घूम रहे थे डाल हांथ में हांथ,
डाल हांथ में हांथ शर्म हम दोनों को थी आती,
लड़की कान लगा लड़के के घंटो थी बतियाती,
'शिशु कहें ये फ़िल्मी कल्चर, या प्रगति हुयी है भारी
या असभ्य से सभ्य हो गए आज के सब नर-नारी।
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