Sunday, October 19, 2008

अगले जनम मोहि गदहा बनइयो.... (हास्य व्यंग)



इंसान को यदि आज तक कुछ मुफ्त में मिलता आ रहा है तो वह ताज है गधे का। साधारण सी बात है आम बोलचाल में ही भी किसी न किसी को गधा कह दिया जाता है। ऐसा नहीं कि किसी गधे को ही गधा कहा जाता है (ज्यदादातर लोग सोचते

हैं कि बेवकूफ इंसानों के लिए ही गधा शब्द बना है) लेकिन मेरी समझ में तो विद्वान मनुष्य इस पदवी से पहले नवाजे जाते हैं। आज की बात मैं नहीं कह सकता लेकिन पुराने समय में अभी कोई 10 साल पहले स्कूल में यदि कोई पहली पदवी मिलती है तो वह है गधे की मिलती थी।

बहुधा लोग अपने आप को ही गधा कहने लगते हैं। ‘‘क्या है गधा हूं हैं’’ ऐसा कम ही लोग कहते हैं। ज्यादातर लोग कहते हैं यार मैं तो बस गधा हूं इधर ऑफिस में और उधर घर में। शादीशुदा इंसान को तो और भी गधा समझा गया है और यदि शादी नहीं करे तो भी गधा कहा गया है। लेकिन गधे को क्या उसकी शादी हो या न हो फिर भी वह गधा है।

वास्तविकता यह है कि ज्यादा काम करने वालों को गधा कहा जाता है। यार-दोस्त कहते हैं - क्या यार गधे ही तरह दिन भर काम करने रहते हो। और यह भी सत्य है कि यदि गलती से भी कोई गलत काम हो जाये तो भी कहा जाता है कि गधा है क्या इतना काम भी नहीं कर सकता। लोग तो यहां तक कह देते हैं गधे हो क्या देख कर काम नहीं कर सकते। मैं कहता हूं भाई इसमें देखने वाली तो कोई बात ही नही हो सकती, यह तो सभी को मालूम है कि गधा अंधा नहीं होता, तो आप किसे गधा कहेंगे गधा कहने वाले को या गधा कहे जाने वाले को। शायद ही किसी ने सुना होगा कि कामचोर इंसान को गधा कहा गया हो। मैं तो यह कहता हूं कि ज्यादा काम करने वाले को गधा कहा जाता है।

मौका परस्ती लोग तो गधे को बाप समझते ही हैं लेकिन ज्यादातर भारतीय नारियों ने अपने पतियों को गधे की पदवी दे रखी है। वे अपने बेटों से कहती हैं आने दो अपने गधे बाप को उल्लू कहीं का। ठीक से एक काम भी नहीं कर सकता। अब वो गधी तो हैं नहीं इसलिए वो ऐसा बोलती हैं। उनका मतलब होता है बाप गधा। बेटा उल्लू। मतलब साफ बेटा भी गधा और बाप भी उल्लू। बेटा यह सोचकर संतोष कर लेता है चलो मां ने कम से कम हमें गधा तो नहीं और बाप यह समझकर संतोष कर लेता है कि चलो कम से कम मैं उल्लू तो नहीं हूं। हां यह बात अलग है कि दोनों गधे हैं और दोनों उल्लू।

उनका किसी भी धर्म और मजहब से कोई लेना देना नही। उन सबका तो मालिक एक है और वह है इंसान। इधर इंसान को देखो हिन्दू भी कहता है सबका मालिक एक यानी भगवान। मुसलमान कहता है सबका मालिक एक यानी खुदा और ईसाई कहता है सबका मालिक एक यानी ईसा मसीह वगैरा...वगैरा॥ लेकिन गधा। मैं फिर एक बार कहूंगा कि गधा तो गधा है। गधे का किसी देश और भाषा से भी मतलब नहीं है हां यह जरूर कह सकते हैं कि भारत में गधे को गधा कहा जाता है वहीं विदेश में उसे दूसरे नामों से पुकारा जाता है पर क्या फर्क पड़ता है अनुवाद करने के बाद तो उसे भी गधा ही कहा जायेगा। संस्कृत का यह श्लोक शायद गधों के लिए ही लिखा गया होगा- ‘‘तु वसुधैव कुटुम्बकम’’।

अब यदि बात की जाये कि जानवरों में सबसे सीधा जानवर कौन है तो लोग यही कहगें कि गधा। कुत्ता कितना ही वफादार क्यों न हो मालिक को काट ही लेता है यह एक मुहावरा है और मुहावरा कभी गलत नहीं बना, ऐसा सयाने लोग कहते हैं। किसी भी दुष्ट इंसान के लिए गधे का प्रयोग नहीं किया गया उसे कुत्ता, सुअर, सांप, बिच्छू, सब कह सकते हैं लेकिन क्या गधा कहेंगे, जवाब आयेगा नहीं। फिर भी लोग कुत्ते की जगह गधे को नहीं पालते। बात यह है कि उनके मन में एक डर बैठ गया है कि यदि उस गधे को पाला तो इस गधे (पालने वाले) की घर से छुट्टी।

यह गधा ही है जो पुराने समय औरतों के सम्मान के लिए अपनी पीठ पर उन सभी अत्याचारियों और जुल्म ढाने वालों का बोझ उठाता आ रहा है। वरना क्या यह बात ठीक है कि एक सीधे सादे जानवर पर यह करना उचित है कि नहीं। शायद इसलिए बिठाते हैं कि गधा बेवकुफ है। मुझे यह बात आजतक नहीं समझ में आयी कि आखिर गधे पर ही क्यों, शेर पर या चीते पर क्यों नही। रेगिस्तान में होने वाली ऊंट दौड़ के लिए उसे रेगिस्तान भेज दो उस पापी को। इस बेचारे गधे पर क्यों। इतिहास गवाह है कि सदियों से लेकर आज तक किसी गधे ने किसी भी इंसान को कोई नुकसान पहुंचाया हो।

इस सबसे मुझे एक बात समझ में आ गयी कि इंसान से ज्यादा गधा बने रहने में अच्छाई है, क्योंकि जब मनुष्य योनि में जन्म लिया तब तो गधा कहा ही जाता है और यदि गधा बनेगें तो भी गधा ही कहा जायेगा।

प्रभु मेरी भक्ती यदि सच्ची।
बात करूं मै अच्छी-अच्छी।।
तो ऐसा दे दो वरदान।
गधा बनू मैं गधे समान।।

4 comments: