Tuesday, December 29, 2009

नहीं किसी से हो रुसवाई ! नया वर्ष बीते सुखदाई।!

नई उमंगें नई तरंगे नए वर्ष के वन प्रभात में,
बीत रहा जो वर्ष अभी है उसकी मधुर-मधुर स्मृति में,
आप सभी को बहुत बधाई,
नया वर्ष बीते सुखदाई।

सुख-समृद्धि, उन्नति सब पायें, दुःख की आंच न हम पर आये,
भले बुरों के भी हो जाएँ, दुश्मन सभी दोस्त बन जाएँ,
नहीं किसी से हो रुसवाई
नया वर्ष बीते सुखदाई।

स्वास्थ रहे उत्तम सदैव ही, अच्छी सबकी रहे कमाई,
घर-परिवार रहे मिलजुलकर झगड़ों की न पड़े परछाई,
'शिशु' भावना है ये आई
नया वर्ष बीते सुखदाई

Monday, December 21, 2009

भारत की इस राजनीति में धर्म है असली खम्भा।

धर्म है राजनीति का रक्षक 'धर्मवीर' ने है फरमाया
राजनीति हो अलग धर्म से, सुन वो सब पर गरमाया
सुन वो सब पर गरमाया वोला अबे गधों के पूत
धर्म ही पहुंचाता संसद में राजनीति के असली दूत
'शिशु' कहें सुन धर्मवीर को, हुआ न हमें अचम्भा
भारत की इस राजनीति में धर्म है असली खम्भा।

धन पर धर्म सदा से हावी मंदिर में होती धनवर्षा,
गाँव गरीबी है वैसी ही बीत गया है कितना अरसा,
बीत गया है कितना अरसा, मंदिर में बिजली आती,
सूख रहे पानी बिन खेत वंहा ना बिजली आती।
कहें 'शिशु' मंदिर में दान लुटाते नेता और अभिनेता
जंहा गरीबी व्याप्त अति है उसकी फ़िक्र न कोई लेता।

Saturday, December 19, 2009

लूट मची है चारों ओर, मंहगाई-मंहगाई शोर,. . .

लूट मची है चारों ओर, मंहगाई-मंहगाई शोर,
जमाखोर भी खुद चिल्लाते बहुत बुरा है अब का दौर।

कहती है सरकार जमाखोरों पर कसा शिकंजा,
जमाखोर बेखौप बोलते हम पर नेताजी का पंजा।

केंद्र कहे ये राज्य का मसला, उनको देना होगा ध्यान,
कहें राज्य सरकार करूँ क्या केंद्र में बैठे हैं अज्ञान।

मंत्री बोले हाँ मंहगाई कुछ - कुछ नज़र हमें आयी
लेकिन अखबारों ने देखो जनता को बढ़कर बतलाई।

आम आदमी कब कहता है सस्ता युग अब है आया।
'शिशु' कहें जो गुजर गए पल वो केवल ही है भाया।

Tuesday, December 15, 2009

अब ना देशी अब ना विदेशी अभी दौर बाज़ारों का,

कौन है देशी कौन विदेशी अब ये चर्चा करता कौन,
माल विदेशी सभी खरीदें उस खर्चे पर सब मौन।

क्रिकेट विदेशी खेल कभी था अभी देश का है सिरमौर,
इंग्लिश बोली सुनो विदेशी लेकिन अभी उसी का दौर।

पेप्सी-कोला सभी विदेशी फिर भी पीते देशी लोग,
पीजा बर्गर क्या देशी हैं? उसका सभी लगाते भोग।

जींस और पतलून विदेशी लगे विदेशी पहनावा,
हिन्दुस्तानी कहलाते हम कैसा भी हो पहनावा।

अब ना देशी अब ना विदेशी अभी दौर बाज़ारों का,
कहते हैं शिशुपाल सुनो जी अब का दौर गुज़ारों का।

Thursday, December 10, 2009

नयन विराट एक जोट देखते ही रहे...

नयन विराट एक जोट देखते ही रहे,
कैसे कहूं कासे कहूं हाल कहा जाता ना

कभी
ना जताया प्यार, बात की इशारों में,
वो इशारों वाला प्यार अभी मैं बताता ना

कभी
मिले बीच राह रुको बोला रुके नही,
मिले जब भी इसी तरह मैं भी तो बुलाता ना

फ़ोन
करें, बात नही सिर्फ़ काल चलती है,
इस तरह का प्यार प्रिये मुझे समझ आता ना

'
शिशु कहें क्या बताएं प्रेम आजकल का सुनो,
बुरा भले मान जाओ मुझे कभी भाता ना

प्रेम में न टांग अड़ा..

प्रेम की फुहार पड़ी,
प्रेम की गुहार पड़ी,
प्रेम है तो प्रेम से ही
प्रेम की पुकार पड़ी।

प्रेम में क्या लोक-लाज,
प्रेम है तो कल न आज,
प्रेम करो आज अभी,
पहन प्रेम का लो ताज।

प्रेम की ना कोई भाषा,
प्रेम की ना परिभाषा,
प्रेम में जरूरी केवल
दो दिलों की अभिलाषा।

प्रेम को निभाता जा,
प्रेम में तू गाता जा,
प्रेममय हो ये संसार
बात ये बताता जा।

प्रेम में ना छोटा-बड़ा,
प्रेम में हो जो भी पड़ा,
प्रेम से 'शिशु' जी कहें
उस प्रेम में टांग अड़ा

Wednesday, December 9, 2009

बिकने आए मजदूर फिर....

