Wednesday, January 28, 2009

उपदेशों की बानगी

हमारे यहां एक कहावत है- ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’।

उपदेश
और उपदेशक हमारे देश की महानता को दर्शाते हैं। कहा जाता है कि हमारे देश से बढ़कर दुनिया में कहीं भी अच्छे उपदेश और उपदेशक और कहीं नहीं हैं। बात सौ आने सही है। अब उपदेश भी ऐसे-ऐसे हैं कि जरूरी नहीं कि वो हर किसी के जीवन में काम आयें। यदि इन उपदेशको को सुनें तो उन्हें समझने के लिए भी उपदेश लेने पड़ते हैं। यहां कुछ उपदेशों की बानगी देखिये-

धर्म गुरू (प्रवचन करते बाबा) कहते हैं बच्चा दुनिया के बखेड़ों में मत पड़ो। दुनिया बहुत लुटेरी है। जो कुछ कमाओ भगवान को अर्पण करो। मुझे कुछ नहीं चाहिए लेकिन आश्रम में दान-धर्म हो जाये तो आने वाली पीढ़ी को अर्धम से बचाया जा सकेगा।

पादरी साहब उपदेश देते हैं-प्रभु ईशा की सरन गहो, वो तुम्हारे पाप की गठरी को सिर उठाये सूली पर चढ़ गया था। न कुछ दान करो, न तपस्या की ज़रूरत है और न ही व्रत की आवश्यकता है, जमकर शराब पियो और प्रभु ईशा पर ईमान लाओ। बस। सब ठीक होगा।

आरएसएस और हिन्दू धर्म के आधुनिक विचारक उपदेश देते हैं-बाप-दादा की लीक पीटते जाओ। यही सम्पूर्ण वेद-शास्त्र का निचोड़ है। संस्कृति और सभ्यता को समझो। धर्म पर चलो। स्त्रियों को घर पर रहकर पति की सेवा और सत्कार में मन लगाना चाहिए। पाश्चात्य देशों ने हिंदू धर्म का बेड़ा गर्क कर दिया है। इसलिए उनका बताये रास्तों पर न चलकर प्राचीन धर्मशास्त्रों को पढ़ो और उन पर अमल करो।

यार-दोस्तों के उपदेश कुछ ऐसे होते हैं-तुम भी यार क्या हो? बस काम-काम और काम! कभी हमारे साथ चलो। खाओ-पियो बेटा। कोई अमर नहीं है। सब यहीं का यहीं रह जायेगा। फिर पीछे बोलोगे यार सारा जीवन व्यर्थ गया। इसलिए अभी से मजे करो। भाड़ में जाय दुनिया।

ऑफिस में बॉस समझाते हैं-गीता पढ़ो। उसमें लिखा है कर्म किये जा फल की इच्छा करना मनुष्य का काम नहीं। यदि कर्म करोगे तो फल तो कभी न कभी मिलेगा ही। ऑफिस के आर्थिक और प्रशासनिक और आर्थिक विशेषज्ञ समझाते हैं क्या फर्क पड़ता है तुम स्टॉफ रहो या कंस्लटेंट तनख्वाह मिलनी चाहिए और वो तुम्हे मिलेगी। छुट्टी और पीएफ का क्या करोगे वो सब को मोह-माया है बच्चा।

मां-बाप समझाते हैं-बेटा बहू से कहो कभी-कभी गांव भी आया करे। क्या यह उसका घर नहीं? हमारा भी मन करता है कि हम बेटा बहू साथ-साथ घर आयें तो अच्छा लगता है। 80 साल की बुढ़िया (दादी मां) समझाती है-बेटा अब तुम सयाने हो गये हो। घर-बार की फिक्र करो। ऐसी चाल चलो जिसमें जग-हंसाई ना हो।

घरवाली समझाती है- महीने में जो भी कमाते हो, भाई-बहन को खिलाने-पिलाने और मां-बाप को सौंप देते हो। यदि उसी धन को जमा करते रहो तो मैं सिर से पैर तक सोने के गहनों से लद जाऊँ। तुम्हें क्या पता नहीं बाप-बड़ा ना भइया, सबसे बड़ा रूपइया।

रास्ते पर चलता हुआ भिखारी समझाता है-साहब अब 1 रूपये में क्या मिलता है। कम से कम 5 रूपये मिलने चाहिए। अब आप ही बतायें आजकल 1 रूपये में क्या मिलता है।

