Sunday, May 31, 2009

झूठा सभी जानते उसको फिर भी भाव सभी देते.........

दिन भर झूठ बोलता रहता
काम नहीं करता कोई
सत्य को झूठ बोलता चलता
झूठ भी झूठ कहे वो ही

झूठ बोलकर मिली नौकरी
झूठे उसके काम
झूठ खुशामद करता रहता
झूठे ही करता बदनाम

झूठ मूठ की करे लडाई
झूठा रोके झूठ दिखाता
रोज देर से ऑफिस आता
झूठ बोलकर के बच जाता

झूठे रूठ सभी से जाता
झूठ बोलदो मान भी जाता
काम करे जो गलत ही करता
झूठ बोल सब कुछ पा जाता

झूठा सभी जानते उसको
फिर भी भाव सभी देते
झूठ बोलकर उस झूठे से
अपना काम करा लेते

Thursday, May 28, 2009

अजीब शहर है ये, लोग बेगाने से लगते हैं

अजीब शहर है ये, लोग बेगाने से लगते हैं,
अपना यंहा कोई नहीं, सभी सयाने से लगते हैं।
मै खोजता हूँ वो जगह जंहा कुछ राहत मिले,
वर्दीधारी लोग वंहा से भी भगाने लगते हैं।
जिधर भी जाओ भीड़-भाड़ है, सोचता हूँ पैदल चलूँ,
पर कार वाले सड़क पर हड़काने लगते हैं।
सोचता हूँ कुछ सोकर वक्त गुजारूं,
रात को ऑफिस वाले जगाने लगते हैं।
देखने का मन करता है पुरानी इमारतें,
जब जाओ तो वंहा कुछ न कुछ बनाने लगते हैं।
दिल करता है जीभर कर रोऊँ,
लेकिन लोग आकर हँसाने लगते हैं।
'शिशु' यंहा किसी को कुछ पता नहीं,
फिर भी आकर समझाने लगते हैं।

Wednesday, May 27, 2009

मै गधा हूँ मुझे गधा ही रहने दीजिये

मै और मेरा गधा अक्सर ये बातें करते हैं,
कि काश मै गधा और तू इंसान होता,
मैं एसी में बैठता और तू सामान ढोता
मै यह सुनकर खुश होता कि
इंसान के रूप में भी उसे गधा कहा जाता
और मै जो वास्तव में एक गधा होता
मुझसे यह देख कर बड़ा मजा आता
कि इंसानों का मालिक जो काम कराता है
वह वास्तव में गधे के मालिक से अधिक ही कराता है
हां गधा काम करे या ना करे,
उसे डंडे जरूर पड़ते हैं
और उधर यह क्या कम है
जो गधा अभी इंसान है,
उसे मालिक तो मालिक
उसके चमचों से भी हाथ जोड़ने पड़ते हैं।
एक बात और इंसान को दाल रोटी के लाले पड़े हैं
क्यूंकि जंहा अनाज है वंहा ताले जड़े हैं
गधे को क्या बस काम करते जाओ
आजकल खेतों में भूषा वैसे ही नहीं होता
इसलिए इंसान कि तरह अनाज खाते जाओ
गधे का नाम भी हमेशा एक सा रहता है
इसलिए कि वह गधा है गधा ही रहता है
अब देखो मेरा गधा जो इंसान बन बैठा था
मेरे पास आया और बोला
बोला क्या, एक रहस्य खोला
हे मनुष्य हम गधे ही अच्छे क्यूंकि
तब भी मै गधा था और अब भी मुझे गधा कहा जाता
इसलिए मुझसे यह गम सहा नहीं जाता
आप इंसान हैं आपको पद और पदवी से लगाव है
इसलिए आप मेरी पदवी ले लीजिये
मै गधा हूँ मुझे गधा ही रहने दीजिये
मै गधा हूँ मुझे गधा ही रहने दीजिये

