उसे मौत से बचाने की बजाय जीने दो। जीवन संास लेना हीं बल्कि कर्म है। अपनी इंद्रियों का अपने दिमाग का, अपनी क्षमताओं का और अपने अस्तित्व का को चेतन बनाये रखने वाले प्रत्येक भाग का इस्तेमाल करना है। जीवन का अर्थ उसकी लम्बाई में नहीं, जीने के बेहतर ढंग में अधिक है। एक आदमी सौ साल जीने की बाद कब्र में जा सकता है। लेकिन उसका जीवन निरर्थक भी हो सकता है। अच्छा होता वह जवानी में मर गया होता।
No comments:
Post a Comment