Saturday, July 31, 2010

कविता उसको अर्पित है ये, जो आलोचक है पहला

इंग्लिश जितनी अच्छी इनकी
उतनी ही प्यारी हिंदी
प्रूफ रीडिंग भी करते अच्छी
पकड़ तुरत लेते बिंदी

कैसे खर्चे हों ऑफिस में
बहुत बड़े ये ज्ञानी हैं
कितने ही गुस्से में हो पर
मीठी बोले बानी है

होता क्या है मैनेजमेंट
ये लोगों को सिखलाते
है क्या टाइम मैनेजमेंट?
खुद भी टाइम पर आते

एनजीओ की ओडिट के
ये बहुत बड़े ही ज्ञाता है
ऑफिस का माहौल हो कैसा
इनको अच्छा ये आता है

'शिशु' नहीं इन पर लिख सकता
'शिशु' अभी तो बच्चा है.
ज्यादा अगर जानना चाहो तो
फेसबुक ही सबसे अच्छा है


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Raj Kapil

Thursday, July 29, 2010

क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है!

क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है!
बिन अदालत औ मुवक्किल के मुकदमा पेश है!!

आँख में दरिया है सबके
दिल में है सबके पहाड़
आदमी भूगोल है जी चाह नक्शा पेश है!
क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है!
हैं सभी माहिर उगाने
में हथेली पर फसल
औ हथेली डोलती दर-दर, बनी दरवेश है
क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है!
पेड़ हो या आदमी
फर्क कुछ पड़ता नहीं
लाख काटे जाइये जंगल हमेशा शेष है,
क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है!
प्रश्न जितने बढ़ रहे हैं
घट रहे उतने ज़वाब
होश में भी एक पूरा देश ये बेहोश है!
क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है!
खूटियों पर ही टंगा
रह जायेगा क्या आदमी?
सोचता, उसका नही यह खूटियों का दोष है. 
क्या गजब का देश है यह क्या गजब का देश है!

(उपरोक्त कविता स्वर्गीय श्री सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की लिखी हुए है, इसे मैंने कई बार पढ़ा है.)

Wednesday, July 21, 2010

एक परमानेंट प्रेगनेंट औरत ने भगवान् से कर-जोड़ कर कहा

एक परमानेंट प्रेगनेंट औरत से जब नहीं गया रहा,
तो उसने भगवान् से कर-जोड़ कर कहा-
भगवान् मुझे अब और बच्चे नहीं चाहिए,
बच्चे भगवान् की देन हैं कहने वाले इस अत्याचारी-
झूठे इंसान से मुझे बचाइए.

यह सुन उसका शौहर बोला,
बोला क्या एक रहष्य खोला-
या ख़ुदा इसमें मेरा कोई नहीं है दोष
सरकारी योजना की जानकारी मुझे देर से मिली
इसीलिये मुझे खुद भी तो है बहुत रोष.

ख़ुदा की क़सम मैं आपसे सच-सच बताऊंगा
आप तो ख़ुदा हैं आपसे भला मैं क्या छुपाऊंगा
आप तो जानते हैं कि मेरी इस कमाई में
परिवार नियोजन प्रसाधन कैसा आ पायेगा,
जबकि नरेगा की कमाई तो प्रधान का भाई खुद उठाएगा...2

और हाँ! अभी कल की ही बात है
डाक्टर ने मुफ़्त सलाह के नाम पर
मुफ़्त सब्जी ले ली,
और बोले ये सुविधा ही तुझे
मुफ़्त में परिवार नियोजन की सुविधा दिलाएगा
और अगर नहीं माना तो फिर
पहले की तरह पछतायेगा....

यह सुन उस परमानेंट प्रेगनेंट औरत ने कहा-
भगवान् मेरे पति को बचाइए,
और आशीर्वाद स्वरुप मुझे चार बच्चे और चाहिए
सुना है सरकार-
अस्पताल में बच्चे पैदा करने वाली माओं को
पैसे देती है,
मुझे भी सरकार से मुफ़्त में पैसे दिलवाइये...

गांधी जी के देश में, नेता जी के वेश में , हो रहा हल्ला-गुल्ला, मिला नहीं हमको रसगुल्ला...

गांधी जी के देश में,
नेता जी के वेश में ,
हो रहा हल्ला-गुल्ला
मिला नहीं हमको रसगुल्ला...

भ्रष्टाचार जवान हैं,
मंहगाई का मान है,
इससे तौबा वल्ला-वल्ला..
मिला नहीं हमको रसगुल्ला...

जाति धर्म के नाम से
मिलते वोट हैं दाम से
कहते शान से शम्सुल्ला
मिला नहीं हमको रसगुल्ला...

होती दुर्घटना है रोज
क्यूँ होती ये होती खोज
अबतब कोई केश ना खुल्ला 
मिला नहीं हमको रसगुल्ला...

रिश्वत लेते हैं कुछ जज
जाते काशी, काबा हज
करके खाली 'शिशु' का गल्ला
मिला नहीं हमको रसगुल्ला...

Wednesday, July 14, 2010

देखा! पहली बारिश में ही दिल्ली की दिख गयी औकात

देखा! पहली बारिश में ही दिल्ली की दिख गयी औकात,
खेल! खेल में देखी जायेगी तब तब की और है बात.

खेल! खेल में ही हो गयी है देखो धोनी की चांदी,
खेल-खेल में बढ़ गयी देखो दिल्ली की आबादी.

आठ हाँथ वाले ऑक्टोपस बाबा खेल में हुए महान,
खेल खेल ही में दिल्ली का बढ़ जाएगा विश्व में मान.

खेल में खुल जाए ना पोल, धनवर्षा होती चहुँओर,
मंहगाई-मंहगाई खेल में जनता बस करती है शोर.

'शिशु' ने ठाना है इस खेल में तोता देसी पालूंगा,
गाँव जा रहा अगले हफ्ते वहीं गाँव से ला लूँगा.

Tuesday, July 6, 2010

खेल-खेल में गुल्ली-डंडा भी प्रसिद्ध हो जाता

'शिशु' कल्पना करता है यदि-
खेल हमारे होते गाँव,
घर-मकान होते सब अच्छे
पूरे गाँव को मिलती छाँव.

सड़कें बनती खेल गाँव सी
मेट्रो भी चल जाती,
अभी अँधेरा रहता हरदम
तब बिजली हर घर आती,

पुलिया ऊपर बनता पुल
नदी कराई जाती साफ़,
अस्पताल भी खुल जाते तब
साफ़-सफ़ाई होती आप.