बिकने आए मजदूर फिर
इस इन्तजार में कि-
कभी तो बारी आयेगी उनकी-
आज बिकेंगे तभी कल का चूल्हा जलेगा,
या इन्तजार में ही कल की तरह आज भी सूरज ढलेगा।
- - - - -

झुण्ड का झुण्ड का राह देखता
कि दलाल (ठेकेदार) आएगा
भले ही आधे पैसे वो खाए लेकिन
कुछ काम तो दिलाएगा।
साहब! मैं काफी दिनों से काम पर नही गया
बच्चे की फीस भरनी है,
मुझे काम देदो मेरे बच्चे को परीक्षा की
तैयारी करनी है।
हां यह ठीक कहता है! अगला बोलता है,
और अपने ख़ुद के रहस्य नही खोलता है
उसका भी तो वही हाल है,
उसके बच्चे और बीबी भी तो बेहाल हैं।
- - - - -

आज भी कम ही लोग बिके
क्यूंकि रिसेशन यंहा भी है
और इसलिए भी कि-
बल्कि इन पर काम का बोझ तो और भी बढ़ गया है,
दो-दो आदमियों का काम एक मजदूर पर ही पड़ गया है।
- - - - -

और उधर सरकारी विभाग में बाबू-
कमीशन के पैसे अधिकारियों को बाँट रहा है,
मँहगाई बढ़ गयी है - मँहगाई बढ़ गयी है
कह अधिकारी बाबू को डांट रहा है।
ज्यादा कमाओगे तभी खान से शान दिखापाओगे,
मारुती में वे आते हैं तुम कैसे वैगनार में आ पाओगे।
मुझे तो बच्चे को पढ़ाना है,
उसे तो एमबीए करने विलायत जाना है,
नही तो मैं इसके ख़िलाफ़ हूँ घूस नही लेता,
और याद रखो तुम्हे इसमे से एक पाये नही लेने देता।
- - - - -

पूंजीपति पूँजी से दबे जा रहे हैं,
सरकार की गंगा में बहे जा रहे हैं।
भाई-भाई कोर्ट-कचहरी के चक्कर काट रहे हैं,
जनता और सरकार दोनों को आपस में बाँट रहे हैं।
'अँधा बनते रेवड़ी ख़ुद अपने को दे'
वाली कहावत उन पर लागू है-
कंपनी के सीओ बनकर सारा पैसा अपनी जेबों में भर रहे हैं,
कम्पनी के कर्मचारी नौकरी चले जाने से मर रहे हैं
और ये टैक्स बचने के चक्कर में बीबियों को
हेलिकैप्टर तोहफे में दे रहे हैं।
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मंत्री मन्त्र मुग्ध होकर करिश्मा देख रहे
जहाज में उड़कर फुर्र से इधर उधर की
के सैर सपाटे में अभ्यस्त हैं
जनता के काम करने के समय तो -
और भी वे व्यस्त हैं।
पूर्तिपूजा की विरोधी मुख्यमंत्री-
अपनी मूर्ती लगाने और उसका अनावरण
करने में व्यस्त हैं-
उनके गुर्गे इधर का पैसा उधर टेंडर में
लगाने में अभ्यस्त है।
- - - - -

आम आदमी बोल रहा है-
आप
दोमुंहा सांप
वो सब अक्ल के कच्चे
हम, तुम सबमे अच्छे
तुम सब गधे के पूत
हमीं स्वर्ग के दूत

Monday, December 7, 2009

जाना रोज देखने खेल भले भायें न भाएँ।

१.
रेड्डी-पटरी वालों पर अब गिराने वाली गाज-
गाज वो भी सरकारी....
उन्हें हटाने की दिल्ली से हो रही दुखद तैयारी-
तैयारी उन पर भारी...
बोल रही सरकार उन्हें हटना ही होगा.
तभी सफाई खेल-खेल में दिखलाई देगी,
यही आम नागरिक की भागीदारी होगी...

२.
पैदल चलना सड़क पर अब मुश्किल होगा-
अगर पुडिया खाई या पान...
थूक दिया यदि धोके से समझो-
आफत में जान, बनोगे सरकारी मेहमान...
खेल में खाना यदि पुडिया पान-
गले में बांधना साफ़ थूकदान,
तभी तुम सभ्य कहलाओगे...
देश का मान बढ़ाओगे...
देश का मान बढ़ाओगे...

३.
भीख मिलेगी सरकारी,
भिखारी हैं सब भौचक्के-
सुनकर खुशखबरी...
मुफ्त मिलेगा सेल्टर उनको
होगी उससे भी बेखबरी...
शर्त बस इतनी होगी...
सड़क पर भीख ना मांगे,
और जब तक होवें खेल
रात दिन वो ना जागें।
'शिशु' कहें दोस्तों खेल क्या-क्या न कराएं,
काम बंद करवा लोगों से भीख मंगाएं,
जाना रोज देखने खेल भले भायें न भायें।

Friday, December 4, 2009

नए ज़माने का चैनल ही देखे कलुआ की बीबी।

नए ज़माने का चैनल है ऐसा सुना प्रचार,
कार्यक्रम आते कम पर उससे अधिक प्रचार,
पर उससे अधिक प्रचार स्वयं की करें बढ़ाई,
पब्लिक है कनफूज है किसमे कितनी सच्चाई,
'शिशु' कहें आजकल के रेडियो हो या टीवी,
नए ज़माने का चैनल ही देखे कलुआ की बीबी।

ख़बर सुनाई हमने पहले लगी आजकल होड़,
खबरी चैनल कर रहे है आपस में घुडदौड़
आपस में घुड़दौड़ कहें सत्य को झूठ, झूठ को सत्य
खबर दिखाते हैं मनमानी जो होती बिन तथ्य
'शिशु' कहें पब्लिक भी तो है आजकल की बड़ी सयानी
ख़बर सुनाने वालों की करती पब्लिक भी खीचातानी।

Thursday, November 26, 2009

उर्दू में होती यदि गीता, संस्कृत में पाक कुरआन!!!