बात यह है कि इस बारे में जितना लिखा जाये कम ही है। अब तो आपलोग भी समझ गये होंगे कि यह भी लिखकर उपदेश ही दे रहा है। इसलिए मैं उपदेश न देकर उपदेशों को सुनना पसंद करूंगा।

पीकर मदहोशी के चलते सूझी उनको समाजसेवा

पीकर मदहोशी के चलते सूझी उनको समाजसेवा
सभ्य सभी को कर देंगे सौगंध उन्हें तेरी देवा

तू राम है वो हैं रामबीर, कलयुग की सेना कहलाती
वैसे भी अमन है जहाँ-तहां, है कहर वंही पर बरसाती

तूने सीता को त्यागा था एक आम पुरूष के कहने पर
वो उसी रह पर चलते हैं कुछ नेताओं के कहने पर

जिस तरह आपके लव कुश थे लड़की का कोई नाम नही
ये लोग भी वही सोचतें हैं महिला का कोई काम नही

ये पूजा करते देवी की जो मन्दिर में बैठी होती
उस महिला पर ये जुल्म करे जो घर - घर कम होती रहती

संस्कृति सभ्यता संस्कार उनके ये अस्त्र कहते हैं
उन अश्त्रो-शस्त्रों को लेकर महिला पर जुल्म वो ढाते हैं

ख़ुद जींस पैंट में घूम रहे सभ्यता का पाठ पढायेंगे
ख़ुद फिल्मी गीत गा रहे हैं औरों को भजन सुनायेंगे

'शिशु' कहें वो वीर नही कायर जो स्त्री पर अत्याचार करें
यदि वीर कहाते अपने को शरहद पर जाकर वार करें।

Monday, January 26, 2009

बदलते रिश्ते और बदलती परिभाषाएं

बद्ज़ातों की इस दुनिया में इंसानों की औक़ात कहां।
पहले जो रिश्ते बनते थे, अब उनमें वैसी बात कहां।।


पहले मम्मी थीं माता जी अब बापू डैडी कहलाते।
आंटी और अंकल जो अब हैं चाचा-चाची थे कहलाते।।


पहले का चंदामामा अब बच्चों के काम न आयेगा।
वैज्ञानिक करते हैं रिसर्च, रहने के काम में आयेगा।।


पहले थे केवल ही गरीब, अब परिभाषा उनकी बदली।
गांवों में अब कुछ ही गरीब, शहरों में दिखते हैं असली।।


रूपये की हालत अब पतली, तब पतली दाल हुआ करती।
अब उस रूपये में मिलता क्या? जिसमें तब दाल मिला करती।।


पहले था प्यार इशारों में, जो पकड़े गये तो हंगामा।
अब होता खुल्लम-खुल्ला है, ना होता कोई हंगामा।।


पहले की चिट्ठी प्यारी थी, उसमें था गहरा प्यार छुपा।
यदि प्रेम पत्र होता कोई पढ़ता हर कोई छुपा-छुपा।।


अब मेल का नया ज़माना है, चैटिंग करते खुल्लम-खुल्ला,
जीमेल का नया जमाना है, एसएमएस करे खुल्लम-खुल्ला।।


पहले तो गांव की गोरी को शहरों के लड़के प्यार करें।
अब शहरी लड़की को देखो? गांवों के लड़के प्यार करें।।


पहले तो 'शिशु' अकेला था, तब लिखने की हसरते नहीं।।
अब लिखने का मन करता है तो देखो उस पर समय नहीं।।

Friday, January 23, 2009

छूट! डिस्काउंट के नाम पर लूट।

छूट!
डिस्काउंट के नाम पर लूट।


दम!
ताक़तवर हैं हम।


ग़म!
आंख हुई नम।


धूप!
बदले लड़की का रंगरूप।


निशानी
बाद में याद दिलाये, बीती हुई कहानी।


नेता!
हरदम लेता। कभी नहीं कुछ देता।


सरकारी चपरासी!
अफ़सर से ज्यादा लेता घूस में राशि ।

Thursday, January 22, 2009

अश्रु बहे जो नयनों से, वो मेरे नहीं अकेले थे

अश्रु बहे जो नयनों से,
वो मेरे नहीं अकेले थे।
प्रिय भी उन दुख में शामिल थे,
जो कष्ट दिलों ने झेले थे।।