रोजगार भी बढ़ जाता कुछ-
होटल लोग खोलते,
अभी बोलते गाँव की भाषा
तब इंग्लिश भी बोलते.

खेल-खेल में गुल्ली-डंडा
भी प्रसिद्ध हो जाता
निश्चित तौर पे कहता हूँ मैं
गोल्ड मेडल मिल जाता

Thursday, July 1, 2010

आदाब अर्ज़ है!

आदाब अर्ज़ है!
राष्ट्रमंडल खेलों पर शीला दीक्षित का हालिया बयान-
खेल में मंहगाई झेलना आपका फ़र्ज़ है!
आदाब अर्ज़ है!

विपक्ष की पार्टी भाजपा का कांग्रेस पर प्रहार-
कांग्रेस के शासन में देश पर बढ़ रहा क़र्ज़ है.
आदाब अर्ज़ है!

मंहगाई मुद्दे पर कांग्रेस की स्थित-
ज्यों-ज्यों किया इलाज़ त्यों-त्यों बढ़ा मर्ज़ है.
आदाब अर्ज़ है!

राष्ट्रमंडल खेलों पर आम-जनता-
खेल हों या ना हों हमें नहीं गर्ज़ है.
आदाब अर्ज़ है!

राजनीति और राजनेताओं पर 'नज़र-नज़र का फेर'-
राजनीति है अच्छी बात पर नेताओं से हर्ज़ है.
आदाब अर्ज़ है!

एक बात ही अब समान है 'शिशु' कड़वा सच बतलाता

अब बदला समाज और बदले सारे रीति-रिवाज,
जाति प्रथा भी बदल गयी अब गाँव हमारे आज,
पहले गाँव हमारे थे सब जाति-समाज के टोला,
'चमरौधा' के प्रमुख व्यक्ति थे गयादीन और भोला,
बहुत एकता थी 'अरखाने' में 'आरख' थे रहते,
पर 'पठकाने' के 'पाठक' के कष्टों को थे सहते,
छत्तीस बुद्धि 'नाई' होते, 'नौवा टोला' था मशहूर,
उसके पास था 'मालिन टोला', कुर्मी टोला न था दूर,
गाँव किनारे अंतिम छोर पे रहते थे फिर सभी 'कुम्हार',
'केवट' और 'कहार जाति' के घर थे नदी किनारे पार
अब जब संख्या बढ़ गयी इतनी 'ठाकुर', 'धोबी' रहते पास,
कहते हैं परधान गाँव के अब सब आम न कोई ख़ास
पहले शादी के खाने में पंडित जी पहले थे खाते,
सिस्टम बफर लग गया जबसे गयादीन पंडित संग खाते.
पहले ब्राम्हण दीखता जो भी उसके चरण छुए जाते,
अब भोले और गयादीन जी जय-जय भीम बोल आते,
पंडित जी पहले बच्चों का नाम करण थे करते,
अब हर कोई खुद अपनों के खुद ही नाम रखा करते.
पहले छुआ-छूत था इतना 'मेहतर' यदि दिख जाता
गाली खाता 'सूबेदार' की उस रस्ते से फिर ना आता
अब सफाई-कर्मी में पिछड़ी-अगड़ी सभी जाति के लोग
मिला सभी को समान अवसर कहते 'चमरौधा' के लोग
एक बात ही अब समान है 'शिशु' कड़वा सच बतलाता
गरीब अब भी गरीब ही है मुझे समझ ये ही आता

Wednesday, June 16, 2010

जीवन-मरण, भाग्य और कर्म,सब कुछ उसके हाथ...

जीवन-मरण, भाग्य और कर्म,
सब कुछ उसके हाथ.
शोर-शराबा मत कर बन्दे,
क्या जायेगा साथ.


गीता में भगवान कृष्ण ने
अर्जुन को उपदेश दिया
एंडरसन का था कुछ दोष,
अब अर्जुन ने सन्देश दिया.





युद्ध भूमि में ज्ञान बांटकर
कृष्ण हुए थे और महान.
अर्जुन सिंह का उसी तरह ही
कांग्रेस में बढ़ गया है मान

कौरव दल भाजपा बनी अब
शकुनी बन मीडिया है आई,
कितने मरे अपाहिज कितने
ख़बरे रोज-रोज दिखलाई.

सीसे के घर जिनके ज़ानी
वो भी पत्थर फेंक रहे
इस भयभीत कांड पर देखो
रोटी सब दल सेंक रहे

मंदिर-मस्जिद के मुद्दे पर
मरने वाले हुए शहीद
दंगे जिसने भी करवाए
वो गा रहे गैस के गीत

मनमोहन जी ने फरमाया
गीता लिख मुझको दिखलाओ
पन्दरह दिन का समय मिला है
मंत्री जी सच-सच बतलाओ


'शिशु' ने देखी जिस दिन से
ये तस्वीर निराली सी
रात-रात ना सोया तब से
बीतीं रातें काली सी

Monday, June 14, 2010

बाबा ने फिरसे दिखलाई अपनी कुछ करतूत

बाबा ने फिरसे दिखलाई अपनी कुछ करतूत,
भोली-भली जनता फंस रही, गए सयाने छूट.

बाबा धर्माचारी है ये, अग्नि परीक्षा पास हुए,
नए-पुराने भक्त आजसे पक्के उनके दास हुए.

ग्लैमर का भी बाबा जी पर ऐसा चढ़ा बुखार,
जितने भी खबरी चैनल हैं उनका करें प्रचार.

बाबाजी की चेली बाबा का करती गुणगान
इंग्लिश बोले फर्राटे से प्रेस में करती मान

'शिशु' कहें अब बाबा बनने में ही यार भलाई है,
बाबा बन खाओ फलफ्रूट दूध में बहुत मलाई है.

जो न हँसे उसको ले लटकाओ सूली पर..

रहो सदा संतुष्ट घोर वर्षा कि धूप में,
गर्मी हो या शीत, लालिमा रखना मुख पर.
नफ़रत मुझको कमजोरी और पीतवर्ण से,
जो न हँसे उसको ले लटकाओ सूली पर..

- प्लेखानव (रूस के क्रांतिकारी कवि)

गांधी जी के देश में सब एंडरसन का जाप करो...

एंडरसन मुद्दे पर कांग्रेस के प्रणव मुखर्जी का बयान -
भूल हुयी थी भूल से जी भूल-चूक माफ़ करो,
गांधी जी के देश में सब एंडरसन का जाप करो...

शील दीक्षित दिल्ली में कामनवेल्थ गेम-
अभी नहीं तो कभी नहीं फिर हो पायेंगे खेल,
शादी मत कर अब खेलकूद में ना माना तो जेल.. .