मन्दिर में रहते यदि अल्ला, मस्जिद में रहते भगवान!
तब क्या कम हो जाता मान?

अगर मौलवी पढ़ते गीता, पंडित पढ़ते पाक कुरआन!
क्या वे कहलाते अज्ञान?

उर्दू में होती यदि गीता, संस्कृत में पाक कुरआन
तब क्या करता कोई अपमान?

मुस्लिम भजन-कीर्तन करते हिंदू देते अगर अजान!
तब क्या कम होते गुणगान?


बन्दा तू अल्ला का भी है तुझे प्यार करते भगवान्
ना ही हिन्दू ना ही मुस्लिम 'शिशु' तो हैं सब एक समान।
इतना जान! बस इतना जान!

Tuesday, November 24, 2009

अब दहेज़ की प्रथा गाँव में इतनी बढ़ गई ज्यादा...,

अब दहेज़ की प्रथा गाँव में इतनी बढ़ गई ज्यादा,
नर तो मान भी जाते लेकिन नही मानती मादा
बोली सास, साज सज्जा का ध्यान बराबर रखना,
शादी से पहले का वादा ध्यान बराबर रखना
टी.वी., फ्रिज, एसी तुम देना गाँव में बिजली आयी,
टी.वी पर देखी मशीन एक वो भी मन को भायी।
चैन बिना ना चैन मिलेगा, हार बिना तुम समझो हार,
एक लाख कैश दे देना जब बारात पहुंचेगी द्वार।
चार जमाई चार लड़कियां सबको कपड़े लाना।
बिन ब्याही छोटे लडकी को सूट फैंसी लाना।
मुझे बनारस वाली साड़ी इनको लाना सूट,
सब बच्चो को कोट पैंट और साथ में बूट।
मोटर साईकिल मांग रहा दुल्हे का छोटा भाई,
सुनकर ये लडकी वालों के तब जां आफत में आयी।
ससुर बोलता मैं क्या बोलूँ, मेरी चलती ये ना लेता,
एक कार दो लाख साथ में उससे काम चला लेता।
'शिशु' कहें हालात दोस्तों इतने बिगड़ रहे
इस दहेज़ के चक्कर में घर कितनो के उजड़ रहे।

Thursday, November 19, 2009

'शिशु' कहें सब लोग काश धन्ना काका से होते...,

धन्ना सेठ पधारे दिल्ली धन-दौलत के चक्कर में,
पूँजी सभी लगाई उसने महंगी जो है शक्कर में।

उधर खरीदी सदर मार्केट इधर बेंच दी फुटकर,
बेटे-बाप सभी धंधे में लगे हुए हैं डटकर।

पिता हमारे बतलाते हैं उनका नमक का धंधा था,
पैसा उससे बहुत बनाया जबकि नमक तब मंदा था।

बीस साल हो गए गाँव से जब वो आए दिल्ली,
सभी गाँव वालों ने उनकी तब उडाई थी खिल्ली।

धन्ना सेठ गाँव में अब हैं सबसे पैसे वाले,
गाँव में महल खड़ा हैं उनका जंहा जड़े हैं ताले।

दिल्ली में भी कोठी उनकी अच्छे दो हैं बंगले,
पर धन्ना के नज़रों में धन्ना अब भी कंगले।

जो भी गाँव से आता, पहले धन्ना के घर जाता,
खाने-पीने-रहने की सारी सुविधा पा जाता।

धन्ना के घर वाले सारे गरमी में घर जाते,
सारे गाँव को उसदिन वो महंगी दावत करवाते।

'शिशु' कहें सब लोग काश धन्ना काका से होते,
दौलत वाले होकर भी वो नही घमंडी होते।

Tuesday, November 17, 2009

पिल्ला पाल रहे लोगों से विनती एक है मेरी....

पिल्ला पाल रहे लोगों से विनती एक है मेरी,
टीके सब उनको लगवाएं बिना लगाये देरी।

पार्क जाएँ पिल्ले ना लेकर ना सडकों पर खुल्ला छोड़ें,
भाग रहा यदि पिल्ला है तो पीछे-पीछे ख़ुद भी दौड़ें।

अच्छी बात और होगी यदि पिल्ला देसी पालें,
बाँध चैन से उस पिल्ले को उसमे ताला भी डालें।

पिल्ला धोके से यदि काटे किसी व्यक्ति को भाई,
डाक्टर को फिर उसे दिखाएँ स्वयं दिलाएं दवाई।

अन्तिम एक गुजारिश ये है पिल्ला घर पर ही रखें
इधर-उधर न करे वो पोट्टी इसका ध्यान सदा रखें।

Thursday, November 5, 2009

नही रहे प्र भाष जोशी जी सुबह सबेरे पढ़कर जाना,


नही रहे प्र भाष जोशी जी सुबह सबेरे पढ़कर जाना,
पढी ख़बर बा मगर ये ख़बर को सच मैंने माना
हिन्दी के लेखन में जिसने पूरा जीवन किया समर्पित
ऐसे भीष्म पितामह को है बहुत बहुत मेरा अभिनन्दन



किसी को यकींन नहीं हो रहा है कि कल रात तक लोगों से बात करने वाले प्रभाष जोशी नहीं रहे ।

