अभी-अभी मैंने यह जाना, मैं हूँ क्यूँ इतना बेढंगा,
अभी समझ में मेरे आया पहले मैं था क्यूँ चंगा।
उससे पहले मैं था नेक, ऐसा सभी बोलते हैं,
अभी सभी वो दोस्त हमारे मेरा भेद खोलते हैं।
इससे पहले मैंने भी तो सबको भ्रम में था डाला,
उससे पहले उनका भी तो मुझसे पड़ा नही पाला।
अभी, कभी कुछ लोग मुझे फिर पहले सा ना देते भाव,
मैं भी तो उनसब लोगो से ना लेता मिलने में चाव।
पर ये बातें ठीक न होती इससे बढ़ जाती कटुता,
इसीलिये 'शिशु' शिशु से कहते ख़ुद का मान भी है घटता।
Thursday, September 17, 2009
जबसे शेर-सियार संग-संग पूजा करने हैं जाते
जबसे कोयल ने कौवे को अपना भाई मान लिया,
तबसे उसकी भी बोली को सबने कर्कश मान लिया।
जबसे उल्लू और चमगादड़ दोस्त-दोस्त कहलाये,
तबसे उल्लू और चमगादड़ फूटी आंख नही भाये।
जबसे शेर-सियार संग-संग पूजा करने हैं जाते,
तबसे हिरन-मेमना दोनों उस रस्ते से ना आते।
जबसे एस.सी-एस. टी. दोनों दलित कहाए हैं,
तबसे ही एस.सी-एस. टी. हर दल को भाये हैं।
जबसे गधे और घोड़े में फर्क नही समझा जाता,
तबसे खच्चर सोच रहे क्यूँ उनसे काम लिया जाता।
जबसे 'शिशु' ने मान लिया मेरे अन्दर कमजोरी है,
तबसे 'शिशु' ने उसे भागने की कोशिश की पूरी है।
तबसे उसकी भी बोली को सबने कर्कश मान लिया।
जबसे उल्लू और चमगादड़ दोस्त-दोस्त कहलाये,
तबसे उल्लू और चमगादड़ फूटी आंख नही भाये।
जबसे शेर-सियार संग-संग पूजा करने हैं जाते,
तबसे हिरन-मेमना दोनों उस रस्ते से ना आते।
जबसे एस.सी-एस. टी. दोनों दलित कहाए हैं,
तबसे ही एस.सी-एस. टी. हर दल को भाये हैं।
जबसे गधे और घोड़े में फर्क नही समझा जाता,
तबसे खच्चर सोच रहे क्यूँ उनसे काम लिया जाता।
जबसे 'शिशु' ने मान लिया मेरे अन्दर कमजोरी है,
तबसे 'शिशु' ने उसे भागने की कोशिश की पूरी है।
बंद-बंद लोग चिल्लाते बंद न मुझे पसंद, बंद से जी घबराता
बंद-बंद लोग चिल्लाते
बंद न मुझे पसंद,
बंद से जी घबराता
उठता प्रात रात ना सोता
जगता जब अधरात न भाता
बंद बंद ...............
छुट्टी-छुट्टी लोग कहे
ड्यूटी से डरते रहते
काम न पास धेले का फिर भी
बहुत काम है कहते सबको रहते
मैं भी ख़ुद चिल्लाता
बंद बंद ...............
घंटे आठ काम ना करते
हरदम इधर-उधर की करते
हाय! हाय! बोलते कहते
काम तले मेरा दम घुटता
१२ घंटे काम करे फिर
शनिवार खुद ही आ जाता
बंद बंद ...............
अब क्या होगा! अब क्या होगा!
सुनसुनकर दम घुटता
एक-एक पल क्या?
रात-बिरात न कटता
हटता पीछे
फिर आ डटता
रात को जाकर फिर आजाता
बंद बंद ...............
क्या तनख्वाह मिलेगी?
कब तक?
जब तक ऑफिस चलता!
नही-नही बात ख़ुद मैं ही
अपनी बदलता
काम नही कुछ काश पास
अपने हाथ स्वयं के हाथ मलता
कुछ इधर - उधर टहलता
पर मुझको न ये भाता
बंद बंद ...............
बंद न मुझे पसंद,
बंद से जी घबराता
उठता प्रात रात ना सोता
जगता जब अधरात न भाता
बंद बंद ...............
छुट्टी-छुट्टी लोग कहे
ड्यूटी से डरते रहते
काम न पास धेले का फिर भी
बहुत काम है कहते सबको रहते
मैं भी ख़ुद चिल्लाता
बंद बंद ...............
घंटे आठ काम ना करते
हरदम इधर-उधर की करते
हाय! हाय! बोलते कहते
काम तले मेरा दम घुटता
१२ घंटे काम करे फिर
शनिवार खुद ही आ जाता
बंद बंद ...............
अब क्या होगा! अब क्या होगा!
सुनसुनकर दम घुटता
एक-एक पल क्या?
रात-बिरात न कटता
हटता पीछे
फिर आ डटता
रात को जाकर फिर आजाता
बंद बंद ...............
क्या तनख्वाह मिलेगी?
कब तक?
जब तक ऑफिस चलता!
नही-नही बात ख़ुद मैं ही
अपनी बदलता
काम नही कुछ काश पास
अपने हाथ स्वयं के हाथ मलता
कुछ इधर - उधर टहलता
पर मुझको न ये भाता
बंद बंद ...............
Monday, September 7, 2009
शराब!
शराब!
बाप पिए तो ठीक, बेटा पिए ख़राब!
जुआरी!
कभी न जीते, कभी न माने हारी!
समाज सेवा!
काम से साथ पैसे की मेवा!
बॉस का दूत!
मुखबिरी की पूरी छूट!
बाप पिए तो ठीक, बेटा पिए ख़राब!
जुआरी!
कभी न जीते, कभी न माने हारी!
समाज सेवा!
काम से साथ पैसे की मेवा!
बॉस का दूत!
मुखबिरी की पूरी छूट!
Wednesday, September 2, 2009
मेरी पीड़ा की, मेरे इस विछोह की...
इतनी मुख्तर-सी मुलाकात भला
क्या राहत दे सकती है
जबकि वह समय करीब है,
जब मुझे तुमसे विदा लेनी होगी...
वह घड़ी आ चुकी है
अच्छा तो अलविदा-अलविदा...
यह सनाकपूर्ण कविता, यह विदाई कविता
जिसे मैं लिख रहा हूँ तुम्हारे एल्बम में...
संभवतः यही एकलौती निशानी होगी
मेरी पीड़ा की, मेरे इस विछोह की...
(यह प्रसिद्ध कविता रूस के महान कवि एम्.वाई. लोमोर्तोव ने लिखी थी...जिसको हिन्दी में संवाद प्रकाशन, मेरठ ने 'उसका अनाम प्यार' किताब में छापा है। मैंने इसे कई बार पढ़ा है।)
क्या राहत दे सकती है
जबकि वह समय करीब है,
जब मुझे तुमसे विदा लेनी होगी...
वह घड़ी आ चुकी है
अच्छा तो अलविदा-अलविदा...
यह सनाकपूर्ण कविता, यह विदाई कविता
जिसे मैं लिख रहा हूँ तुम्हारे एल्बम में...
संभवतः यही एकलौती निशानी होगी
मेरी पीड़ा की, मेरे इस विछोह की...
(यह प्रसिद्ध कविता रूस के महान कवि एम्.वाई. लोमोर्तोव ने लिखी थी...जिसको हिन्दी में संवाद प्रकाशन, मेरठ ने 'उसका अनाम प्यार' किताब में छापा है। मैंने इसे कई बार पढ़ा है।)
चिठ्ठी लिखकर जरा दिखाओ क्या होता है मैनेजमेंट?