नरेन्द्र मोदी एंडरसन मुद्दे पर-
हुए गोधरा में दंगे जो उस पर मैं बेदाग़,
अर्जुन सिंह खुद ही बोले थे एंडरसन तू भाग...

नितीश कुमार अखबार में छपी फोटो विवाद पर-
किससे पूंछ के फोटो छापी, दोस्त हमें क्यूँ बतलाया,
माफ़ नहीं कर सकता अब मैं जबकि चुनाव पास आया...

तलाक के जल्दी निपटारे पर-
अब तलाक होगा आसान, सुन खुश भाए वे नरनारी,
जिनको लेना था तलाक या जिनने की थी तैयारी...

Sunday, June 13, 2010

हम दोनों ने रिश्वत दी थी तभी नौकरी पाए.

मैं भी कोटे में आता हूँ, तू भी कोटे में आता,
मैं भी रिश्वत हूँ खाता, तू भी रिश्वत है खाता.

रिश्वत देकर दसवीं में मैंने नंबर बढवाए,
तेरे बाबूजी भी तो सुन पैसे देकर आये.

हमदोनों ने नक़ल साथ की, तब बीए. में आये,
और हम दोनों ने रिश्वत दी थी तभी नौकरी पाए.

रिश्वत देकर मिली नौकरी, रिश्वत की करता पूजा,
बातें रिश्वत की ही करता काम नहीं करता दूजा.

तूने भी पक्का मकान इस रिश्वत से बनवाया,
दो ही साल हुए हैं तुझको एसी कार तू लाया

तूने शादी की तो दहेज़ में एसी कार है पायी
मेरी बीबी भी दहेज़ में पांच लाख घर लायी

इसीलिये अबसे हमदोनों कोटे की बात उठाएंगे
अगर उठाई बात नहीं तो बच्चे ना पढ़ पायेंगे.

Thursday, June 10, 2010

जूझ रहा इस तरह जल बिना जैसे हूँ मैं मीन

जूझ रहा इस तरह जल बिना जैसे हूँ मैं मीन,
बिना नहाये ऑफिस जाता ऑफिस भी जलहीन.

नित्यक्रिया को सुगम बनाने एक बिसलरी लाया,
दिन भर पीता पेप्सी-कोला प्यास बुझा ना पाया.

घर में खाना बनता न अब, होटल में ही खाता,
१२ बजे रात में जगता फिर भी पानी ना आता.

कपडे धोबी से धुलवाता लेता वो है दूने दाम,
पानी की कीमत अब जानी पानी का अब नाम.

काश! दोस्तों, इन्टरनेट से पानी घर में आता,
पानी की उन बौछारों से सब जग पानी हो जाता.

समाज सामाजिक संबंधों का जाल है!

मैकाइवर एंड पेज ने कहा कि-
समाज सामाजिक संबंधों का जाल है!
पर आजका प्रश्न यह है क्या आजकल के
टूटते रिश्तों से किसी को मलाल है!
आज हर इंसान की बिगड़ी हुयी चाल है.
कहा तो यहाँ तक जाता है कि अब बड़े-बुजुर्गों की-
बच्चों के सामने गलती नहीं दाल है.
और ऐसा हमारे देश का ही नहीं-
बल्कि पूरे विश्व का हाल है!

Wednesday, June 9, 2010

घर लेने वालों को वेबपेज इजीहोमरेंटिंग है भाया

घर चाहो किराए से लेना तो खोलो इन्टरनेट
हो गुडगाँव, नोयडा, दिल्ली अच्छे मिलेंगे रेट
दिल्ली अच्छे मिलेंगे रेट वेब का पता बताता
इजीहोमरेंटिंग* हैं नाम याद जो जल्दी से आता
'शिशु' कहें दोस्तों अब युग कम्पूटर का आया
घर लेने वालों को वेबपेज इजीहोमरेंटिंग है भाया
http://www.easyhomerenting.com

Friday, May 7, 2010

हैं भ्रष्ट कौन विभाग? जिसमें घूस ली जाती नहीं!

हैं भ्रष्ट कौन विभाग? जिसमें घूस ली जाती नहीं,
गिनकर कहूं क्या आपसे, हैं गिनतियाँ आती नहीं.
चाचा कहीं मामा कहीं जो घुस गए विभाग में,
खुद साध के हित बोलते, यह विभाग जाए आग में.

यह बात दीगर है कि कुछ तो दिनदहाड़े लूटते, 
हैं कुछ विभाग जोकि बन मधुमक्खियाँ बन टूटते.  
हाँ नौकरी के नाम पर तो घूस ली जाती कहीं, 
पर उच्च शिक्षा नाम पर तो घूस ली जाती वहीं,  

ऐसे भी कुछ विभाग हैं जो घूस लेते शान से,
कुछ बाँट तो हिस्सा भी लेते मंदिरों के दान से.
रिश्वत बिना अब मंदिरों में काम चलता हैं नहीं, 
दर्शन अगर चाहो तुरत कम दाम चलता हैं नहीं. 

रेल या फिर खेल या फिर शैक्षणिक संस्थान हो,
घूस चलती हर जगह फिर कोई भी स्थान हो.
रेल में विकलांग डिब्बा घूस का पर्याय है,
आम आदमी चढ़ गया तो घूस फिर अनिवार्य है.

पुलिस हो या हो मिलेटरी, है रिश्वतों के जाल में, 
अब देश सेवा हो रही है आज ऐसे हाल में.
है जेल में भी घूस का अपना ठिकाना जान लो, 
माचिस नहीं बीडीं नहीं सेलफोन मिलता मान लो. 

स्कूल के बाबू बड़े जो हैं वजीफ़ा बांटते,
यदि घूस दी उनको नहीं तो जोर से हैं डाँटते.
न्यायालयों की बात करना तो बड़ा अपराध है, 
कुछ एक को तुम छोड़ दो बाकी सभी अपवाद हैं. 

यदि चाहते गरीब बनना घूस कुछ दे दीजिये,
सरकार सुविधा दे रही जो, वो मुफ्त में ले लीजिये.   
साठसाला हों, भले विकलांग, विधवा हो कोई,
चाहते पेंशन अगर तो घूस दे, ले लीजिये.

है नाम भी उसका अलग सुविधा शुल्क कुछ बोलते, 
जब तक न दोगे दाम पूरा भेद ना वो खोलते. 
कुछ चाय-पानी हो अभी वे बोलते बेशर्म हैं, 
कुछ दीजिये दिल खोलकर अब घूस लेना धर्म है. 

