बिन अदालत औ मुवक्किल के मुकदमा पेश है!!
आँख में दरिया है सबके
दिल में है सबके पहाड़
दिल में है सबके पहाड़
आदमी भूगोल है जी चाह नक्शा पेश है!
क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है!
क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है!
हैं सभी माहिर उगाने
में हथेली पर फसल
औ हथेली डोलती दर-दर, बनी दरवेश है में हथेली पर फसल
क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है!
क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है!
क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है!
क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है!
(उपरोक्त कविता स्वर्गीय श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की लिखी हुए है, इसे मैंने कई बार पढ़ा है.)
पेड़ हो या आदमी
फर्क कुछ पड़ता नहीं
लाख काटे जाइये जंगल हमेशा शेष है, फर्क कुछ पड़ता नहीं
क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है!
प्रश्न जितने बढ़ रहे हैं
घट रहे उतने ज़वाब
होश में भी एक पूरा देश ये बेहोश है!घट रहे उतने ज़वाब
क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है!
खूटियों पर ही टंगा
रह जायेगा क्या आदमी?
सोचता, उसका नही यह खूटियों का दोष है. रह जायेगा क्या आदमी?
क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है!
(उपरोक्त कविता स्वर्गीय श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की लिखी हुए है, इसे मैंने कई बार पढ़ा है.)
प्रश्न जितने बढ़ रहे हैं
ReplyDeleteघट रहे उतने ज़वाब
होश में भी एक पूरा देश ये बेहोश है!
क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है!
खूटियों पर ही टंगा
रह जायेगा क्या आदमी?
सोचता, उसका नही यह खूटियों का दोष है.
क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है!
इतनी जबरदस्त कविता पढवाने का आभार ।