व्यंग मत बोलो
काटता है जूता तो क्या हुआ
पैर में न सही सर पर रख डोलो
व्यंग मत बोलो
कुछ सीखो गिरगिट से जैसी साख वैसा रंग
जीने का यही है सही सही ठंग
अपना रंग दूसरों से है अलग तो क्या हुआ
उसे रगड़ धोलो
पर व्यंग मत बोलो
भीतर कौन देखता है बाहर रहो चिकने
यह मत भूलो यह बाज़ार है सभी आये बिकने
राम राम कहो माखन मिश्री घोलो
व्यंग मत बोलो
(यह कविता सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के संकलन से ली गई है)
भीतर कौन देखता है बाहर रहो चिकने
ReplyDeleteयह मत भूलो यह बाज़ार है सभी आये बिकने
Acchi kavita chuni aapne.
राम राम कहो माखन मिश्री घोलो
ReplyDeleteव्यंग मत बोलो
बहुत सुन्दर रचना। बधाई।
[हे प्रभु के सम्रर्थक बनिये और अपने टीपणी से अनुग्रहीत करे]