अधरों पर थे शब्द अधूरे,
जब हम बिछड़ रहे थे।
नहीं भूलना प्रियतम मुझको,
दिल दोनों के बोल रहे थे।।


व्यथा हृदय में ऐसी थी कुछ,
प्रियतम अब आयेंगे कब तक।
ये सोच के मन घबराता था,
कहीं प्राण निकल ना जाये तबतक।।


क्या प्रीति की रीति यही होती,
कि मिलन के बाद जुदाई हो।
जब मिले प्रिया-प्रीतम दोनों,
ऐसी बेला क्यों आयी हो।।


यह सोच रही थी मन ही मन,
आंशू की धारा बह निकली।
प्रिय चले गये एक पल ही में,
मैं खड़ी रही जैसे पगली।।


घर पहुंची कैसे द्वार खुला,
कुछ मालून नहीं पड़ा मुझको।
मैं बैठ गयी सिर टिका पलंग,
फिर याद किया दिल ने उनको।।


यादें जीवन का हिस्सा हैं,
उनको कोई बिसराये क्यों।
बोले थे प्रिय आकर एकदम,
वो कैसे यहां छिपाऊ क्यों।।


जिस तरह मिलन में प्यार बड़ा,
उस तरह जुदाई ना होती।
लेकिन वो वक्त जुदाई का,
उस प्यार को और बढ़ा देती।।


कहते हैं लोग मिले हरदम,
दूरी मिट जाये एकपल में।
लेकिन क्या सत्य ये सम्भव है,
खुशियाँ आयेगी हरपल में।।


उन प्यार भरी इन यादों से,
मुस्कान दौड़ गयी अधरों पर।
फिर मिलेंगें जल्दी हम दोनों,
खुशियों के अच्छे मौके पर।।

Wednesday, January 21, 2009

हे मातृभूमि आज़ादी की...!

हे मातृभूमि आज़ादी की
आज़ादी दो निर्धनता से
सब हष्ट-पुष्ट बलवान बने
आज़ादी दो निर्बलता से


निर्धन-धनवान न हो दुश्मन
मन में उनके प्रकाश भर दो
सब मिलकर काम करे अच्छा
उज्ज्वल मन तुम उनके कर दो


शत्रुता मिटे, भाई-चारा
बन्धुत्व भावना कायम हो
ना शरहद कोई ओर रहे
संसार में हर कोई मानव हो


शिक्षा हो ऐसी सभी जगह सब
काम करें, मेहनतकश हों
गांवो में भी उजियार हो
भय, अंधकार से दूरी हो


धन-धान्य रहे, घर मिले सभी
सबके सपने कुल पूरे हों
जो चाहें पूरा हो जाये
ना वादे कोई अधूरे हों


आतंक रहे ना आतंकी,
कुछ ऐसा तुम उपाय कर दो
कटुता है उनके जीवन में
सब प्रेमभाव मन में भर दो


न जंग हो ना हो बमबारी
न हो कोई मारा-मारी
सब चोर-लुटेरे सुधर जायें
हर पुलिस से उनकी यारी


नेता सब अच्छे हो जाएं
वादे हो उनके सब सच्चे
हैं देश चलाने वाले जो
सारे के सारे हों अच्छे


महिला की इज्जत हो पूरी
अधिकार मिले जो हैं उनके
ना हो उत्पीड़न कैसा भी
परिवार मिले उनको मनके


'शिशु' कहें अगर ये हो जाता
तो इसे कहूंगा आजादी
है किन्तु, परन्तु बात नहीं
कहते हैं अभी है बरबादी

Thursday, January 15, 2009

इंगलिश पढ़े सो बाबू होय

इंगलिश पढ़े सो बाबू होय,
हिंदी को पूछे नहि कोई।
सभी जगह अंग्रेजी बोली,
जिसने भी जबान जब खोली।


यदि अंग्रेजी नहीं है आती,
बात तुम्हारी सुनी न जाती।
आफिस में अंग्रेजी बोलो,
वेतन जितना चाहे ले लो।


होटल में तुम जब भी जाओ,
अंग्रेजी में बात सुनाओ।
बैरा बात सुनेगा ज्यादा,
भाव भी देगा पक्का वादा।