प्रभाष जोशी दैनिक जनसत्ता के संस्थापक संपादक से पहले नयी दुनिया से पत्रकारिता की शुरुआत की थी। नयी दुनिया के बाद वे इंडियन एक्सप्रेस से जुड़े और उन्होंने चंडीगढ़ में स्थानीय संपादक का पद संभाला। 1983 में दैनिक जनसत्ता का प्रकाशन शुरू हुआ, जिसने हिन्दी पत्रकारिता की दिशा और दशा ही बदल दी। 1995 में इस दैनिक के संपादक पद से रिटायर्ड होने के बावजूद वे एक दशक से ज्यादा समय तक बतौर संपादकीय सलाहकार इस पत्र से जुड़े रहे। प्रभाष जोशी हर रविवार को जनसत्ता में कागद कारे नाम से एक स्तंभ लिखते थे। बहुत से लोग इसी स्तंभ को पढ़ने के लिए रविवार को जनसत्ता लेते हैं।

हिन्दी पत्रकारिता में हजारो ऐसे पत्रकार हैं, जो उन्हें अपना आदर्श मानते हैं । सैकड़ों ऐसे हैं, जिन्हें प्रभाष जोशी ने पत्रकारिता का पाठ पढ़ाया है । दर्जनों ऐसे हैं, जो उनकी पाठशाला से निकलकर संपादक बने हैं लेकिन एक भी ऐसा नहीं, जो प्रभाष जोशी की जगह ले सके ।

उन्हें क्रिकेट से उन्हें बेहद लगाव था । इतना लगाव कि को वो कोई मैच बिना देखे नहीं छोड़ते थे और मैच के एक - एक बॉल की बारीकी पर लिखते भी थे, और देखिए मैच देखते हुए ही उन्हें दिल का दौरा पड़ा और वो हिन्दी पढ़ने और लिखने वालों से सदा-सदा के लिए जुदा हो गए

Tuesday, November 3, 2009

खेल-खेल में दिल्ली 'दिल्ली रानी' कहलाएगी...

खेल-खेल में दिल्ली, 'दिल्ली रानी' कहलाएगी,
शीला दिक्षित जी कहती हैं तभी विश्व को भायेगी।
अभी जहाँ कचरा-कूड़ा है उसमे फूल खिलाएंगे,
भागीदारी के माध्यम से हरियाली बिखराएंगे।
यमुना भी तब साफ़-सफाई का प्रतीक बन जायेगी,
बिजली भी तब हर घर में २४ घंटे आयेगी।
नयी-नयी बस चल जायेंगी शोर-शराबा ना होगा,
फ्लीओवर बन जाने से फिर ट्राफिक भी कम ही होगा।
मैट्रो ट्रेन चलेगी पल-पल ट्राफिक से होगा छुटकारा,
अभी जहाँ ना कोई साधन तब होगा कुछ नया नज़ारा।
इसे देख शिशु' करे प्रार्थना प्रभु हों गाँव हमारे खेल,
इसी खेल के चक्कर में ही चल जाए लोकल ही रेल।

'शिशु' कहें गाँव की बड़ी याद सताती...

मन करता है गाँव को जाऊं, खेलूँ अट्टी-डंडा
शकरकंद संग मट्ठा पियूँ रस गन्ने का ठंडा
रस गन्ने का ठंडा और ईख के खेत को जाऊं
बैठ के खेत मचान जी भर कर गन्ने खाऊं
'शिशु' कहें गाँव की बड़ी याद सताती।
दिन हो या फिर रात बराबर मुझे सताती।

'शिशु कहें लोग क्यूँ है इतने बदमाश.......

शहरी लोग पूछते उससे बे क्यूँ तू आया दिल्ली,
पूछ-पूछ कर उसकी वो सब खूब उड़ते खिल्ली,
खूब उड़ाते खिल्ली खासकर गूजर जाट,
बसों के कंडक्टर भी उसको खूब पिलाते डांट
कल 'शिशु' ने मजाक में पूछा क्यूँ रोता भाई,
बोला छोटू भइया मुझको दिल्ली नही रास आयी।

रोते-रोते छोटू बोला मुझको लोग चिढ़ाते,
जब होता मैं ही दूकान पर तब सब वो आ जाते,
तब सब वो आ जाते और फरमाते गाऊँ गाना,
चलते - चलते और पूछते कब होगा तेरा जाना,
'शिशु कहें लोग क्यूँ है इतने बदमाश,
जाने क्यूँ आते हैं वो भोले राजू के पास

Tuesday, October 27, 2009

फुर्सत मिलती नही आजकल...

फुर्सत मिलती नही आजकल,
हरपल काम है रहता।
देर-सबेर पहुंचता घर तब,
घर पर डांट मैं सहता।

चैटिंग भी कर ना सकता मैं,
फोन से बात नही होती।
सत्य बात ये बतलाता घर,
फिर भी तू-तू -में-में होती।

दोस्त सभी नाराज हो गए,
कहते तुम बन गए अधिकारी।
इसी तरह यदि रहा और दिन,
निश्चित टूटेगी यारी।

नयी नौकरी मिली है जब से,
गाँव भी जाना नही हुआ।
लाया था खरीद एक पुस्तक,
उसको भी हाँ नही छुआ।

तेरह है तारीख आखिरी,
अगले महीने जो आयेगी।
उसके बाद मिलेगी फुर्सत,
'शिशु' तभी बात हो पायेगी।

Saturday, October 24, 2009

कवि कल्पना करता है यदि रात भी दिन जैसा होता.......

