फुर्सत मिलती नही आजकल,
हरपल काम है रहता।
देर-सबेर पहुंचता घर तब,
घर पर डांट मैं सहता।
चैटिंग भी कर ना सकता मैं,
फोन से बात नही होती।
सत्य बात ये बतलाता घर,
फिर भी तू-तू -में-में होती।
दोस्त सभी नाराज हो गए,
कहते तुम बन गए अधिकारी।
इसी तरह यदि रहा और दिन,
निश्चित टूटेगी यारी।
नयी नौकरी मिली है जब से,
गाँव भी जाना नही हुआ।
लाया था खरीद एक पुस्तक,
उसको भी हाँ नही छुआ।
तेरह है तारीख आखिरी,
अगले महीने जो आयेगी।
उसके बाद मिलेगी फुर्सत,
'शिशु' तभी बात हो पायेगी।
Tuesday, October 27, 2009
Saturday, October 24, 2009
कवि कल्पना करता है यदि रात भी दिन जैसा होता.......
कवि कल्पना करता है यदि रात भी दिन जैसा होता,
सोते दिन में जो कुछ लोग, उनका हाल बुरा होता।
और जिन्हें ना आती नीद, उनके मजे खूब होते,
जैसे दिन भर जगते हैं वो वैसे रात नही सोते।
ऑफिस में जो देर रात तक करते काम बेचारे लोग,
उनको मिलता छुटकारा भी खुशी मनाते वो सब लोग।
बिना रोशनी होता काम बिजली भी बच जाती
उस बिजली से गाँव देहात में और रोशनी आती।
उल्लू और चमगादड़ दोनों जब जी करता सोते,
बिल्ली कुत्ते तंग न करते रात में ना वो रोते।
सोते दिन में जो कुछ लोग, उनका हाल बुरा होता।
और जिन्हें ना आती नीद, उनके मजे खूब होते,
जैसे दिन भर जगते हैं वो वैसे रात नही सोते।
ऑफिस में जो देर रात तक करते काम बेचारे लोग,
उनको मिलता छुटकारा भी खुशी मनाते वो सब लोग।
बिना रोशनी होता काम बिजली भी बच जाती
उस बिजली से गाँव देहात में और रोशनी आती।
उल्लू और चमगादड़ दोनों जब जी करता सोते,
बिल्ली कुत्ते तंग न करते रात में ना वो रोते।
Thursday, October 15, 2009
सभी हादसे भूल गए हम फिरसे दीप जलाएंगे..,
सभी हादसे भूल गए हम फिरसे दीप जलाएंगे।
आशाएं हों जीवन में,
मानवता हो हर मन में,
बैर-भाव न हो मन में,
ऐसे गीत ही गायेंगे...
सभी हादसे भूल गए हम फिरसे दीप जलाएंगे।
रोशन हो सब हर घर द्वार,
भव से हो जाएँ सब पार,
नही कहीं हो मारा-मार,
ऐसे भाव ही लायेंगे...
सभी हादसे भूल गए हम फिरसे दीप जलाएंगे।
हे प्रभु! हे अल्ला! हे ईश!
ऐसी तुम देना आशीष,
बैर न हो मन में जगदीश,
सबको गले लगायेंगे...
सभी हादसे भूल गए हम फिरसे दीप जलाएंगे।
हो सबकी दीवाली अच्छी,
झूठ न बोलें, बोलें सच्ची,
रहे भावना हरदम अच्छी,
'शिशु' तभी मिठाई खायेंगे...
सभी हादसे भूल गए हम फिरसे दीप जलाएंगे।
Tuesday, October 6, 2009
करवाचौथ का पूरा मर्म उसे समझ अब आया है
राजाराम पी रहे दारू, उधर उर्मिला भूखी-प्यासी,
क्यूंकि सास ने यही सिखाया पत्नी पति की होती दासी।
पिछले साल भी कर्वाचौथ में पीकर पति घर आए थे,
देसी पी थी दोस्त यार संग इंग्लिश लेकर आए थे।
आते ही घर में उसने ऐसा कोहराम मचाया था,
पिटते-पिटते बची उर्मिला सास ने उसे बचाया था।
सोच रही इस बार पति को पीने से ना रोकेगी,
हो जाएँ बेहोश भले ही पीते बीच न टोकेगी।
करवाचौथ का पूरा मर्म उसे समझ अब आया है,
'शिशु' कहें ये व्रत-पूजा सब पुरुषों की माया है।
क्यूंकि सास ने यही सिखाया पत्नी पति की होती दासी।
पिछले साल भी कर्वाचौथ में पीकर पति घर आए थे,
देसी पी थी दोस्त यार संग इंग्लिश लेकर आए थे।
आते ही घर में उसने ऐसा कोहराम मचाया था,
पिटते-पिटते बची उर्मिला सास ने उसे बचाया था।
सोच रही इस बार पति को पीने से ना रोकेगी,
हो जाएँ बेहोश भले ही पीते बीच न टोकेगी।
करवाचौथ का पूरा मर्म उसे समझ अब आया है,
'शिशु' कहें ये व्रत-पूजा सब पुरुषों की माया है।
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