हिंदी में जबान यदि खोली,
समझदार समझे ना बोली।
यदि मैडम को इंग्लिश आती,
नौकर को रहती हड़काती।


यूपी वालों कहना मानो,
अंग्रेजी की महिमा जानो।
मैं भी यू।पी का हूं वासी,
बात दुखद हिंदी का भाषी।


जितनी हिन्दी मेरी अच्छी,
अंग्रेजी उतनी है कच्ची।
दोस्त यार सब रोज बताते,
अंग्रेजी की महिमा गाते।


'शिशु' ने भी अबसे यह ठाना,
अंग्रेजी है एक निशाना।
मैडम एक बहुत हैं सच्ची,
इंग्लिश जिनकी सबसे अच्छी।
अंग्रेजी का ज्ञान वो देंगी,
बदले में कुछ भी ना लेंगी।

जाड़ा बहुत जाड़ा बहुत लोग बोलने लगे

जाड़ा बहुत जाड़ा बहुत लोग बोलने लगे।
कैसे दूर जाड़ा हो यह भेद खोलने लगे।।
कम्बल से जाड़ा अब जाति नाहिं देखि लो।
हाफ स्वेटर छोड़के एक चद्दर लपेटि लो।।
कोट पैंट पहन के घूमें सब बाबू लोग।
चीथड़े लपेटे हुए घूमते गरीब लोग।।
कमरे में बैठ कर और हीटर आन कर।
कानों में टोपी या मफलब को बांधकर।।
बूढ्ढ़े कहते जाड़ा बहुत मौसम बहुत सर्द है।
युवा लड़की बोले यही मौसम बेदर्द है।।
कहां हम गर्मी में घूमते थे टॉप में।
अभी देखो स्वेटर और स्कार्प में।।
‘शिशु’ कहें जाड़े का मजा लूटि ले भाई
3 महीने बाद फिर यही मौसम याद आई।।

नारीवाद आ गया देखो बात बहुत है अच्छी

सास बहू के नाटक से एक बात समझ में आयी
रिश्ते बनते हैं कैसे और कैसे होती लड़ाई।
भारी-भरकम मेकप में रोना और हंसना होता,
महिला पात्र की बात करें क्या पुरूष पात्र मेकप में सोता।
इस मेकप को देख के देखो पार्लर की बन आयी।
रिश्ते बनते हैं कैसे और कैसे होती लड़ाई।


पुरूष काम पर जैसे जाते, महिला जाती पार्लर,
पैसे का जुगाड़ वो करती पकड़ पुरूष का कार्लर
ऐसा देख के मुझको भी मेरे गांव की याद सताई।
रिश्ते बनते हैं कैसे और कैसे होती लड़ाई।


गांवों में भी बन-ठन कर अब महिला करती काम,
सीता, दुर्गा हो गयीं पीछे तुलसी का लेती नाम।।
देख के बा के मेकप को एक बुढ़िया भी शरमाई।
रिश्ते बनते हैं कैसे और कैसे होती लड़ाई।


'शिशु' कहें यह देख के यारों एक बात समझ में आयी
पुरूष सभी अब पीछे हो गये महिलाओं की बनि आई
पारिवारिक ढांचा है बदला, सोच भी बदली सच्ची
नारीवाद आ गया देखो बात बहुत है अच्छी
जो भी मन में आया था वह लिखके यहां बताई।
रिश्ते बनते हैं कैसे और कैसे होती लड़ाई।

सत्य मार्ग पर चलते जो हैं, कष्ट उठाते रहते

सत्य मार्ग पर चलते जो हैं, कष्ट उठाते रहते।
भौतिकवादी इस जीवन में, धन की हानि सहते।।
लोग आज-कल के जो हैं, आधे से ज्यादा पापी।
अच्छे-अच्छे कम दिखते हैं, बहुत अधिक अपराधी।।
सत्य अहिंसा की बाते अब फिल्मों में चलती है
गांधी जी उपदेशों की दाल कहां गलती है।
मूसा-ईशा, हजरत ने था प्यार का पाठ पढ़ाया।
आज का मानव है कहता ये समझ न मेरे आया।।
गौतम ऋषि की वानी में था हत्या पाप जीव की।
अभी देखलो इस कलयुग में बोलबाल है इसकी।।
श्रीकृष्ण ने गीता में एक कर्म का पाठ पढ़ाया।
इस युग में सब कहते रहते कर्म से पहले माया।
अब धर्म पाठ को याद कराने वाले हो गयी पापी।
राजनीति में घुस गये सारे जितने थे अपराधी।।
'शिशु' कहें एक बात हमारे समझ नहीं है आती।
सुबह, शाम या रात कभी हो हरदम यही सताती।।
कैसे हो जीवन यह अच्छा कोई हमें बताये।
इस मारा-मारी, कटुता को कैसे दूर भगायें।।
सत्य अहिंसा सीखे फिर से जीवन सफल बनायें
स्वर्ग-नर्क की बात नहीं है स्वस्थ-सुखी हो जायें।।