कवि कल्पना करता है यदि रात भी दिन जैसा होता,
सोते दिन में जो कुछ लोग, उनका हाल बुरा होता।
और जिन्हें ना आती नीद, उनके मजे खूब होते,
जैसे दिन भर जगते हैं वो वैसे रात नही सोते।
ऑफिस में जो देर रात तक करते काम बेचारे लोग,
उनको मिलता छुटकारा भी खुशी मनाते वो सब लोग।
बिना रोशनी होता काम बिजली भी बच जाती
उस बिजली से गाँव देहात में और रोशनी आती।
उल्लू और चमगादड़ दोनों जब जी करता सोते,
बिल्ली कुत्ते तंग न करते रात में ना वो रोते।

Thursday, October 15, 2009

सभी हादसे भूल गए हम फिरसे दीप जलाएंगे..,


सभी हादसे भूल गए हम फिरसे दीप जलाएंगे।

आशाएं हों जीवन में,
मानवता हो हर मन में,
बैर-भाव न हो मन में,
ऐसे गीत ही गायेंगे...
सभी हादसे भूल गए हम फिरसे दीप जलाएंगे।

रोशन हो सब हर घर द्वार,
भव से हो जाएँ सब पार,
नही कहीं हो मारा-मार,
ऐसे भाव ही लायेंगे...
सभी हादसे भूल गए हम फिरसे दीप जलाएंगे।

हे प्रभु! हे अल्ला! हे ईश!
ऐसी तुम देना आशीष,
बैर न हो मन में जगदीश,
सबको गले लगायेंगे...
सभी हादसे भूल गए हम फिरसे दीप जलाएंगे।

हो सबकी दीवाली अच्छी,
झूठ न बोलें, बोलें सच्ची,
रहे भावना हरदम अच्छी,
'शिशु' तभी मिठाई खायेंगे...
सभी हादसे भूल गए हम फिरसे दीप जलाएंगे।

Tuesday, October 6, 2009

करवाचौथ का पूरा मर्म उसे समझ अब आया है

राजाराम पी रहे दारू, उधर उर्मिला भूखी-प्यासी,
क्यूंकि सास ने यही सिखाया पत्नी पति की होती दासी।
पिछले साल भी कर्वाचौथ में पीकर पति घर आए थे,
देसी पी थी दोस्त यार संग इंग्लिश लेकर आए थे।
आते ही घर में उसने ऐसा कोहराम मचाया था,
पिटते-पिटते बची उर्मिला सास ने उसे बचाया था।
सोच रही इस बार पति को पीने से ना रोकेगी,
हो जाएँ बेहोश भले ही पीते बीच न टोकेगी।
करवाचौथ का पूरा मर्म उसे समझ अब आया है,
'शिशु' कहें ये व्रत-पूजा सब पुरुषों की माया है।

Thursday, September 17, 2009

अभी-अभी मैंने यह जाना, मैं हूँ क्यूँ इतना बेढंगा.

अभी-अभी मैंने यह जाना, मैं हूँ क्यूँ इतना बेढंगा,
अभी समझ में मेरे आया पहले मैं था क्यूँ चंगा।

उससे पहले मैं था नेक, ऐसा सभी बोलते हैं,
अभी सभी वो दोस्त हमारे मेरा भेद खोलते हैं।

इससे पहले मैंने भी तो सबको भ्रम में था डाला,
उससे पहले उनका भी तो मुझसे पड़ा नही पाला।

अभी, कभी कुछ लोग मुझे फिर पहले सा ना देते भाव,
मैं भी तो उनसब लोगो से ना लेता मिलने में चाव।

पर ये बातें ठीक न होती इससे बढ़ जाती कटुता,
इसीलिये 'शिशु' शिशु से कहते ख़ुद का मान भी है घटता।

जबसे शेर-सियार संग-संग पूजा करने हैं जाते

जबसे कोयल ने कौवे को अपना भाई मान लिया,
तबसे उसकी भी बोली को सबने कर्कश मान लिया।

जबसे उल्लू और चमगादड़ दोस्त-दोस्त कहलाये,
तबसे उल्लू और चमगादड़ फूटी आंख नही भाये।

जबसे शेर-सियार संग-संग पूजा करने हैं जाते,
तबसे हिरन-मेमना दोनों उस रस्ते से ना आते।

जबसे एस.सी-एस. टी. दोनों दलित कहाए हैं,
तबसे ही एस.सी-एस. टी. हर दल को भाये हैं।

जबसे गधे और घोड़े में फर्क नही समझा जाता,
तबसे खच्चर सोच रहे क्यूँ उनसे काम लिया जाता।

जबसे 'शिशु' ने मान लिया मेरे अन्दर कमजोरी है,
तबसे 'शिशु' ने उसे भागने की कोशिश की पूरी है।

बंद-बंद लोग चिल्लाते बंद न मुझे पसंद, बंद से जी घबराता

बंद-बंद लोग चिल्लाते
बंद न मुझे पसंद,
बंद से जी घबराता
उठता प्रात रात ना सोता
जगता जब अधरात न भाता
बंद बंद ...............

छुट्टी-छुट्टी लोग कहे
ड्यूटी से डरते रहते
काम न पास धेले का फिर भी
बहुत काम है कहते सबको रहते
मैं भी ख़ुद चिल्लाता
बंद बंद ...............

घंटे आठ काम ना करते
हरदम इधर-उधर की करते
हाय! हाय! बोलते कहते
काम तले मेरा दम घुटता
१२ घंटे काम करे फिर
शनिवार खुद ही आ जाता
बंद बंद ...............

अब क्या होगा! अब क्या होगा!
सुनसुनकर दम घुटता
एक-एक पल क्या?
रात-बिरात न कटता
हटता पीछे
फिर आ डटता
रात को जाकर फिर आजाता
बंद बंद ...............

क्या तनख्वाह मिलेगी?
कब तक?
जब तक ऑफिस चलता!
नही-नही बात ख़ुद मैं ही
अपनी बदलता
काम नही कुछ काश पास
अपने हाथ स्वयं के हाथ मलता
कुछ इधर - उधर टहलता
पर मुझको न ये भाता
बंद बंद ...............