यदि काम करवाना अभी तो जेब खाली कीजिये,
जजमान हो मेहमान तुम उपहार कुछ दे दीजिये.
हमको जरूरत हैं नहीं भगवान् ने सबकुछ दिया, 
बच्चे के डोनेशन की फीस बस आप ही भर दीजिये.

अब लिख नहीं सकता 'शिशु' है घूस की माया बड़ी, 
यह लेखनी भी घूस लिखकर घूस लेने पर अड़ी.
अब आप ही बतलाइये कुछ तो जुगत लगाइए, 
हो घूस देना बंद कैसे लिखकर हमें समझाइये. 

Wednesday, May 5, 2010

हट धत्त, तुझे धिक्कार है, तुझको न यदि स्वीकार है...

हट धत्त, तुझे धिक्कार है 
तुझको न यदि स्वीकार है 
तू प्रेम का स्वरुप है -
तुझसे ही ये संसार है. 

भाषा सभी सामान हैं,
बस लफ़्ज का ही फ़र्क है 
यदि इसके चक्कर में पड़ा 
तो समझ बेड़ा ग़र्क है

है धर्म क्या? और रीति क्या?
तू क्यूँ रिवाज़ो में पड़ा,
बस प्यार के दो बोल अच्छे 
इसके लिए तू है अड़ा.

तू पार्टी के नाम पर -
चन्दा उगाही कर रहा, 
और वोट लेने के लिए 
जनता को केवल ठग रहा. 

कर जोड़ विनती आपसे,
और आपके बाहुबली बाप से 
कुछ कर रहे अच्छा करो- 
तुम मत बनो सब सांप से

Tuesday, May 4, 2010

कौन हो जो मौन होकर जुल्म सहते जा रहे...

कौन हो? जो मौन होकर
जुल्म सहते जा रहे, 
काम करते हो कठिन तुम-
पर न वेतन पा रहे.  

दौर है अब चापलूसों का- 
सुनो हे मौनधारी,
इसलिए अबसे अभी तू-
बन उन्ही का तू पुजारी

और यदि तू बोलता है 
भेद यदि तू खोलता है 
तो समझ पछतायेगा
फिर सैलरी की बात मत कर- 
हाथ कुछ ना आयेगा 

यदि बात मेरी मानता है 
काम जितना जानता है 
उसको पूरा कर ख़तम 
खुद भी तू जी अब शान से-
मान से अभिमान से 

सुन दूसरो के काम में 
और उनके दाम में 
तू न कर अब से सितम
अब काम कर अपना ख़तम.
अब काम अपना कर ख़तम

पिल्ले को कुछ हुआ अदालत में फिर होगी पेशी

पिल्ला पाला पालतू यह महँगा है लो जान,
कष्ट इसे ना हो कोई सुनो लगा तुम कान,
सुनो लगा तुम कान, ध्यान अपना सा रखना 
कल्लू खाना देने से पहले खुद भी तुम चखना
'शिशु' कहें और यह पिल्ला देशी नहीं! विदेशी!
पिल्ले को कुछ हुआ अदालत में होगी तब पेशी.  

Friday, April 23, 2010

अप्रैल माह की ज्यादातर ख़बरे एम् (M) शब्द से आयीं

अप्रैल माह की ज्यादातर ख़बरे एम् (M) अक्षर से आयीं
एम् की ख़बरे ख़तरनाक सब एम् न किसी को भायी  

एम् से मुद्रा-स्फूर्ति-दर, एम् से ही महिला बिल 
एम् से ही हैं मनमोहन जी, एम् से दहला* दिल  

एम् से मोदी, एम् से मंत्री और एम् से है मंहगाई, 
एम् से माया, एम् से मुलायम, एम् खबरों में छाई  

एम् से मीडिया ने भी तो एम् मंहगाई को छापा,
एम् से हैं महेंद्रसिंह धोनी एम् मनीष** की माया    

एम् से मुझे नहीं है मालूम मैं हूँ क्यूँ इतना बड़बोला 
एम् से माफ़ मुझे सब करना एम् का भेद है मैंने खोला  

* माववादियों ने भी इस बार कहर बरपाया है. 
**इस आई.पी.एल एम् जहाँ महेंद्रसिंह धोनी जमे हैं वहीं मुंबई टीम के मनीष तिवारी ने भी कमाल का खेल दिखाया है. 

Thursday, April 22, 2010

धरना और प्रदर्शन से अब जनमानस है त्रस्त

धरना और प्रदर्शन से अब जनमानस है त्रस्त,
धरना वाले भी हैं पीड़ित वो भी उससे ग्रस्त, 
वो धरने से ग्रस्त, कष्ट में अब जनता है सारी    
कम हो कैसे मंहगाई जबकि भ्रष्ट तंत्र है ये सरकारी
'शिशु' कहें दोस्तों अगर मंहगाई दूर है करना
बोल रही भाजपा अब होगा धरने पर धरना 

Thursday, April 15, 2010

तीन देवियाँ!!!

तीन देवियाँ!!!

बामुलाहिजा होशियार, 
शीला दीक्षित जी तैयार, 
झुग्गी-बस्ती गिराएंगी, 
फ्लाईओवर बनाएंगी, 
दिल्ली चमकायेंगी
सबको खेल दिखाएंगी...

तिलक-तराजू और तलवार, 
उनके मारो जूते चार,
माया जी का नारा
दलित हमें है प्यारा
मंत्री जी लाओ हज़ार-हज़ार के नोट
और जनता से दिलवाओ मुफ्त में वोट...

ममता बनर्जी!
कांग्रेस दे रहा अर्जी दर अर्जी, 
महिला बिल पास हो, उनकी नहीं मर्जी
यही तीन देवियाँ है आजकल की सर जी

Wednesday, April 14, 2010

आज से दोस्त हुए हम दोनों, नहीं दोस्ती तोड़ेंगे

मैं गरीब हूँ और तू गरीब है और न कोई गरीब, 
ये दुनिया है बदमाशों की, मैं और तू ही शरीफ.

मुझे नहीं पैसे का लालच तूभी नहीं है लोभी, 
हम दोनों हरहाल में रहते खाते दे दो जोभी. 

मेरे पास न गाड़ी-घोड़ा और तेरे पास न नैनो कार 
मैं बस में चलता हूँ यार, तू भी बस में चलता यार

मैं हूँ सत्य मार्ग पर चलता तू भी झूठ नहीं बोला,
मेरे बाबा रामदेव जी, सच! तू भी उनका ही चेला!

मैं हूँ गाँव देहात का वासी, मेरा यंहा नहीं घर-द्वार, 
तू भी रहता है किराए से तेरा घर भी गंगा पार.

