Tuesday, December 29, 2009

नहीं किसी से हो रुसवाई ! नया वर्ष बीते सुखदाई।!

नई उमंगें नई तरंगे नए वर्ष के वन प्रभात में,
बीत रहा जो वर्ष अभी है उसकी मधुर-मधुर स्मृति में,
आप सभी को बहुत बधाई,
नया वर्ष बीते सुखदाई।

सुख-समृद्धि, उन्नति सब पायें, दुःख की आंच न हम पर आये,
भले बुरों के भी हो जाएँ, दुश्मन सभी दोस्त बन जाएँ,
नहीं किसी से हो रुसवाई
नया वर्ष बीते सुखदाई।

स्वास्थ रहे उत्तम सदैव ही, अच्छी सबकी रहे कमाई,
घर-परिवार रहे मिलजुलकर झगड़ों की न पड़े परछाई,
'शिशु' भावना है ये आई
नया वर्ष बीते सुखदाई

Monday, December 21, 2009

भारत की इस राजनीति में धर्म है असली खम्भा।

धर्म है राजनीति का रक्षक 'धर्मवीर' ने है फरमाया
राजनीति हो अलग धर्म से, सुन वो सब पर गरमाया
सुन वो सब पर गरमाया वोला अबे गधों के पूत
धर्म ही पहुंचाता संसद में राजनीति के असली दूत
'शिशु' कहें सुन धर्मवीर को, हुआ न हमें अचम्भा
भारत की इस राजनीति में धर्म है असली खम्भा।

धन पर धर्म सदा से हावी मंदिर में होती धनवर्षा,
गाँव गरीबी है वैसी ही बीत गया है कितना अरसा,
बीत गया है कितना अरसा, मंदिर में बिजली आती,
सूख रहे पानी बिन खेत वंहा ना बिजली आती।
कहें 'शिशु' मंदिर में दान लुटाते नेता और अभिनेता
जंहा गरीबी व्याप्त अति है उसकी फ़िक्र न कोई लेता।

Saturday, December 19, 2009

लूट मची है चारों ओर, मंहगाई-मंहगाई शोर,. . .

लूट मची है चारों ओर, मंहगाई-मंहगाई शोर,
जमाखोर भी खुद चिल्लाते बहुत बुरा है अब का दौर।

कहती है सरकार जमाखोरों पर कसा शिकंजा,
जमाखोर बेखौप बोलते हम पर नेताजी का पंजा।

केंद्र कहे ये राज्य का मसला, उनको देना होगा ध्यान,
कहें राज्य सरकार करूँ क्या केंद्र में बैठे हैं अज्ञान।

मंत्री बोले हाँ मंहगाई कुछ - कुछ नज़र हमें आयी
लेकिन अखबारों ने देखो जनता को बढ़कर बतलाई।

आम आदमी कब कहता है सस्ता युग अब है आया।
'शिशु' कहें जो गुजर गए पल वो केवल ही है भाया।

Tuesday, December 15, 2009

अब ना देशी अब ना विदेशी अभी दौर बाज़ारों का,

कौन है देशी कौन विदेशी अब ये चर्चा करता कौन,
माल विदेशी सभी खरीदें उस खर्चे पर सब मौन।

क्रिकेट विदेशी खेल कभी था अभी देश का है सिरमौर,
इंग्लिश बोली सुनो विदेशी लेकिन अभी उसी का दौर।

पेप्सी-कोला सभी विदेशी फिर भी पीते देशी लोग,
पीजा बर्गर क्या देशी हैं? उसका सभी लगाते भोग।

जींस और पतलून विदेशी लगे विदेशी पहनावा,
हिन्दुस्तानी कहलाते हम कैसा भी हो पहनावा।

अब ना देशी अब ना विदेशी अभी दौर बाज़ारों का,
कहते हैं शिशुपाल सुनो जी अब का दौर गुज़ारों का।

Thursday, December 10, 2009

नयन विराट एक जोट देखते ही रहे...

नयन विराट एक जोट देखते ही रहे,
कैसे कहूं कासे कहूं हाल कहा जाता ना

कभी
ना जताया प्यार, बात की इशारों में,
वो इशारों वाला प्यार अभी मैं बताता ना

कभी
मिले बीच राह रुको बोला रुके नही,
मिले जब भी इसी तरह मैं भी तो बुलाता ना

फ़ोन
करें, बात नही सिर्फ़ काल चलती है,
इस तरह का प्यार प्रिये मुझे समझ आता ना

'
शिशु कहें क्या बताएं प्रेम आजकल का सुनो,
बुरा भले मान जाओ मुझे कभी भाता ना

प्रेम में न टांग अड़ा..

प्रेम की फुहार पड़ी,
प्रेम की गुहार पड़ी,
प्रेम है तो प्रेम से ही
प्रेम की पुकार पड़ी।

प्रेम में क्या लोक-लाज,
प्रेम है तो कल न आज,
प्रेम करो आज अभी,
पहन प्रेम का लो ताज।

प्रेम की ना कोई भाषा,
प्रेम की ना परिभाषा,
प्रेम में जरूरी केवल
दो दिलों की अभिलाषा।

प्रेम को निभाता जा,
प्रेम में तू गाता जा,
प्रेममय हो ये संसार
बात ये बताता जा।

प्रेम में ना छोटा-बड़ा,
प्रेम में हो जो भी पड़ा,
प्रेम से 'शिशु' जी कहें
उस प्रेम में टांग अड़ा

Wednesday, December 9, 2009

बिकने आए मजदूर फिर....

