कटु सत्य कह देने में कठिनाई बहुत बड़ी होती
और बाद में यह उसके धन की हानि है कर देती
कभी कभी इस कटु सत्य से दोस्त भी दुश्मन हो जाते
और दुश्मनों के मन में हम अपनी छाप बना जाते
पहले के युग में थी अपनी इसकी अलग बड़ी पहचान
आज अगर कटु सत्य सुनाओ आफत में पड़ जाती जान
क्यूंकि कान अब कच्चे हो गए सुनने को तैयार नहीं
कहा कही यदि साथी को तो समझो अब वो यार नहीं
कार्यालय में कटु सत्य तो और भी है आसान नहीं
यदि धोखे से निकल गया तो समझो कोई मान नहीं
'शिशु' कहे इसलिए आज से चिकनी चुपडी बोलूँगा
भले देख लूं आखों से मगर सत्य न बोलूँगा
अच्छा है और यही आज का फंडा भी।
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चाँद, बादल और शाम