आज से दोस्त हुए हम दोनों, नहीं दोस्ती तोड़ेंगे
जब तक होंगे दिल्ली में हम साथ न तेरा छोड़ेंगे  

Thursday, April 8, 2010

यदि घर में हिंसा लाओगे... बीबी पर हाँथ उठाओगे.


(दूध की बढ़ती कीमत...)
दूध से क्रीम बनाओगे...
और मुहं पर उसे लगाओगे...
तो दूध-दही क्या आपोगे ? ? ?

(पानी की समस्या....)
पानी अगर बहाओगे...
उससे गाड़ी धुलवाओगे...
पानी में दूध मिलाओगे...
तो क्या पानी पी पाओगे ? ? ? 

(दिल्ली सरकार .....)
गैस दे दाम बढाओगे...
और खेल-खेल चिल्लाओगे...
जनता को बरगलाओगे... 
क्या वोट मेरा पा जाओगे ? ? ?

(पर्यावरण...) 
यदि नैनो में सब जाओगे...
और सड़क पे जाम लगाओगे...
बस का उपयोग ना लाओगे..
क्या पर्यावरण बचाओगे ? ? ?

(नौकरी ....)
यदि ऑफिस देर से आओगे...
और काम-काम चिल्लाओगे...
तनख्वाह की मांग बढ़ाओगे...
क्या ऑफिस में टिक पाओगे ? ? ?

(घरेलू हिंसा...)
यदि घर में हिंसा लाओगे...
बीबी पर हाँथ उठाओगे...
और उस पर तुम चिल्लाओगे..
तो क्या तुम पति कहाओगे ? ? ?

इसीलिये अब नहीं लिख रहा, मन में ही लिख लेता हूँ.

गीत लिखूं या लिखूं कहानी
नहीं समझ कुछ आता है,
अपना लिखा गीत मुझको तो 
बिलकुल ही ना भाता है.

कभी-कभी तो जगकर रात
लिखता और मिटाता गीत
लिखा हुआ पढ़ता कई बार
नहीं समझ में आता गीत 

कई बार लिखते-लिखते 
कुछ झुंझलाहट सी होती 
और कभी जाने-अनजाने 
कविता पलक भिगोती

कितने ही मौके आये जब- 
लगता लिखना है बेकार, 
कितने ही मौके आये जब-
लगता बेड़ा गर्क है यार

खुद से पूछा कितनी बार,
क्या होगा जो लिख डाला? 
लिखते हो तो अच्छा लिखते
ये क्या है गड़बड़ झाला?

जब पढ़ता औरों के गीत
तब लगता मैं हूँ नालायक
मेरी कविता अर्थ-अनर्थ,
उसकी कविता ही है लायक

इसीलिये अब नहीं लिख रहा,
मन में ही लिख लेता हूँ. 
'नज़र-नज़र का फेर' समझकर
खुद निंदा कर लेता हूँ.  Poems and Prayers for the Very Young (Pictureback(R))

Tuesday, April 6, 2010

जीजाजी होंगे सोहेब! क्या भारत होगा साला ?

जीजाजी होंगे सोहेब! क्या भारत होगा साला ?
कुछ दिन चुप होकर के बैठो लगा के मुंह पे ताला

पाकिस्तान में भाभी- भाभी मचा हुआ है शोर,
दावत और वलीमा दोनों हो रहे हैं चंहुओर.

कट्टरपंथी प्यार में अब अड़ा रहे हैं टांग,
अखबारी मुर्गा जो सब हैं रात में दे रहे बांग.

सोहेब! पहले से शादी-शुदा पहले से दामाद,
अबसे पहले गुम थी बीबी अभी कर रही याद.

'शिशु'-'भावाना', दे रहे अभी से उन्हें बधाई,
वाह-वाह अल्लामियां-राम जी जोड़ी खूब बनाई.

वंदन-अभिनन्दन है स्वागत, आप आये घर-द्वार हमारे,

वंदन-अभिनन्दन है स्वागत, आप आये घर-द्वार हमारे,
कैसे कहूं शब्द कम पड़ते, हुए धन्य हम आप पधारे,

हर्षित हो सहगान कर रहे,
अपने पर अभिमान कर रहे,
आप को अर्पित पुष्प ये सारे,
हुए धन्य हम आप पधारे...
वंदन-अभिनन्दन है स्वागत, आप आये घर-द्वार हमारे,
कैसे कहूं शब्द कम पड़ते, हुए धन्य हम आप पधारे,

धन्य भाग्य हम आपको पाकर
आप अतुल्य आप हैं सागर,
आप चन्द्रमा हम सब तारे
हुए धन्य हम आप पधारे...
वंदन-अभिनन्दन है स्वागत, आप आये घर-द्वार हमारे,
कैसे कहूं शब्द कम पड़ते, हुए धन्य हम आप पधारे,

रख्खा मान आप जो आये
जितने यहाँ सभी को भाये
आपका स्वागत करते सारे
हुए धन्य हम आप पधारे...
वंदन-अभिनन्दन है स्वागत, आप आये घर-द्वार हमारे,
कैसे कहूं शब्द कम पड़ते, हुए धन्य हम आप पधारे...

Tuesday, March 30, 2010

क्षमा करो श्रीमान... जान अज्ञानी मुझको मान...

क्षमा करो श्रीमान... जान अज्ञानी मुझको मान...
क्षमा करो श्रीमान... जान अज्ञानी मुझको मान...

सही कहा इसलिए चल दिए लेकर तीर-कमान...
क्षमा करो श्रीमान... जान अज्ञानी मुझको मान...

बड़बोलापन दिखता मुझमे कुछ ऐसा ही लो मान...
अबसे राय नहीं दूंगा मैं इतना भी लो जान...
क्षमा करो श्रीमान... जान अज्ञानी मुझको मान...

मैं हूँ तुक्ष जीव इस युग का आप हैं बहुत महान...
आप हैं इन्द्र का इन्द्रासन जी हम हैं मीन सामान...
क्षमा करो श्रीमान... जान अज्ञानी मुझको मान...

आप दूध से धुले हुए हैं हम कोयले की खान...
मैं क्या हूँ? औकात क्या मेरी? मेरी नन्ही जान...
क्षमा करो श्रीमान... जान अज्ञानी मुझको मान...

क्षमा करो श्रीमान... जान अज्ञानी मुझको मान...
क्षमा करो श्रीमान... जान अज्ञानी मुझको मान...

मेहनत-मजदूरी है पेशा वे असली श्रमशक्ति के दूत....