Monday, September 7, 2009

शराब!

शराब!
बाप पिए तो ठीक, बेटा पिए ख़राब!

जुआरी!
कभी न जीते, कभी न माने हारी!

समाज सेवा!
काम से साथ पैसे की मेवा!

बॉस का दूत!
मुखबिरी की पूरी छूट!

Wednesday, September 2, 2009

मेरी पीड़ा की, मेरे इस विछोह की...

इतनी मुख्तर-सी मुलाकात भला
क्या राहत दे सकती है
जबकि वह समय करीब है,
जब मुझे तुमसे विदा लेनी होगी...
वह घड़ी आ चुकी है
अच्छा तो अलविदा-अलविदा...
यह सनाकपूर्ण कविता, यह विदाई कविता
जिसे मैं लिख रहा हूँ तुम्हारे एल्बम में...
संभवतः यही एकलौती निशानी होगी
मेरी पीड़ा की, मेरे इस विछोह की...


(यह प्रसिद्ध कविता रूस के महान कवि एम्.वाई. लोमोर्तोव ने लिखी थी...जिसको हिन्दी में संवाद प्रकाशन, मेरठ ने 'उसका अनाम प्यार' किताब में छापा है। मैंने इसे कई बार पढ़ा है।)

चिठ्ठी लिखकर जरा दिखाओ क्या होता है मैनेजमेंट?

पहला प्रश्न पूछता तुमसे
अपने बारे में बतलाओ?
उसके बाद टेस्ट फिर होगा
तब तक बैठ के खाना खाओ!

अबतक कितना अनुभव पाया
कितना कंहा मिला पैसा?
सब हिसाब खुलकर बतलाओ
काम किया कैसा - कैसा?

भाषा कितनी आती तुमको
ये भी जरा बताना?
क्या तुमको कम्पूटर आता
इसको नही छिपाना?

पढी पढाई कैसी-कैसी
साफ़-साफ़ समझाओ?
हेरा-फेरी कितनी आती
ये भी तुम बतलाओ?

चिठ्ठी लिखकर जरा दिखाओ
क्या होता है मैनेजमेंट?
किसको कंसल्टेंट रखोगे
किसको करोगे परमानेंट?

अभी काम जो बड़ा किया है
उसका भेद बताओ?
कैसे बड़ा काम वो था
ये भी तुम समझाओ?

आप यंहा पर आते हो तो
पहला काम करोगे क्या?
अपने अनुभव से तुम बोलो
ऑफिस को दोगे क्या - क्या?

Tuesday, September 1, 2009

प्रार्थना - २ - संकट घड़ी

हे इन्टरवियू लेने वाले तुमको मेरा प्रणाम
दाम की बात बाद में होगी पहले दे दो काम

आप पूछना जो भी चाहो खुलकर सभी बताऊंगा
ज्वाइनिंग की कोई बात नही, जब कह दो आ जाऊंगा

आप सर्वज्ञाता हैं दाता समझ हमारे आया है
और आपका हँसता चेहरा भी मेरे मन भाया है

पर दो बातें दास आपसे कहता है कर जोर
धीरे से बस बात बताना नही मचाना शोर

आफिस का एक समय बता दो, दूजा कब तक काम करूँगा
जिससे कहोगे डर जाऊंगा जिससे कहोगे नही डरूंगा

अन्तिम विनती एक है साफ़-साफ़ बतलाना
मुझे रखोगे या दूजे को अभी यहीं बतलाना

Saturday, August 29, 2009

प्रार्थना - संकट घड़ी

मुझे गधा ही रहने दो प्रभु, मैं इस पद के लायक
उन्हें बना दो गधे से घोड़ा जो है सब नालायक

उनको काम दिलादो प्रभु जी जिनको देना ब्याज
उनको भी जल्दी लगवादो जिन्हें पहनना ताज

मेरा क्या है, मैं हूँ पाजी, मुझको कुछ ना आता
खाली-पीली ऑफिस आकर केवल खाना खाता

फिर भी विनती आप से करता है ये दास
मुझे लगाना ऐसी जगह जंहा जमे विश्वास

अगर अकेला होता प्रभु जी तो करता आराम
अब माँ-बाप साथ में बीबी मुझे चाहिए काम

खान-पान, सम्मान प्रभु जी सब पैसे से आता
काम दिलादो आप 'शिशु' को आप ही सबके दाता

Thursday, August 27, 2009

ओह! किस्मत के मारे! 'शिशु' बेचारे!

दिन हो या रात की नीवरता
सपनो भरी रात हो
या सुनहरी, ताज़गी भरी प्रात हो
मेरे समूचे वजूद में बस एक ही चीज होती है
ओह! किस्मत के मारे!
'शिशु' बेचारे!
दिल के अन्दर और बाहर बस यही आवाज़ होती है
जबसे अफवाह हकीकत में बदल गयी
अब नौकरी चली गयी
विवशता तब और बढ़ जाती है
जब मेरी शारीरिक दुर्बलता नज़र आती है
अब क्या होगा!
लोग कहते हैं की दिल्ली में हजारों नौजवान
जो बीए और एम हैं, रिक्शा चला रहे हैं
वो ताकत कंहा से लाऊंगा
यह सोचकर हिसाब लगता हूँ
कि मैं गाँव चला जाऊँगा
लेकिन गाँव में क्या बताऊंगा
कि यही अगले महीने से काम नही होगा
और जाहिर सी बात है तब पास दाम भी नही होगा
अब समझ आ गया सरकारी नौकरी के लिए
इतनी हाय-तोबा क्यूँ है
कम से कम दाल रोटी खाते हुए
परिवार के जिम्मेदारियों को
भली भांति निपटाया जा सकता है
और यदि आदमी भ्रष्ट है तो
और भी अच्छा,
भ्रष्टाचार से अच्छा-खासा पैसा भी
बनाया जा सकता है
लेकिन मैंने आजतक हिम्मत नही हारी
इसीलिये छोड़ दी कई नौकरी सरकारी
कई दोंस्तों से बात चल रही है
कुछ न कुछ हो जाएगा
अब ठान लिया है 'शिशु' ने
कुछ न कुछ करके दिखलायेगा

