मैकाइवर एंड पेज ने कहा कि-
समाज सामाजिक संबंधों का जाल है!
पर आजका प्रश्न यह है क्या आजकल के
टूटते रिश्तों से किसी को मलाल है!
आज हर इंसान की बिगड़ी हुयी चाल है.
कहा तो यहाँ तक जाता है कि अब बड़े-बुजुर्गों की-
बच्चों के सामने गलती नहीं दाल है.
और ऐसा हमारे देश का ही नहीं-
बल्कि पूरे विश्व का हाल है!
शिशुपाल जी,बहुत सही व बढिया सामयिक रचना है....
ReplyDeleteकहा तो यहाँ तक जाता है कि अब बड़े-बुजुर्गों की-
बच्चों के सामने गलती नहीं दाल है.
और ऐसा हमारे देश का ही नहीं-
बल्कि पूरे विश्व का हाल है!
बहुत सुन्दर!
ReplyDeleteआईये सुनें ... अमृत वाणी ।
ReplyDeleteआचार्य जी
"कहा तो यहाँ तक जाता है कि अब बड़े-बुजुर्गों की-
ReplyDeleteबच्चों के सामने गलती नहीं दाल है.
और ऐसा हमारे देश का ही नहीं-
बल्कि पूरे विश्व का हाल है!"
आपकी यह रचना गागर में सागर को चरितार्थ करती है. हृदयस्पर्शी रचना हेतु आपका आभार.....