सास बहू के नाटक से एक बात समझ में आयी
रिश्ते बनते हैं कैसे और कैसे होती लड़ाई।
भारी-भरकम मेकप में रोना और हंसना होता,
महिला पात्र की बात करें क्या पुरूष पात्र मेकप में सोता।
इस मेकप को देख के देखो पार्लर की बन आयी।
रिश्ते बनते हैं कैसे और कैसे होती लड़ाई।
पुरूष काम पर जैसे जाते, महिला जाती पार्लर,
पैसे का जुगाड़ वो करती पकड़ पुरूष का कार्लर
ऐसा देख के मुझको भी मेरे गांव की याद सताई।
रिश्ते बनते हैं कैसे और कैसे होती लड़ाई।
गांवों में भी बन-ठन कर अब महिला करती काम,
सीता, दुर्गा हो गयीं पीछे तुलसी का लेती नाम।।
देख के बा के मेकप को एक बुढ़िया भी शरमाई।
रिश्ते बनते हैं कैसे और कैसे होती लड़ाई।
'शिशु' कहें यह देख के यारों एक बात समझ में आयी
पुरूष सभी अब पीछे हो गये महिलाओं की बनि आई
पारिवारिक ढांचा है बदला, सोच भी बदली सच्ची
नारीवाद आ गया देखो बात बहुत है अच्छी
जो भी मन में आया था वह लिखके यहां बताई।
रिश्ते बनते हैं कैसे और कैसे होती लड़ाई।
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