समाज सामाजिक संबंधो का जाल है

समाज सामाजिक संबंधो का जाल है,
प्रश्न यह है?
क्या इसका किसी को मलाल है?
और दूसरी बात यह कि अब
समाज की परिभाषा भी कुछ इस तरह से हो रही
कि अमीर की गंगा बह रही है
और गरीब की यमुना बह रही है
जंहा गंगा को पवित्रता का पर्याय माना गया है
वहीं यमुना को पवित्र होते हुए भी अभिशाप माना गया है
क्यूंकि
समाज शास्त्री मानते हैं कि गरीबी अभिशाप है!
और अमीर!
अमीर की परिभाषा ही नही बनी अभी तक
इसलिए अमीर को आम आदमी कहा जाता है
इसमे गरीब और अमीर को भी साथ रखा जाता है
इसलिए आजकल यह सुना जा रहा है
आदमी संकटों से घिरा जा रहा है

Wednesday, August 26, 2009

काम तुम्हे सब कुछ आता हो ऐसा नही जरुरी

काम तुम्हे सब कुछ आता हो ऐसा नही जरुरी
पहली जगह जॉब क्यूँ छोडी क्या तेरी मजबूरी
क्या तेरी मजबूरी और तुझको क्या नया आता
हिन्दी को तू बता धता क्या बोल अंगरेजी पाता
'शिशु' कहें फिर देखा जाता है तू कितना चालू
पैसा कम लेकर काम कर सकता है क्या कल से चालू

Tuesday, August 25, 2009

फ़ोन से बात कम ही करते अब मैसेज ही आते

फ़ोन से बात कम ही करते अब मैसेज ही आते
फ्री SMS पैकेज लेकर पैसा रोज बचाते
पैसा रोज बचाते SMS का दौर जो ठहरा
ऊपर से मम्मी पापा का पहरा न होता गहरा
'शिशु' कहें आजकल लोग SMS से ही काम चलाते
मंदी के इस दौर में प्रेमी-प्रेमिका फ़ोन से कम बतियाते

Sunday, August 23, 2009

पहरेदार बड़ा बेचारा, देखा उसने नया नज़ारा

पहरेदार बड़ा बेचारा
देखा उसने नया नज़ारा
कार के पीछे कार खड़ी थी
मैडम उसपर भड़क रही थी
उसको जाकर डांट पिलाई
अपनी फिर औकात दिखायी
मैंने तुझको था लगवाया
यंहा चले है मेरी माया
तू तो है गरमी का आदी
कपड़े भी तेरे हैं खादी
मुझको गरमी बहुत सताती
सुबह-सुबह एसी चलवाती
बिन एसी के रहा न जाता
यह मौसम है रास न आता
जल्दी कर ये कार हटा
किसकी है ये साफ़ बता
पता नही मैं क्या हूँ चीज
मुझको आती कितनी खीज
पहरेदार प्यार से बोला
समझ गया मैडम हैं शोला
साहब बड़े कार हैं लाये
ऑटो से वो आज न आये
मैंने उनको था समझाया
पर उनको था समझ ना आया
जाकर उन्हें अभी हड़काता
चाभी छीन-छान कर लाता
मैडम फिर से भड़क गयी
कार के भीतर बैठ गयीं
पहले तो क्यूँ बोल न पाया
भेद ठीक से खोल ना पाया
ठहर सज़ा इसकी दिलवाती
साहब को मैं अभी बताती
उनको तू हड्कायेगा?
उनकी कार हटाएगा?
उसको दिन में दिख गया तारा
सीधा-साधा था बेचारा
देखा उसने नया नज़ारा
पहरेदार बड़ा बेचारा
देखा उसने नया नज़ारा

Friday, August 21, 2009

तुम्हारा नाम? जी शिशु बदनाम!

यह कविता मैं अपने एक मित्र के लिए लिख रहा हूँ, जिसके साथ कुछ साल पहले दिल्ली में भाषा-प्रान्त के चलते प्राइवेट नौकरी पर नहीं रखा गया था!

तुम्हारा नाम?
जी शिशु बदनाम!
बदनाम क्यूँ ?
बदनाम क्या तुम्हारा सर नेम है?
जी बात यह है मेरा नाम और मेरे प्रदेश का नाम सेम है!
क्या आप अपने प्रदेश का नाम बताओगे?
नहीं! पहले आप वादा करें नौकरी पर लगाओगे
तुम अपने प्रदेश का नाम क्यूँ नहीं बताते हो?
जनाब आप सीधी-सीधी बात पर क्यूँ नहीं आते हो!
अच्छा यंहा क्यूँ आए, सही-सही बतलाना?
बात यह है श्रीमान गाँव में पड़ गया सूखा
इसीलिये हुआ यंहा आना!
खैर! जब तक तुम अपने प्रदेश का नाम नहीं बताओगे
तब तक तुम मेरी कंपनी में नही आपाओगे
कभी कही और से आना
और हां अपने प्रदेश का नाम भी सही-सही बतलाना
तभी बात बनेगी, तब तक मत आना?
जी पूरी बात सुनये, मुझे पूरा काम आता है!
अबे अब जा यहाँ से, खाली-पीली भेजा क्यूँ खाता है?

