Monday, December 1, 2008

विलुप्त होती ग्रामीण बोली-भाषा

ग्रामीण बोल-चाल की भाषा मीठी होती है। इस भाषा के शब्द सीधे, सरल, मधुर और साधारण होते है। पढ़े-लिखे से लेकर साधारण (कम पढ़े लिखे या अनपढ़) व्यक्ति भी इसकी भाषा को आसानी से समझ सकते हैं। मतलब कि इसकी भाषा को समझने में कोई परेशानी नहीं होती। शहर के लोग जब गांव आते हैं तो वह भी गांव की बोली-भाषा को समझने और बोलने का प्रयास करते हैं। उन्हें भी लगता है कि गांव की भाषा में कितना अपनापन है। गांव में हम अनजान व्यक्ति को भी बाबा, दादी, अम्मा, चाचा, भइया और दीदी या बहन कहते हैं जबकि शहरों में इन अनेक शब्दों के केवल दो शब्द रह गये हैं - सर और मैडम।

प्राकृतिक शब्दों को भी ग्रामीण भाषा में बोलते समय सजीव सा लगता है। देखिये - ‘‘पाला कानों को काट रहा है’’, ‘‘सूर्य मुस्करा रहा है’’, ‘‘बारिस आ गयी है’’, ‘‘फागुन चल रहा है’’ और मौसम में कैसी सनक है। जबकि इन्ही शब्दों को शहरी भाषा में कहते हैं- पाला पड़ रहा है। धूप तेज है, बरसात हो रही है, अपै्रल है, मौसम रंगीन है।

प्राचीन दादी, नानी की कहानियां ग्रामीण भाषा की ही देन हैं फिर चाहे वह डरावनी राक्षसी कहानियां हो, या खरगोश और कछुवा की दौड़, चंदा मामा, चूहा बिल्ली और शेर और खरगोश की कहानियां हों। ये सभी कहानियां ग्रामीण भाषा की देन हैं या कहें हमारी ग्रामीण भाषा की धरोहर हैं।

ज्यादातर शहरी लोग जो गांवो से आकर शहरों में बस गये हैं इस अपनेपन की भाषा को भूलते जा रहे हैं। कुछ लोगों से तो मैंने यहां तक सुना कि गांव की भाषा निरे अनपढ और नीच लोगों की बोलचाल की भाषा है। तो क्या भाईजान आप शहरों में पैदा हुए, क्या आपके बाप-दादा, या पूर्वज गांवों की उपज नहीं हैं? इस बात पर यह पढ़े-लिखे लोग बिगड़ जायेंगे। उस समय तो मेरे सामने यह ग्रामीण मुहाबरा ही है जो इन गांव से आये शहरी पर ठीक बैठेगा- भैंस के आगे बीन बजाये, भैंस खड़ी पगुराय’’।

अब हमारी यही ग्रामीण भाषा धीरे-धीरे विलुप्त हो रही है। गांव के पढ़े-लिखे युवक गांव की बोली बोलने में झिझकते हैं, उन्हें शर्म महसूस होती है। रोजी-रोटी ने उनकी अपनी भाषा को छुडाने का कारण बन गयी है। गांव के शहरी, शहरी भाषा के चक्कर में पड़ गये हैं। यही गांव के ज्यादातर लोग जब गांवों में जाते हैं तो रटे-रटाये अंग्रेजी शब्दों को बोलते नजर आते हैं। वे ‘तमीज’ में बात करते हैं। अब यदि यही ‘तमीज’ में बात करने वाले लोग गांव की भाषा-बोली बोलने से कतराये तो वह दिन दूर नहीं जब हमारी यह प्राचीन भाषा गंदगी मिटाने वाले गिद्ध की तरफ गायब हो जायेगी। इसलिए जरूरत इस बात की है कि शहरों में रहें तो शहर की भाषा बोलें और जब गांव जायें तो गांव की भाषा में ही बात करें।

2 comments:

  1. ग्रामीण भाषा के सम्बन्ध में आपका आग्रह बिल्कुल उचित है. ये हमारी धरोहर हैं. स्वागत आपका अपनी विरासत को समर्पित मेरे ब्लॉग पर भी.

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