विकलांगता अभिषाप है या वरदान यह बात मेरे समझ से परे है। परन्तु यह कहना सही होगा उनके बारे में ‘‘हम भी इंसान हैं तुम्हारी तरह, न कुछ खास और न असाधारण। चलो इस सब को कुछ देर के लिए अलग रखे और देखें आखिर विकलांगता है क्या?
शरीर के किसी अंग में यदि कोई विकृति आ जाती है, आम बोलचाल की भाषा में उसे विकलांगता कहते हैं। जैसे चलने में परेशानी , दिखाई न देना, सुनाई न देना और बोलने में असमर्थता। लेकिन कुछ विकलांगत ऐसी है तो किसी को दिखाई नहीं देती, मतलब यह कि वह आंतरिक होती है। उसे समझना भी थोड़ा कठिन है। इसे कहते हैं मानसिक विकलांगता।
आजकल मानसिक विकलांगता काफी बढ़ रही है। शारीरिक विकलांगता को वैज्ञानिक तरीकों से ठीक किया जा रहा है या कहें उसे काफी हद तक छिपाया जा रहा है। सफलता भी मिली है इसमें। लेकिन मानसिक विकलांगा दिनों-दिन बढ़ती जा रही है। आज प्रति हजार नवजात शिशुओं में 1।5 से 3.5 तक बच्चे इससे पीड़ित हैं। गर्भावस्था में तनावपूर्ण जीवन इसका प्रमुख कारण है।
दूसरा प्रमुख कारण है गरीबी। गरीबी और विकलांगता का संबंध उसी तरह का जिस तरह अमीरी और गरीबी का। यहां तक बात तो ठीक थी लेकिन अब इसने अमीर वर्ग तक अपने हाथ फैलाने शुरू कर दिये हैं। jankar बताते हैं इसका कारण भौतिकवादी सोच है। भूमण्डलीकरण के दौर में हर इंसान सुख-समृद्धि चाहता है। और यह सुख-समृद्धि है-सामाजिक ऐशो -आराम के संसाधन, सामाजिक प्रतिष्ठा रौब-रूतबा। जाहिर सी बात है इतना सब कुछ पाने के लिए इंसान को जद्दोजहद तो करनी पड़ेगी। जिससे इंसान को अपनी क्षमता से अधिक काम करना पड़ रहा है। इतना ही उसे देर तक और दबाव में भी काम करना पड़ रहा है। शायद अब इसे और भी गंभीरता से लिया जा रहा है। बात यह है कि धनी वर्ग इस बीमारी को सबसे घातक बता रहा है। गरीब का क्या उसे तो समझौते करने की आदत जो बन गयी है। वह तो बस यही सोच कर तसल्ली कर लेता है हम तो गरीब हैं। बस।
जो भी हो इसे रोकने के तरीको पर अब गौर किया जाने लगा है। अस्पतालों में अब मनो चिकित्स की niyuktiaayan बढ़ाई जा रही हैं। सरकारी और अर्ध-सरकारी कम्पनियां बाकायदा अपने यहां मनोचिकित्स (सलाहकार) नियुक्त कर रही हैं। कारपोरेट जगत इससे कहीं बढ़कर आगे काम कर रहा है। वहां तो बाकायदा जिम, स्वीमिंग पुल, खेल और विभिन्न मनोरंजन के साधन उपलब्ध कराये जा रहे हैं। और हो भी क्यों न, ज्यादातर बीमारियां भी तो यही दे रहे हैं। यह तो वही बात हुई तुम्हीं ने दर्द दिया तुम्हीं दवा दोगे। जैसा कि सर्व विदित है कि स्वयंसेवी संस्थाएं भी इस में काफी सक्रिय होकर काम कर रही हैं।
हमें तो बस यही उम्मीद है यह समस्या धीरे-धीरे बढ़ने की बजाय जल्दी से जल्दी समाप्त हो जाये।
Dear Shishupal
ReplyDeleteAAJKAL KI BHOTIK DUNIYA MEIN INSAAN INSAAN KE UPAR PER RAKH KAR BHAGNE KI KOSHISH KAR AHA HAI AUR TUMNE ISKE BAWAJOOD EK KONE MEIN MEIN KUCH PAL RUK KAR MAN KE VICHARON KO UDELNE KI JO SHURUAAT KI HAI, MEIN USAKE LIYE TUMNHE BADHAI DENA CHAHTA HU.
BAHUT ACCHA VISHAY CHUNA "MANSIK VIKLANGATA" AUR LIKHA BHI SAHI PAR DOST THODA SA KUCH JAGAHON PAR BHASHA SHAYAD MERI SAMAJH SE UPAR RAH GAYI.
AB JAB MEIN BHI TUMAHARE SAATH TUMHARE VICHARON KO PADNE KI KOSHISH KAROONGA TO SHAYAD SAMJHNE LAGOONGA. LIKHTE RAHO DOST
jAHAN TAK MANSIK VIKLANGATA KI BAAT HAI TO AAJ KAL HAR INSAAN KISI NA KISI ROOP MEIN VIKLANGATA KE LAKSHAN DIKHA RAHA HAI, SHAYAD HUM TUM BHI KABHI KAHIN AISA KARTEIN HO, PAR SAHI KAHA HAI SHARIRIK VIKLANGATA KO DOOR KARNE KE PRAYAS JAARI HAI AND KAFI HAD TAK DOOR BHI KAR DIYA GAYA HAI PAR MANSIK KOI BATANA HI NAHI CHATA, BATAYEGA BHI KAISE WO KHUD SAMAJ MEIN CHOTA HO JAYEGA. ISLIYE YE DINO DIN BAD RAHI HAI
MEIN AISI UMEED KARTA HU KI EK DIN AISA BHI HO JAB HUM KAHEIN
"KAL HO NA HO"..............
सुंदर अभिव्यक्ति, सुन्दर भाव
ReplyDeleteDear SHISHUPAL,
ReplyDeleteBhut achchi nazar samaz par dali
lakin kaya aap jantay hain viklang logo ki sabsay badi paresani hai hamary samaz ki soch (Nazriya) viklangata ko chupana hal nahi hain us nazariye ko badalana zaruri hai jo ekviklang vykti ko hin samzhnay ko mabzur karta hain uskay liyae hum Garib bhi utabny hi zimmaryvar hain jitnay ki amir
dear shishupal
ReplyDeletesabse pahle to me aap ko thanks kahana chhata hun ki aapne "mansik viklangata" vishay chuna.... me bhi special field se juda hu... shishupal me yahi kahana chhata hu ki vikalangata ke bare me aap jante ho ya me janta hu.. par sabhi log nahi jante. to me kahana chahata hu ki iske liye sabhi logo ko jagrook hone ki jarurat hai... aur media ko bhi sahyog dena chahiye.