बिकने आए मजदूर फिर
इस इन्तजार में कि-
कभी तो बारी आयेगी उनकी-
आज बिकेंगे तभी कल का चूल्हा जलेगा,
या इन्तजार में ही कल की तरह आज भी सूरज ढलेगा।
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झुण्ड का झुण्ड का राह देखता
कि दलाल (ठेकेदार) आएगा
भले ही आधे पैसे वो खाए लेकिन
कुछ काम तो दिलाएगा।
साहब! मैं काफी दिनों से काम पर नही गया
बच्चे की फीस भरनी है,
मुझे काम देदो मेरे बच्चे को परीक्षा की
तैयारी करनी है।
हां यह ठीक कहता है! अगला बोलता है,
और अपने ख़ुद के रहस्य नही खोलता है
उसका भी तो वही हाल है,
उसके बच्चे और बीबी भी तो बेहाल हैं।
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आज भी कम ही लोग बिके
क्यूंकि रिसेशन यंहा भी है
और इसलिए भी कि-
बल्कि इन पर काम का बोझ तो और भी बढ़ गया है,
दो-दो आदमियों का काम एक मजदूर पर ही पड़ गया है।
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और उधर सरकारी विभाग में बाबू-
कमीशन के पैसे अधिकारियों को बाँट रहा है,
मँहगाई बढ़ गयी है - मँहगाई बढ़ गयी है
कह अधिकारी बाबू को डांट रहा है।
ज्यादा कमाओगे तभी खान से शान दिखापाओगे,
मारुती में वे आते हैं तुम कैसे वैगनार में आ पाओगे।
मुझे तो बच्चे को पढ़ाना है,
उसे तो एमबीए करने विलायत जाना है,
नही तो मैं इसके ख़िलाफ़ हूँ घूस नही लेता,
और याद रखो तुम्हे इसमे से एक पाये नही लेने देता।
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पूंजीपति पूँजी से दबे जा रहे हैं,
सरकार की गंगा में बहे जा रहे हैं।
भाई-भाई कोर्ट-कचहरी के चक्कर काट रहे हैं,
जनता और सरकार दोनों को आपस में बाँट रहे हैं।
'अँधा बनते रेवड़ी ख़ुद अपने को दे'
वाली कहावत उन पर लागू है-
कंपनी के सीओ बनकर सारा पैसा अपनी जेबों में भर रहे हैं,
कम्पनी के कर्मचारी नौकरी चले जाने से मर रहे हैं
और ये टैक्स बचने के चक्कर में बीबियों को
हेलिकैप्टर तोहफे में दे रहे हैं।
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मंत्री मन्त्र मुग्ध होकर करिश्मा देख रहे
जहाज में उड़कर फुर्र से इधर उधर की
के सैर सपाटे में अभ्यस्त हैं
जनता के काम करने के समय तो -
और भी वे व्यस्त हैं।
पूर्तिपूजा की विरोधी मुख्यमंत्री-
अपनी मूर्ती लगाने और उसका अनावरण
करने में व्यस्त हैं-
उनके गुर्गे इधर का पैसा उधर टेंडर में
लगाने में अभ्यस्त है।
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आम आदमी बोल रहा है-
आप
दोमुंहा सांप
वो सब अक्ल के कच्चे
हम, तुम सबमे अच्छे
तुम सब गधे के पूत
हमीं स्वर्ग के दूत
पूर्तिपूजा की विरोधी मुख्यमंत्री-
ReplyDeleteअपनी मूर्ती लगाने और उसका अनावरण
करने में व्यस्त हैं-
उनके गुर्गे इधर का पैसा उधर टेंडर में
लगाने में अभ्यस्त है।
सटीक अभिव्यक्ति है शुभकामनायें