पहला प्रश्न पूछता तुमसे
अपने बारे में बतलाओ?
उसके बाद टेस्ट फिर होगा
तब तक बैठ के खाना खाओ!
अबतक कितना अनुभव पाया
कितना कंहा मिला पैसा?
सब हिसाब खुलकर बतलाओ
काम किया कैसा - कैसा?
भाषा कितनी आती तुमको
ये भी जरा बताना?
क्या तुमको कम्पूटर आता
इसको नही छिपाना?
पढी पढाई कैसी-कैसी
साफ़-साफ़ समझाओ?
हेरा-फेरी कितनी आती
ये भी तुम बतलाओ?
चिठ्ठी लिखकर जरा दिखाओ
क्या होता है मैनेजमेंट?
किसको कंसल्टेंट रखोगे
किसको करोगे परमानेंट?
अभी काम जो बड़ा किया है
उसका भेद बताओ?
कैसे बड़ा काम वो था
ये भी तुम समझाओ?
आप यंहा पर आते हो तो
पहला काम करोगे क्या?
अपने अनुभव से तुम बोलो
ऑफिस को दोगे क्या - क्या?
अपने बारे में बतलाओ?
उसके बाद टेस्ट फिर होगा
तब तक बैठ के खाना खाओ!
अबतक कितना अनुभव पाया
कितना कंहा मिला पैसा?
सब हिसाब खुलकर बतलाओ
काम किया कैसा - कैसा?
भाषा कितनी आती तुमको
ये भी जरा बताना?
क्या तुमको कम्पूटर आता
इसको नही छिपाना?
पढी पढाई कैसी-कैसी
साफ़-साफ़ समझाओ?
हेरा-फेरी कितनी आती
ये भी तुम बतलाओ?
चिठ्ठी लिखकर जरा दिखाओ
क्या होता है मैनेजमेंट?
किसको कंसल्टेंट रखोगे
किसको करोगे परमानेंट?
अभी काम जो बड़ा किया है
उसका भेद बताओ?
कैसे बड़ा काम वो था
ये भी तुम समझाओ?
आप यंहा पर आते हो तो
पहला काम करोगे क्या?
अपने अनुभव से तुम बोलो
ऑफिस को दोगे क्या - क्या?
Tuesday, September 1, 2009
प्रार्थना - २ - संकट घड़ी
हे इन्टरवियू लेने वाले तुमको मेरा प्रणाम
दाम की बात बाद में होगी पहले दे दो काम
आप पूछना जो भी चाहो खुलकर सभी बताऊंगा
ज्वाइनिंग की कोई बात नही, जब कह दो आ जाऊंगा
आप सर्वज्ञाता हैं दाता समझ हमारे आया है
और आपका हँसता चेहरा भी मेरे मन भाया है
पर दो बातें दास आपसे कहता है कर जोर
धीरे से बस बात बताना नही मचाना शोर
आफिस का एक समय बता दो, दूजा कब तक काम करूँगा
जिससे कहोगे डर जाऊंगा जिससे कहोगे नही डरूंगा
अन्तिम विनती एक है साफ़-साफ़ बतलाना
मुझे रखोगे या दूजे को अभी यहीं बतलाना
दाम की बात बाद में होगी पहले दे दो काम
आप पूछना जो भी चाहो खुलकर सभी बताऊंगा
ज्वाइनिंग की कोई बात नही, जब कह दो आ जाऊंगा
आप सर्वज्ञाता हैं दाता समझ हमारे आया है
और आपका हँसता चेहरा भी मेरे मन भाया है
पर दो बातें दास आपसे कहता है कर जोर
धीरे से बस बात बताना नही मचाना शोर
आफिस का एक समय बता दो, दूजा कब तक काम करूँगा
जिससे कहोगे डर जाऊंगा जिससे कहोगे नही डरूंगा
अन्तिम विनती एक है साफ़-साफ़ बतलाना
मुझे रखोगे या दूजे को अभी यहीं बतलाना
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