यदि दिल को सुकून मिलता है तो गाना गाना ही चाहिए

अक्सर लोग कहते हैं कि-
मनुष्य को हमेशा आशावाद में जीवन बिताना चाहिए,
बात बने या ना बने
फिर भी उसे बनाना चाहिए,
काम भले ही छोटे किये हों
उन्हें बड़ा बना कर बॉस को बताना चाहिए,
खुद झूठ बोलो
और दूसरों को सत्य का पाठ पढाना चाहिए,
गलती भले ही प्रेमिका ने की हो
लेकिन बॉस, उसे तुम्हे ही मनाना चाहिए,
गंगा - यमुना में पानी भले ही साफ़ न हो
फिर भी हर पर्व-त्यौहार उसमे नहाना ही चाहिए,
क्या फर्क पड़ता है यदि गाना नहीं आये
यदि दिल को सुकून मिलता है तो गाना गाना ही चाहिए,
'शिशु' तो ऐसे ही लिखते रहते हैं
क्यूंकि उसे तो बस लिखने का बहाना चाहिए

Tuesday, May 26, 2009

अब देखिये रात में हो रही बात है

क्या बात है?
आजकल हर किसी से हो रही मुलाकात है
दिल में अजीब सी खलबली मची है
क्यूंकि, यह पता नहीं किसकी करामात है
कि जबकि पास थे वो उनका नाम तक नहीं याद था
और अब जब मै भूल गया उनको, तब बन गए ऐसे हालात हैं
कि मुलाकात हो रही है,
वो भी ऐसे मौसम में जबकि झमाझम बरसात है
सोचते थे कि दिन में मिलेगें दोस्त
अब देखिये रात में हो रही बात है

Friday, May 22, 2009

कठिन काम गार्ड का है बाहर ही बैठा रहता

कठिन काम गार्ड का है बाहर ही बैठा रहता,
गर्मी, सर्दी, बरसातों की असली मार है सहता

घंटे १२ ड्यूटी करता, हरदम हँसता जाता
फिर भी अन्दर वालों से वह पैसा कम ही पाता

कहीं भूल से कोई अन्दर बिना पूछ कोई जाता
अगले दिन ही मालिक की वह कड़ी डांट पा जाता

भूल से भी यदि कहीं रात में नीद उसे आ जाती
अगले दिन की उसकी काम से छुट्टी कर दी जाती

'शिशु' की विनती ऑफिस से उसको कूलर दिलवादो
कुछ पैसा हम लोग लगायें कुछ ऑफिस से दिलवादो

Thursday, May 21, 2009

रूठ गई प्रेमिका सहेली ने बताया है

रूठ गई प्रेमिका, सहेली ने बताया है,
पहला प्रेम पता चला, पहली ने बताया है,

पहली को दरियागंज दूसरी को संगम में,
'दिलवाले' एक नही कई बार दिखाया है!

पहली को दिल्ली हाट, दूजी देख रही बाट,
अगले दिन उसको भी लोधी पार्क लाया है!

सोने की पालिश के कुंडल दिए पहली को,
कही रूठ जाए ना वही दिए अगली को!

'शिशु' कहें यही प्यार अब दिल्ली में दीखता है,
छोटा भाई बड़े से यह मुफ्त में ही सीखता है!

Wednesday, May 20, 2009

बड़ी लगन करके पप्पू ने, दूजे पप्पू से पिण्ड छुड़ाया

शौख़ एक ऐसा चर्राया
वोट डालने की ठानी।
बहुतों ने कितना समझाया
बात किसी की ना मानी।।

नाम से पप्पू पहले ही था
इसीलिए पप्पू पद छोड़ा।
जनरल डिब्बे में जा बैठा
भीड़-भाड़ में ही दौड़ा।।

जेब कटी और बैग भी टूटा
लेकिन हिम्मत ना हारी।
दूजा पप्पू अब ना बनना
कोशिश उसकी थी जारी।।

शहर से कस्बा जैसे पहुंचा
बस में भीड़-भाड़ भारी।
दूजा साधन था एक टैम्पो
उसमें थी मारा-मारी।।

कोस एक पैदल ही चल गया
नशा वोट का था ऐसा।
भरी धूप में ऐसा लगता
मौसम हो बरखा जैसा।।

मां जी बोली खाना खाओ
पप्पू देर हुई भारी।
पप्पू बोला पहले वोट
उसके बाद बात सारी।।

वोट डाल 'शिशु' जैसे आया
स्याही का निशान मन भाया।
बड़ी लगन करके पप्पू ने
दूजे पप्पू से पिण्ड छुड़ाया।।