शौख़ एक ऐसा चर्राया
वोट डालने की ठानी।
बहुतों ने कितना समझाया
बात किसी की ना मानी।।
नाम से पप्पू पहले ही था
इसीलिए पप्पू पद छोड़ा।
जनरल डिब्बे में जा बैठा
भीड़-भाड़ में ही दौड़ा।।
जेब कटी और बैग भी टूटा
लेकिन हिम्मत ना हारी।
दूजा पप्पू अब ना बनना
कोशिश उसकी थी जारी।।
शहर से कस्बा जैसे पहुंचा
बस में भीड़-भाड़ भारी।
दूजा साधन था एक टैम्पो
उसमें थी मारा-मारी।।
कोस एक पैदल ही चल गया
नशा वोट का था ऐसा।
भरी धूप में ऐसा लगता
मौसम हो बरखा जैसा।।
मां जी बोली खाना खाओ
पप्पू देर हुई भारी।
पप्पू बोला पहले वोट
उसके बाद बात सारी।।
वोट डाल 'शिशु' जैसे आया
स्याही का निशान मन भाया।
बड़ी लगन करके पप्पू ने
दूजे पप्पू से पिण्ड छुड़ाया।।
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