Monday, January 5, 2009

'शिशु' की यही है आश न हो जाडे से दूरी

मौसम परिवर्तित हुआ जाडा बढ़ता जाए

इसी दौर में शादी के फिर कार्ड बहुत घर आए

कार्ड बहुत घर आए निमंत्रण आते रहते

आयेंगे श्रीमान, यही हम गाते रहते

मौका जब भी मिल जाता हम जाते रहते

भले पेट में जगह बचे न खाते हम रहते

जाडा यूँ चलता रहे यही दुआ भगवान्

इसी तरह हम अगले बरस बने बहुत मेहमान

बने बहुत मेहमान प्रभु जी विनती मेरी

'शिशु' की यही है आश न हो जाडे से दूरी

Sunday, January 4, 2009

फिल्म ‘रब ने बना दी जोड़ी’ नज़र नज़र के फेर में अच्छी थोड़ी

मुझ जैसे नौसिखिया लिक्खाड़ और घर पर पाइरेटेट डीवीडी लाकर फिल्म देखने के बावजूद मेरी मजाल तो देखिये कि फिल्म की समीक्षा लिखने लगा। लिख इसलिए रहा कि कबीर दास जी ने लिखा है-जिन ढूंढ़ा तिन पाइयां सो मैने भी सोचा कि जिन देखा जो लिख दिया वाली बात पर लिख दिया।

अब जब लिखने ही लगा तो फिल्म का नाम भी लिखे देता हूं-‘रब ने बना दी जोड़ी’। ‘वाह क्या बात है, क्या अच्छी फिल्म है’लोगों से ऐसी तारीफ सुनकर श्रीमती जी भला क्या बिना देखे रह सकती हैं। सवाल ही नहीं उठता। उसी तरह जैसे कि ‘सास भी कभी बहू थी’ वाले धारावाहिक की तरह जब पड़ोसन देखती हैं तो मैं क्यों नहीं देख सकती, भले ही मुझे अच्छा लगे या ना लगे। इसी से तो खाली समय में चर्चा करने मौका मिलेगा। तय किया कि 1 तारीख को फिल्म जरूर देखेंगे नया साल भी इसी बहाने मना लेंगे। लेकिन ऐन टाइम पर ऑफिस ने टांग अड़ा दी, सो क्षमा याचना करके भारतीय अदालतों की तरह अगली तारीख मुकरर्र करनी पड़ी। बात आयी और गयी। लेकिन एक मित्र, जो मेरी तरह डीवीडी से फिल्म देखने के शौकीन हैं, ने एक मुझे भी थमा दी।

फिल्म में दिखाया गया है कि आधुनिकता के बावजूद कैसे आज भी भारतीय पत्नियों को अपने पति में रब यानी भगवान दिखाई देता है। बिजली बाबू सुरिन्दर साहनी (शाहरूख खान) ने तानी (नयी नायिका होने की वजह से नाम याद नहीं) से परिस्थितिवश शादी की है। नायक नायिका को पत्नी की तरह प्यार करता है लेकिन नायिका उसे स्वीकार नहीं करती जिसके लिए नायक एक मार्डन युवक बनकर नायिका का दिल जीतने के लिए उसके इर्द-गिर्द चक्कर लगाता रहता है। बस यही कहानी है। फिल्म में नायक का आम आदमी वाला रोल मार्डन युवक से ज्यादा सशक्त नजर आता है। वहीं इस फिल्म में भारतीय सिनेमा में महिला पात्र जहां मात्र बदन दिखाऊ सीन के लिए जानी जाती है से निकलकर बाहर आयी है। कहा जाय तो तानी का अभिनय भी जबरदस्त है। इस फिल्म में अश्लील और उत्तेजक सीन अन्य फिल्लों की तरह न के बराबर हैं इसलिए इसे पारिवारिक फिल्म मान कर चलिये। फिल्म में मुझे कुछ सीन पर शक है जैसे शाहरूख का मार्डन युवक वाला रोल। क्या मूछें और बालों के लुक को बदलने के बाद आदमी छिप सकता है? दूसरों के लिए आसन न सही लेकिन साथ रहने वाले के लिए पहचानना मुश्किल काम नहीं है। इसे नायिका फिल्म के अंत में पहचान पाती है। दूसरी बात यह कि अब डांस सीखने के लिए अब बहू-बेटियों को गैर मर्दों के साथ जोड़े बनाकर सीखना पड़ेगा। बात कुछ अटपटी लगी।