बरसाती-गंदी-नाली के कीड़े वो जन कहलाते हैं.
जो जीवनभर कठिन कार्य कर जीवन कठिन बिताते हैं.

मेहनत-मजदूरी है पेशा वे असली श्रमशक्ति के दूत.
कार्य कुशलता दिखती उनमे वे भारत के असली पूत.

भले नहीं हों पढ़े-लिखे पर वे रखते सामाजिक ज्ञान.
मेहनत-मजदूरी करके वे रखते हैं परिवार का ध्यान.

श्रद्धा से मस्तक झुक जाता जब भी देखूं उनका काम.
दुःख होता सुन कठिन परिश्रम का मिलता उनको कम दाम.

पढ़े-लिखों से विनती 'शिशु' की उनका भी रखो सब ध्यान,
उनके बारे में भी सोचो, उनका सभी करो सम्मान...
उनका सभी करो सम्मान...

Thursday, March 25, 2010

मेल! मेल को समझो मेला घर को कर दो सेल

अब दिल्ली में भीख मांगना और बड़ा अपराध,
अपराध! यदि हुआ किसी से भी तो समझो जेल,
जेल! जेल को नहीं समझना आने वाले खेल,
खेल! खेल-खेल में होगी सड़क पे रेलमपेल
रेलमपेल! कुम्भ जैसे बिछड़ेंगे, फिर होगा तब मेल
मेल! मेल को समझो मेला घर को कर दो सेल
सेल! सेल से पैसा जो आये उससे खा पूरी-भेल

बदमाश तेल! तू ही बिगड़ रहा आम आदमी का खेल!

बदमाश तेल!
तू ही बिगड़ रहा आम आदमी का खेल!

कोमन-वेल्थ-गेम!
और शीला दीक्षित जी सेम टू सेम!

'कबीर'-माया महा ठगिन हम जानी...
'शिशु'-माया माया की हम जानी...

रूपये की माला!
अबे कम बोल! जुबान पर लगा ताला...

हजार हजार के नोट!
बुरा मत मानो, चुनाव के समय यही दिलाएंगे वोट!

दिल्ली की मंहगाई!
मीडिया की खबर! मीडिया की कमाई!

पुलिश की भर्ती!
भगदड़ मची, कितनो की उठी अर्थी!

स्वामी जी का भंडारा!
हो गया ६०-७० का वारा-न्यारा!

बाबा इच्छाधारी!
मर्सडीज़ छोड़, जेल वाहन की कर रहे सवारी... 
 

Wednesday, March 17, 2010

झूठ बोलना पाप है, अब नेता जी ने समझाया

झूठ बोलना पाप है, अब नेता जी ने समझाया
पैसा पैसा चिल्लाते क्यूँ, है पैसा ही केवल माया
है पैसा ही केवल माया मुझे पैसे की माला पहनाओ
अगर नहीं है घर में रोटी तो पीजा-बर्गर तुम खाओ
'शिशु' कहें आजकल माला भी तो पैसे से आता
रूपये डाल गले में जो माला के पैसे को बचाता

Thursday, March 4, 2010

अधिकार अपने छीन ले अब मांगने का वक्त ना

तू जागती जा जागती जा जागकर सोना नहीं,
तू खिलखिला हंसती रहे हों दुःख मगर रोना नहीं.
जो देश हैं महान बने अब तलक संसार में
पुरुषों बराबर काम तेरा दीखता उस धाम में
है जीतता जो समर में, रण बांकुरों की शान तू  
तू है बहादुर स्वयं भी हर देश का अभिमान तू
पर लोग तेरा आज भी अपमान करते हैं सदा,
तू सह न अब अपमान, उनको बोलदे तू सर्वदा
अधिकार अपने छीन ले अब मांगने का वक्त ना
'शिशु' भी न देता है खिलौने आप हैं यदि शक्त ना

Sunday, February 21, 2010

रंग चढ़ा इस बार हाय! देखो मंहगाई रंग-बिरंगी...

रंग चढ़ा इस बार हाय! देखो मंहगाई रंग-बिरंगी,
सारा रंग उसी को लग गया वो दिखती बहुरंगी.

फीका रंग मिठाई का है, फीके सब पापड़ गुझिया,
छोड़-छाड़ पचरंग मिठाई, खायेंगे अब सब भुजिया.  

बिन हुडदंग ना होली भाती, बिना भंग ना रंग,
बिन पैसे के कुछ ना आता अब पैसा ना मेरे संग

उहापोह में जान 'शिशु' की किसी ने रंग लगाया,
लौटायेंगे वो कैसे रंग? हमको फीका रंग ना भाया

होली है इस बार की अर्पित मंहगाई माता के नाम
अगली साल खेल लेंगें रंग तब तक आजायेंगे दाम

Wednesday, February 17, 2010

मैंने बीबी को बोला प्रिय हैप्पी वेलिन टाइन डे,

मैंने बीबी को बोला प्रिय हैप्पी वेलिन टाइन डे,  
बीबी हंसकर बोली मुझसे क्या बेलन स्टाइल डे?
क्या बेलन स्टाइल डे? अजी यह क्या कहते हो
बोल रहे ऐसे प्रिय तुम जैसे हर दिन ही सहते हो
'शिशु' कहें श्रीमती बोली प्रिय माँ से मत कहना
'बेलन स्टाइल डे' मना आज से तुम झाडू सहना 

Sunday, February 14, 2010

अब द्विज, क्षत्रिय सूद्र कौन है, बनिया कौन कहाता

अब द्विज, क्षत्रिय सूद्र कौन है, बनिया कौन कहाता
मिल जाए बस कोटा हमको हर कोई यही चाहता
कोटा वो भी तैंतीस प्रतिशत, इससे कममें बात नहीं
हो जाएँ कोटे में शामिल फिर मेरी कोई जात नहीं
कर देंगे हड़ताल यदि नहीं मिला ढंग का कोटा
हम है बड़े बहादुर सुनलो नहीं समझाना छोटा
बोल रहे ये बढ़-बचन जाति के जो सब ठेकेदार
बोल रहे जल्दी दे कोटा, है परेशान सरकार
'शिशु' न कोटा हमें चाहिए हम है कोटेदार
देल्ली में कर रहा नौकरी छोड़छाड़ घरद्वार

Tuesday, February 9, 2010

वैज्ञानिक कहते परिवर्तन, ये जलवायु बदलने से

आई है बसंत ऋतु फिरसे, क्या हरियाली भी लायेगी,
फूल खिलेंगे डाली-डाली क्या कोयल सुर में गायेगी.