बिकने आए मजदूर फिर
इस इन्तजार में कि-
कभी तो बारी आयेगी उनकी-
आज बिकेंगे तभी कल का चूल्हा जलेगा,
या इन्तजार में ही कल की तरह आज भी सूरज ढलेगा।
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झुण्ड का झुण्ड का राह देखता
कि दलाल (ठेकेदार) आएगा
भले ही आधे पैसे वो खाए लेकिन
कुछ काम तो दिलाएगा।
साहब! मैं काफी दिनों से काम पर नही गया
बच्चे की फीस भरनी है,
मुझे काम देदो मेरे बच्चे को परीक्षा की
तैयारी करनी है।
हां यह ठीक कहता है! अगला बोलता है,
और अपने ख़ुद के रहस्य नही खोलता है
उसका भी तो वही हाल है,
उसके बच्चे और बीबी भी तो बेहाल हैं।
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आज भी कम ही लोग बिके
क्यूंकि रिसेशन यंहा भी है
और इसलिए भी कि-
बल्कि इन पर काम का बोझ तो और भी बढ़ गया है,
दो-दो आदमियों का काम एक मजदूर पर ही पड़ गया है।
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और उधर सरकारी विभाग में बाबू-
कमीशन के पैसे अधिकारियों को बाँट रहा है,
मँहगाई बढ़ गयी है - मँहगाई बढ़ गयी है
कह अधिकारी बाबू को डांट रहा है।
ज्यादा कमाओगे तभी खान से शान दिखापाओगे,
मारुती में वे आते हैं तुम कैसे वैगनार में आ पाओगे।
मुझे तो बच्चे को पढ़ाना है,
उसे तो एमबीए करने विलायत जाना है,
नही तो मैं इसके ख़िलाफ़ हूँ घूस नही लेता,
और याद रखो तुम्हे इसमे से एक पाये नही लेने देता।
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पूंजीपति पूँजी से दबे जा रहे हैं,
सरकार की गंगा में बहे जा रहे हैं।
भाई-भाई कोर्ट-कचहरी के चक्कर काट रहे हैं,
जनता और सरकार दोनों को आपस में बाँट रहे हैं।
'अँधा बनते रेवड़ी ख़ुद अपने को दे'
वाली कहावत उन पर लागू है-
कंपनी के सीओ बनकर सारा पैसा अपनी जेबों में भर रहे हैं,
कम्पनी के कर्मचारी नौकरी चले जाने से मर रहे हैं
और ये टैक्स बचने के चक्कर में बीबियों को
हेलिकैप्टर तोहफे में दे रहे हैं।
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मंत्री मन्त्र मुग्ध होकर करिश्मा देख रहे
जहाज में उड़कर फुर्र से इधर उधर की
के सैर सपाटे में अभ्यस्त हैं
जनता के काम करने के समय तो -
और भी वे व्यस्त हैं।
पूर्तिपूजा की विरोधी मुख्यमंत्री-
अपनी मूर्ती लगाने और उसका अनावरण
करने में व्यस्त हैं-
उनके गुर्गे इधर का पैसा उधर टेंडर में
लगाने में अभ्यस्त है।
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आम आदमी बोल रहा है-
आप
दोमुंहा सांप
वो सब अक्ल के कच्चे
हम, तुम सबमे अच्छे
तुम सब गधे के पूत
हमीं स्वर्ग के दूत

Monday, December 7, 2009

जाना रोज देखने खेल भले भायें न भाएँ।

१.
रेड्डी-पटरी वालों पर अब गिराने वाली गाज-
गाज वो भी सरकारी....
उन्हें हटाने की दिल्ली से हो रही दुखद तैयारी-
तैयारी उन पर भारी...
बोल रही सरकार उन्हें हटना ही होगा.
तभी सफाई खेल-खेल में दिखलाई देगी,
यही आम नागरिक की भागीदारी होगी...

२.
पैदल चलना सड़क पर अब मुश्किल होगा-
अगर पुडिया खाई या पान...
थूक दिया यदि धोके से समझो-
आफत में जान, बनोगे सरकारी मेहमान...
खेल में खाना यदि पुडिया पान-
गले में बांधना साफ़ थूकदान,
तभी तुम सभ्य कहलाओगे...
देश का मान बढ़ाओगे...
देश का मान बढ़ाओगे...

३.
भीख मिलेगी सरकारी,
भिखारी हैं सब भौचक्के-
सुनकर खुशखबरी...
मुफ्त मिलेगा सेल्टर उनको
होगी उससे भी बेखबरी...
शर्त बस इतनी होगी...
सड़क पर भीख ना मांगे,
और जब तक होवें खेल
रात दिन वो ना जागें।
'शिशु' कहें दोस्तों खेल क्या-क्या न कराएं,
काम बंद करवा लोगों से भीख मंगाएं,
जाना रोज देखने खेल भले भायें न भायें।

Friday, December 4, 2009

नए ज़माने का चैनल ही देखे कलुआ की बीबी।

नए ज़माने का चैनल है ऐसा सुना प्रचार,
कार्यक्रम आते कम पर उससे अधिक प्रचार,
पर उससे अधिक प्रचार स्वयं की करें बढ़ाई,
पब्लिक है कनफूज है किसमे कितनी सच्चाई,
'शिशु' कहें आजकल के रेडियो हो या टीवी,
नए ज़माने का चैनल ही देखे कलुआ की बीबी।

ख़बर सुनाई हमने पहले लगी आजकल होड़,
खबरी चैनल कर रहे है आपस में घुडदौड़
आपस में घुड़दौड़ कहें सत्य को झूठ, झूठ को सत्य
खबर दिखाते हैं मनमानी जो होती बिन तथ्य
'शिशु' कहें पब्लिक भी तो है आजकल की बड़ी सयानी
ख़बर सुनाने वालों की करती पब्लिक भी खीचातानी।