अंत में कहा जाय तो बाकी फिल्मों से यह फिल्म थोड़ी अच्छी है। फिल्म में शुरू से आखिरी तक नई पीढ़ी में परंपरा और आधुनिकता के बीच द्वंद चलता रहता है। सूमो से मुकाबला और शाहरूख का मतलब से ज्यादा भावुक होना अखरा है। विनय पाठक जो नाई की भूमिका में हैं और नायक के दोस्त हैं, ने फिल्म में कहीं-कहीं शाहरूख के अभिनय को पछाड़ा है। मैंने इसे श्री स्टार दिये हैं।

Saturday, January 3, 2009

धर्मगुरू, धार्मिकता, धार्मिक चैनल

भारत देश शुरू से ही आध्यात्म का केन्द्र रहा है। 33 करोड़ देवी-देवताओं वाले इस देश के धर्मगुरूओं ने प्राचीन काल से धर्म के प्रचार-प्रसार के अलग-अलग तरीकों से धर्म की शिक्षा देते रहे हैं। आज के बदलते परिवेश में धन बनाम धर्म की दौड़ में धार्मिक संदेश और धार्मिकता का पाठ पढ़ाने वाले बाबाओं को नये अवतार में देखा जा रहा है। मीडिया की चकाचौंध ने उनको भी फिल्मी सितारों की तरह प्रसिद्धि दिलाई है। फिल्मी नायक-नायिकाओं की तरह अबके धर्मगुरू भी लोगों के आइकन बन गये हैं। हर कोई जो इन धार्मिक चैनलों का लुप्त उठा रहा है अपने-अपने बाबाओं का फैन है।

जैसा चैनल वैसे बाबा। सुनने में यह बात भले ही अजीब लगे लेकिन है कुछ हद तक यह सत्य ही। धार्मिक चैनलों पर प्रवचन सुनाते हुए बाबा मोटी रकम मीडिया चैनलों को देते हैं। कहावत है जो दिखता है वो बिकता है वाली बात चल रही है। एक सत्य और सामने आया कि कुछ धार्मिक बाबा जनता को प्रवचन और बोलबचन के साथ ही साथ विज्ञापनों से मोटी कमाई भी कर रहे हैं।

टीवी चैनलों पर गौर करें तो अमेरिकी टीवी चैनल की एक प्रसिद्ध डिजीटल टेलीविजन सर्विसेस डायरेक्ट टीवी, इंक ने भारत के एक आध्यात्मिक चैनल को डायरेक्ट टीवी चैनल पर जगह उपलब्ध कराने की बात कही है। एक सर्वेक्षण से पता चला है कि मार्च 2005 से अप्रैल 2006 में अकेले आस्था चैनल के विज्ञापनों का 75 प्रति’ात तक इजाफा हुआ है। ज्यादातर धार्मिक चैनलों का समय प्रातः 4 से 9 तक रहता है फिर भी उनकी कमाई प्रति 10 सेकेण्ड 600 रूपये तक हो रही है।

ऐसा नही है कि इन धार्मिक चैनलों को टीपीआर की श्रेणी में नही रखा जाता। इन चैनलों को बराबर हिट रखने के लिए धार्मिक चैनलों को पापड़ बेलने पड़ते हैं। देखने में यह भी आया है कि कुछ धार्मिक बाबाओं ने कारपोरेट जगत ही तरह अपने यहां मीडिया / जनसंपर्क अधिकारी भी नियुक्त कर रखे हैं।
बात यह है कि आज के इस चकाचौंध में धर्म और धन के होड़ में पैसा बनाने के तरीके हर जगह अपनाये जा रहे हैं।