Tuesday, March 30, 2010

क्षमा करो श्रीमान... जान अज्ञानी मुझको मान...

क्षमा करो श्रीमान... जान अज्ञानी मुझको मान...
क्षमा करो श्रीमान... जान अज्ञानी मुझको मान...

सही कहा इसलिए चल दिए लेकर तीर-कमान...
क्षमा करो श्रीमान... जान अज्ञानी मुझको मान...

बड़बोलापन दिखता मुझमे कुछ ऐसा ही लो मान...
अबसे राय नहीं दूंगा मैं इतना भी लो जान...
क्षमा करो श्रीमान... जान अज्ञानी मुझको मान...

मैं हूँ तुक्ष जीव इस युग का आप हैं बहुत महान...
आप हैं इन्द्र का इन्द्रासन जी हम हैं मीन सामान...
क्षमा करो श्रीमान... जान अज्ञानी मुझको मान...

आप दूध से धुले हुए हैं हम कोयले की खान...
मैं क्या हूँ? औकात क्या मेरी? मेरी नन्ही जान...
क्षमा करो श्रीमान... जान अज्ञानी मुझको मान...

क्षमा करो श्रीमान... जान अज्ञानी मुझको मान...
क्षमा करो श्रीमान... जान अज्ञानी मुझको मान...

मेहनत-मजदूरी है पेशा वे असली श्रमशक्ति के दूत....

बरसाती-गंदी-नाली के कीड़े वो जन कहलाते हैं.
जो जीवनभर कठिन कार्य कर जीवन कठिन बिताते हैं.

मेहनत-मजदूरी है पेशा वे असली श्रमशक्ति के दूत.
कार्य कुशलता दिखती उनमे वे भारत के असली पूत.

भले नहीं हों पढ़े-लिखे पर वे रखते सामाजिक ज्ञान.
मेहनत-मजदूरी करके वे रखते हैं परिवार का ध्यान.

श्रद्धा से मस्तक झुक जाता जब भी देखूं उनका काम.
दुःख होता सुन कठिन परिश्रम का मिलता उनको कम दाम.

पढ़े-लिखों से विनती 'शिशु' की उनका भी रखो सब ध्यान,
उनके बारे में भी सोचो, उनका सभी करो सम्मान...
उनका सभी करो सम्मान...

Thursday, March 25, 2010

मेल! मेल को समझो मेला घर को कर दो सेल

अब दिल्ली में भीख मांगना और बड़ा अपराध,
अपराध! यदि हुआ किसी से भी तो समझो जेल,
जेल! जेल को नहीं समझना आने वाले खेल,
खेल! खेल-खेल में होगी सड़क पे रेलमपेल
रेलमपेल! कुम्भ जैसे बिछड़ेंगे, फिर होगा तब मेल
मेल! मेल को समझो मेला घर को कर दो सेल
सेल! सेल से पैसा जो आये उससे खा पूरी-भेल

बदमाश तेल! तू ही बिगड़ रहा आम आदमी का खेल!

बदमाश तेल!
तू ही बिगड़ रहा आम आदमी का खेल!

कोमन-वेल्थ-गेम!
और शीला दीक्षित जी सेम टू सेम!

'कबीर'-माया महा ठगिन हम जानी...
'शिशु'-माया माया की हम जानी...

रूपये की माला!
अबे कम बोल! जुबान पर लगा ताला...

हजार हजार के नोट!
बुरा मत मानो, चुनाव के समय यही दिलाएंगे वोट!

दिल्ली की मंहगाई!
मीडिया की खबर! मीडिया की कमाई!

पुलिश की भर्ती!
भगदड़ मची, कितनो की उठी अर्थी!

स्वामी जी का भंडारा!
हो गया ६०-७० का वारा-न्यारा!

बाबा इच्छाधारी!
मर्सडीज़ छोड़, जेल वाहन की कर रहे सवारी... 
 

Wednesday, March 17, 2010

झूठ बोलना पाप है, अब नेता जी ने समझाया

झूठ बोलना पाप है, अब नेता जी ने समझाया
पैसा पैसा चिल्लाते क्यूँ, है पैसा ही केवल माया
है पैसा ही केवल माया मुझे पैसे की माला पहनाओ
अगर नहीं है घर में रोटी तो पीजा-बर्गर तुम खाओ
'शिशु' कहें आजकल माला भी तो पैसे से आता
रूपये डाल गले में जो माला के पैसे को बचाता

Thursday, March 4, 2010

अधिकार अपने छीन ले अब मांगने का वक्त ना

तू जागती जा जागती जा जागकर सोना नहीं,
तू खिलखिला हंसती रहे हों दुःख मगर रोना नहीं.
जो देश हैं महान बने अब तलक संसार में
पुरुषों बराबर काम तेरा दीखता उस धाम में
है जीतता जो समर में, रण बांकुरों की शान तू  
तू है बहादुर स्वयं भी हर देश का अभिमान तू
पर लोग तेरा आज भी अपमान करते हैं सदा,
तू सह न अब अपमान, उनको बोलदे तू सर्वदा
अधिकार अपने छीन ले अब मांगने का वक्त ना
'शिशु' भी न देता है खिलौने आप हैं यदि शक्त ना