जाड़ा बहुत जाड़ा बहुत लोग बोलने लगे।
कैसे दूर जाड़ा हो यह भेद खोलने लगे।।
कम्बल से जाड़ा अब जाति नाहिं देखि लो।
हाफ स्वेटर छोड़के एक चद्दर लपेटि लो।।
कोट पैंट पहन के घूमें सब बाबू लोग।
चीथड़े लपेटे हुए घूमते गरीब लोग।।
कमरे में बैठ कर और हीटर आन कर।
कानों में टोपी या मफलब को बांधकर।।
बूढ्ढ़े कहते जाड़ा बहुत मौसम बहुत सर्द है।
युवा लड़की बोले यही मौसम बेदर्द है।।
कहां हम गर्मी में घूमते थे टॉप में।
अभी देखो स्वेटर और स्कार्प में।।
‘शिशु’ कहें जाड़े का मजा लूटि ले भाई
3 महीने बाद फिर यही मौसम याद आई।।
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