Tuesday, May 4, 2010

कौन हो जो मौन होकर जुल्म सहते जा रहे...

कौन हो? जो मौन होकर
जुल्म सहते जा रहे, 
काम करते हो कठिन तुम-
पर न वेतन पा रहे.  

दौर है अब चापलूसों का- 
सुनो हे मौनधारी,
इसलिए अबसे अभी तू-
बन उन्ही का तू पुजारी

और यदि तू बोलता है 
भेद यदि तू खोलता है 
तो समझ पछतायेगा
फिर सैलरी की बात मत कर- 
हाथ कुछ ना आयेगा 

यदि बात मेरी मानता है 
काम जितना जानता है 
उसको पूरा कर ख़तम 
खुद भी तू जी अब शान से-
मान से अभिमान से 

सुन दूसरो के काम में 
और उनके दाम में 
तू न कर अब से सितम
अब काम कर अपना ख़तम.
अब काम अपना कर ख़तम

2 comments:

  1. आपके तेवर में आग है
    कविता में ये आग ऊर्जा भारती है और संप्रेषण को प्रभावी बनाती है
    यह ऊर्जा बनी रहे...........

    बहुत अच्छी कविता
    बधाई !

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  2. अच्छी सोच जो देश और समाज को सही दिशा दिखाने के काम आ सकती है / गरीबों की रोटी ये भ्रष्ट मंत्री खा रहे हैं /

    आशा है आप इसी तरह ब्लॉग की सार्थकता को बढ़ाने का काम आगे भी ,अपनी अच्छी सोच के साथ करते रहेंगे / ब्लॉग हम सब के सार्थक सोच और ईमानदारी भरे प्रयास से ही एक सशक्त सामानांतर मिडिया के रूप में स्थापित हो सकता है और इस देश को भ्रष्ट और लूटेरों से बचा सकता है /आशा है आप अपनी ओर से इसके लिए हर संभव प्रयास जरूर करेंगे /हम आपको अपने इस पोस्ट http://honestyprojectrealdemocracy.blogspot.com/2010/04/blog-post_16.html पर देश हित में १०० शब्दों में अपने बहुमूल्य विचार और सुझाव रखने के लिए आमंत्रित करते हैं / उम्दा विचारों को हमने सम्मानित करने की व्यवस्था भी कर रखा है / पिछले हफ्ते अजित गुप्ता जी और इस हफ्ते अदा जी उम्दा विचारों के लिए सम्मानित की गयी हैं /

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