अब जाड़ों में होती वर्षा, क्या गर्मी में खिलेगी धूप
वर्षा होगी बारिश ऋतु में या होगा कुछ और ही रूप

मौसम भी अब इंसानों सा अपना रूप दिखाता है
है कोई ऐसा अब मौसम जो हमको अब भाता है

वैज्ञानिक कहते परिवर्तन, ये जलवायु बदलने से
पर्यावरण संतुलित होगा खुद की सोच बदलने से

पंडित जी बोले अब कलयुग लगता है हो गया जवान,
अब भी वक्त संभालने का है बदल ले अपने को इंसान,

'शिशु' सलाह दे सकता ना, ये है 'नज़र नज़र का फेर',  
वक्त बहुत कम है इंसानों सुधर अभी जा हुयी न देर. 

Sunday, February 7, 2010

'शिशु' कहें हाय! मंहगाई माता कुछ तरस दिखाओ,

मंहगाई है बहुत आजकल चीनी कम ही खाना,
पीली दाल बिक रही है जो उसको रोज पकाना,
उसको रोज पकाना, हरी सब्जी का कर परहेज,
काम खुद ही करना, कामवाली बाई को देना भेज,
'शिशु' कहें हाय! मंहगाई माता कुछ तरस दिखाओ,
चीनी पहले वाली कीमत में तुम सबको दिलवाओ. 

गैस के दाम बढेंगे और, श्रीमती ने कान में बोला
पढ़ती हूँ अखबार आजकल सोना है किस तोला
सोना है किस तोला, बिचौलियों की आजकल चांदी
दो तोला मुझको दिलवादो प्रियतम हूँ मैं आपकी बांदी* 
'शिशु' कहें दोस्तों मैं आजकल बांदी-चांदी से डरता
गैस के दाम बढ़ना ना प्रभु तुमही मंत्री दुख हरता

*पुराने समय में दासी को बांदी कहा जाता था.  

Wednesday, February 3, 2010

बीत गया है अर्सा कितना उनसे बात नहीं होती

बीत गया है अर्सा कितना,
उनसे बात नहीं होती. 
होती भी तो कैसे होती,
मिलने पर अब जो रोती ..

हँसता चेहरा उसका भाता,
अब वो हंसी नहीं दिखती.
पहले पहल लिखे थे ख़त जो,
वैसे ख़त अब कम लिखती..

कभी कभी तो लगता ऐसा,
ख़ता हुयी थी मुझसे भारी.
प्रेम बढाया था मैंने ही,
भूल हुयी मुझसे सारी..

झूठ बोलना पहले उसका,
मुझको लगता था प्यारा.
पहले सब दुश्मन थे मेरे,
वो आँखों की थी तारा..

अब मिलती है सहमी सहमी,
जैसे मैं हूँ बहुत कठोर.
इसीलिये मैं भी कम मिलता.
पकड़ लिया दूजे का छोर..

Monday, February 1, 2010

महंगी चीनी जान कर सुगर किया बहाना

महंगी चीनी जानकर सुगर का किया बहाना
मोटापा कम हो इस खातिर खाता कम ही खाना
खाता कम ही खाना दाल से मुझको बहुत एलर्जी
रहता हूँ उपवास दिवस दस, है प्रभु की ये मर्जी
'शिशु' कहें महंगाई-महंगाई है रोते सब प्राणी
तौबा - तौबा करके कहते अब चीनी ना खानी

ये सब दुनिया दुनियादारी,,कह मंदिर के बने पुजारी,

ये सब दुनिया दुनियादारी,
कह मंदिर के बने पुजारी,
राजनीति में भी घुस आये
बोलके असली धर्माचारी.

राम ही मंदिर, मंदिर राम,
जपते करते ना कुछ काम,
कार में जपते राम का नाम
दिन भर करते फुल आराम

चंदा लेकर करते दंगा 
घूम के आये चारों धाम
चेलों को नौकर बन रखते
उनसे करवाते सब काम

एक हो उसका नाम बताएं
बतलाएं तो मार भी खाएं
इसीलिये मुंह बंद रखूंगा
'शिशु' को कभी नहीं ये भाए

Thursday, January 28, 2010

पढिगे पूत कुम्हार के सोलह दूनी आठ,

पढिगे पूत कुम्हार के सोलह दूनी आठ,
घूमते बर्तन लेकर हाट,
जमाते गधे पे अपनी ठाठ.

बोलता मुझसे सुन दद्दा,
रात को मैं पीता अद्धा,
शहर में ख़ाक कमाते हो,
गाँव तो खाली आते हो,
मूछ ऊपर से घोट दई,
शर्म भी शहर में बेंच दई,
जब तक इंग्लिश ना लाओगे,
पढ़े तुम नहीं कहाओगे.

कहा तब मैंने सुन कल्लू
अबे तू तो पूरा लल्लू
बोल मैं इंग्लिश लेता हूँ
टैक्स सरकार को देता हूँ
मुझे कम्पूटर भी आता
बैंक में है मेरा खाता.

सुन कल्लू ये बोला बैन
तभी दिखते हो तुम बेचैन
मोह माया में तुम पड़ते
बात पर अपनी ही अड़ते
साथ में क्या कुछ जाएगा
कमाएगा क्या पायेगा

शहर में ब्याह रचाया हूँ 
पढी घर बीबी लाया हूँ
हमारे घर साजो सामान
समझ कल्लू तू कहना मान

सुना है सब मैंने भाई
शहर की बीबी जो आई
चाय तुमसे बनवायेगी
पार्टी में वो जायेगी

पढोगे कल्लू तभ ही कार
तुम्हारे घर पर आयेगी
पढ़ाई है असली सम्मान
तुम्हे ये भाई भायेगी
अभी गधहे पर बैठे हो
तभी तो गधे कहाते हो
काम करते ना कोई खाश
अधिक पैसे ना पाते हो

उसे समझाया घंटे चार
हो गए सारे सब बेकार
दुबारा मैं समझाऊंगा
द्वार कल्लू के जाऊंगा.

Wednesday, January 27, 2010

ये सूरत सांवली-सलोनी अति विधाता ने जो दीन्ही है...

ये सूरत सांवली-सलोनी अति विधाता ने जो दीन्ही है,
गोरी बनने  को मुख पाउडर लगावेंगी.
पहनेगी ऊँची हील की सैंडिल,
लगाके क्लिप बालों में नागिन सी बनजावेंगी.
घूमेंगी अमीनाबाद हज़रत महल पार्क,
गुड एंड शाक कहकर हांथ मिलावेंगी.
कहें 'शिशु' कल को यही सुंदरियाँ अपने को
विश्व सुन्दरी कहालावेंगी.

