आजकल मार्केट में सिक्को की कमी देखी जा रही है। हर कोई इन सिक्को को लेकर परेशान है. देलही की बसों का तो और भी बुरा हाल है. वंहा पर बस कंडेक्टर और यात्रियों के बीच कहा सुनी से लेकर मारपीट तक की नौबत आ जाती है. मार्केट में इन सिक्को के कारण उपभोक्ताओं को सामान एक - दो रूपये का ज्यादा खरीदना पड़ रहा है.
इन सिक्को की कमी का कारण आम आदमी के समझ से परे है। वो तो पहले ही रुपये की कमी से परेशान हैं. एक तो तन्खवाह नही मिल रही दूसरी तरह चीजो के दाम इतने बढ़ गए हैं की तंगहाली की नौबत आ गई है. एक तो महगाई और ऊपर से चुनाव सोने पर सुहागा है. उसपर से इन सिक्कों की कमी. और कारणों को समझाना थोड़ा कठिन है लेकिन सिक्को की कमी की बात अब समझ में आ रही है.
दरअसल चुनावी समर को भुनाने के लिए जब से नेताओं में खुद को सिक्कों में तौलवाने की होड़ लगी है तब से देलही में सिक्के जैसे गायब ही हो गए हैं। सिक्के तौलने वालों की जैसे लाटरी लग गई है। नेताओं को तौलने के लिए न केवल अब किराए पर तराजू मिल रहे हैंए बल्कि हजारों का कारोबार शुरू हो चुका है। इन दिनों में एक आध लोग तो दुकानदारों को सिक्कों की सप्लाई का काम करते हैं रोजाना दो से चार नेताओं द्वारा तराजू बुक कराया जा रहा है। नेताजी भी किराए के तराजू व सिक्कों में खुद को तौलवा कर इतराते नहीं थकते।
जो भी हो इतना तय है की चुनाव आते ही आम जनता की मुश्किलें बढ़ जाती हैं. कुछ लोग तो यह भी कह रहे हैं. की देलही में मिठाई के दुकानों में लड्डुओं की भारी कमी है. क्यूंकि कुछ नेता तो अपने को लड्डुओं से भी तुला रहे हैं. मिठाई बेंचने वाले खुश हैं लेकिन खाने वाले नाखुश. सीधी सी बात यह है इन के चक्कर में हम जैसे लोग जो बसों में सफर करते हैं परेशान हैं वो परेशान वो लोग भी हैं जो लड्डू खाने के शौकीन हैं. नही तो नेताओं और दूकानदारों के दोनों हाथों में लड्डू तो हैं ही.
सही कहा है आपने,वर्तमान मे सबसे बडी समस्या है ये ।
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