प्रजापति की पिकनिक में जमा हुए कुछ वीर,

प्रजापति की पिकनिक में जमा हुए कुछ वीर,
सबसे पहले पहुंचे रेलवे अधिकारी भाई 'सत्यवीर'.
उसके बाद हेमेंटेच के मालिक जो 'हेमंत' 'सुनीता',    
'हर्ष' और 'स्वागत' से जिनने दिल सबलोगों का जीता. 
'दीपक' सूरज बनकर आया मौसम बन गया अच्छा,
जगतपिता 'जगदीश' आये फिर लेकर बीबी बच्चा.
दिखलाई 'प्रसाद' ने 'प्रतिभा' बेटा-बेटी के संग आये,
देखा जब 'स्वत्रंत' को सबने हर्षित होकर सब मुस्काये,
पुलिश प्रसाशन था मुस्तैद जब आये 'शिवराज'
आये 'विनय' 'प्रजापति मालिक' छोड़ घरेलू काज
शादी का विज्ञापन देते बिलकुल ही जो मुफ्त
'राठोर जी' 'गोला' संग आये दिखते बिलकुल चुस्त 
हंसते रहते हैं 'दुष्यंत' राज है इसमें कुछ भारी,
अगली मीटिंग में आयेंगे बात जान लूँगा सारी,
'इन्द्रजीत' गरजे बन इन्द्र सिंघासन धरती के डोले,
कान लगाकर सुना सभी ने जब 'राजेन्द्रजी' बोले
'अच्छे लाल' हैं दिल के अच्छे इसीलिये मन भाते
देखा मीटिंग में जब भी तो सबके बाद वही आते
कठिन पढ़ाई वाले भाई सौम्य सभ्य से दिखते
नाम याद है नहीं मुझे पर अब डॉक्टर हैं लिखते
दीपक भाई उनका नाम लिखकर जरा बताना
अगली मीटिंग में जब आना उन्हें साथ में लाना
आईटीआई थे पर बीटेक 'हरिराम' जी ने कर डाला
छोटे पद से मैनेजर बन सबको हैरत में डाला
पुत्र 'प्रवीण' गर्व से बोला पिता ही असली मार्ग दिखाते
जब भी होती कोई मुश्किल हल वो उसका हमें बताते 
सिविल परीक्षा की तैयारी में लगा हुआ 'संदीप'
प्रजापति परिवार में कर देगा रोशन वो दीप
'अजय' ने बोला राजनीति में क्यूँ पड़ते हो भाई
राजेंद्र जी बोले यारों इस बिन संभव नहीं लडाई
'वर्मा' जी ने अपना गुस्सा जोर-शोर से दिखलाया
बोले मैसेज मैं करता पर मैसेज पर ना कोई आया
क्यूँ समाज है अबतक पिछड़ा कारण जरा बताना
विनय, सत्यवीर फिर बोले असल बात पर सब आना
सत्यवीर जी ने फरमाया गाँव में जाना बहुत जरूरी
वहीं पता तब लग पायेगा क्या है असली मजबूरी
'पुष्पा जी' का खाना खाने केवल ही 'शिशु' आया था
मगर 'सुनीता जी' का खाना भी कुछ कम ना भाया था
'प्रतिभा जी' ने फिर सबको था बारी-बारी खूब परोसा
मिलेगा अगली मीटिंग में भी मुझको तो है यही भरोसा,
नाम याद ना 'चावल वाली दीदी' मैं तो बोलूँगा
अगली मीटिंग में उनके खाने का डिब्बा खोलूँगा
भूल हुयी लिखने यदि कुछ 'शिशु' समझ जी करना माफ़
माफ़ करोगी मुझे पता है अलग और से हैं सब आप  

Tuesday, January 26, 2010

'शिशु' देश के नर-नारी सब करते जिसकी पूजा

नींद ना आती रात-बिरात दिखते दिन में सपने,  
जब भी सुनते उसका नाम, लगते हैं सब जपने,
चारों ओर दिखाई देती बस उसकी ही छाया,
कहते हैं तकदीर में ना है सब उसकी है माया.
होती पलक बंद जब भी, तो देखें तेरी ही मूरत
दर्पण में खुद को जब देखें, देखें तेरी ही सूरत 
नैनो में 'नैनो' बन बसती, माल में दिखती माल
प्रभू मिलादो उससे जल्दी करदो आज कमाल
'शिशु' देश के नर-नारी सब करते जिसकी पूजा
'धन्ना' की बेटी है 'धन्नो' नाम ना उसका दूजा

Tuesday, January 5, 2010

किसे भिखारी की संज्ञा दें? किसको बोलूँ राजा...,

होते कौन महान लोग हैं?
किसको लोग पूजते,
कौन लोग मेहनती कहाते?
काम से कौन जूझते।

किसकी धाक शहर में चलती?,
गाँव का होता नेता कौन,
कितना पढ़ा लिखा नेता हो?,
इस उत्तर पर क्यूँ सब मौन।

किसे भिखारी की संज्ञा दें?
किसको बोलूँ राजा,
किसकी बासी खबर बताएं?
किसकी बोलें ताज़ा।

कौन काम ऑफिस में करता,
कौन है करता फुल आराम,
किसको पैसे ज्यादा मिलते
किसको कम मिलता है दाम?

प्रश्न बहुत हैं उत्तर कम क्यूँ?
इसका भी उत्तर बतलाना,
पता लगे यदि इन प्रश्नों का
लिखकर 'शिशु' को जरा बताना।

Sunday, January 3, 2010

अंकल जी पर है चढ़ी नए साल की मस्ती...

अंकल जी पर है चढ़ी नए साल की मस्ती,
आंटी जी को घुमा रहे इस बस्ती* उस बस्ती,
इस बस्ती उस बस्ती उम्र का किया न कोई लिहाज़
बच्चों जैसी हरकत करते घूमें अंकल-अंटी आज
'शिशु' कहें दोस्तों नाचो-गाओ सब त्यौहार मनाओ
पर अंकल-आंटी जैसी पीने की मस्ती ना लाओ
*(बियर बार)

पार्क घूम कर आया कल मैं बीबी भी थी साथ,
लड़के-लड़की घूम रहे थे डाल हांथ में हांथ,
डाल हांथ में हांथ शर्म हम दोनों को थी आती,
लड़की कान लगा लड़के के घंटो थी बतियाती,
'शिशु कहें ये फ़िल्मी कल्चर, या प्रगति हुयी है भारी
या असभ्य से सभ्य हो गए आज के सब नर-नारी।