धुन का पक्का घुन होता है चट कर जाता गेहूं

धुन का पक्का घुन होता है चट कर जाता गेहूं
इसी तरह एक मछली होती जिसको कहते रोहू
जिसको कहते रोहू, हाँ कुछ व्यक्ति भी ऐसे होते
जो बसे-बसाए अपने घर को धारा बीच डुबोते
क्या 'शिशु' आपसे तो लिखने में हद हो जाती
घुन और आदमी की क्या कभी तुलना की जाती

गेहूं के संग घुन पिस जाता, बड़े बुजुर्ग बताते
इसीलिये रखते जब गेहूं पाउडर खूब मिलाते
पाउडर खूब मिलाते ताकि गेहूं बच जाए
और लोग उसको अधिक समय तक खाएं
'शिशु' कहें काश लोगों की नौकरी के साथ भी ऐसा होता
अधिक दिनों तक करते काम और संस्था का लाभ भी होता

देल्ली का ट्रैफिक

जाम लगा क्यूं सड़क पर किस कारण भाई
ट्रैफिक पुलिश ले रहा खड़ा-खड़ा अंगड़ाई
खड़ा-खड़ा अंगड़ाई पीछे से एक ऑटो को रोका
बैठ के ऑटो बीच लिया एक नीद का झोंका
'शिशु' कहें वो बेचारा भी क्या-क्या करता
१२ घंटे डयूटी करके वो क्या कम थकता

रेड लाइट पर जाम क्यूं इतना बढ़ जाता
साहेब जी गाडी में बैठे उनको समझ न आता
उनको समझ न आता झांक कर बाहर देखा
देखा कटवारिया से बेर सराए तक लम्बी रेखा
'शिशु' कहें दिल्ली में है जाम एक आम बात
रेड लाइट मुनिरका में जाम लगता दिन-रात

सबसे ख़तरनाक होता है हमारे सपनों का मर जाना

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नही होती*
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नही होती
गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नही होती

बैठे-बिठाये पकड़े जाना-बुरा तो है
सहमी सी चुप में जकड़े जाना-बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नही होता

कपट के शोर में -
सही होते हुए भी दब जाना-बुरा तो है
किसी जुगनू के लौ में पढ़ना-बुरा तो है
मुट्ठियाँ भींचकर वक्त निकाल देना-बुरा तो है
सबसे ख़तरनाक नही होता

सबसे ख़तरनाक होता है-
मुर्दा शान्ति से मर जाना
न होना तड़प का, सब सहन कर जाना
घर से निकलना काम पर
और काम से लौट कर घर आना
सबसे ख़तरनाक होता है
हमारे सपनों का मर जाना

*यह कविता विश्व विख्यात कवि श्री अवतार सिंह संधू 'पाश' (जिनकी खालिस्तान के उग्रवादियों ने गोली मारकर हत्या कर दी थी) के कविता संग्रह से ली गयी है!

Wednesday, August 19, 2009

गाँव छोड़ गए गुड्डू राना अब फिल्मो में आयेंगे

गाँव छोड़ गए गुड्डू राना अब फिल्मो में आयेंगे
अपने साथ नाम गाँव का वो रोशन करवाएंगे

चार दिनों से अखबारों में गुड्डू राना ही आते
आज फ़ोन से पता चला है चाचा जी हैं फरमाते

गाँव-पड़ोस ख़बर है फ़ैली सुनकर खुशी मनाते लोग
कौन बनेगी हीरोईन अब यही दिमाग लगाते लोग

दुश्मन सब गुड्डू राना के झूठी ख़बर जानते हैं
धारावाहिक में आएगा केवल यही मानते हैं

दोस्त सभी गुड्डू राना के फूले नही समाते हैं
सुबह शाम या रात कभी हो जमकर खुशी मनाते हैं

'शिशु-भावना' ने भी आज पोस्ट कार्ड में लिख डाला
लिखा गाँव आकर गुड्डू तुमको पहनाएंगे माला

धनीराम कुछ भी कहता हो सत्य मार्ग ही चुनना

मैं ही घर में, मैं ही बाहर,
मेरा ही रुतबा चलता है
राह में रोड़ा जो अटकाता
उस पर तब कोडा चलता है

बोल रहा है धनीराम ये
धंधा मैंने ही फैलाया
मत भूलो तुम सब नौकर हो
पैसा मेरे ही है लाया

काम करोगे मन से मेरे
तब तनख्वाह बढ़ाऊंगा
नही समझ लो तुम सबको
मैं घर से अभी भगाऊंगा

एक बात तुम गांठ बाँध लो
मुझसे पार न पाओगे
कहीं भूल से खोल दिया मुंह
औंधे मुंह गिर जाओगे

हाथी कितना ही बूढा हो
भैंस बराबर रहता है
ऐसा मैंने नही कहा है
जग सारा ये कहता है

'शिशु' कहें लेकिन तुम यारों
अपने दिल की तुम सुनना
धनीराम कुछ भी कहता हो
सत्य मार्ग ही चुनना

Tuesday, August 18, 2009

सच कड़वा या जानलेवा !!

'सच का सामना' अब
जानलेवा साबित हो रहा है
कम से कम अखबारों में तो
यही लिखा आ रहा है
बात सही है!
पर ऐसा मै नहीं मानता हूँ,
सच कड़वा होता है
मै तो बस यही जानता हूँ,
फिर मजबूर हो जाता हूँ
कि अखबार सही कह रहे हैं
क्यूंकि आजकल गंगा और जमुना
एक ही सीध में बह रहे हैं।
एक चीज और जो
मुझे पता चली है कि
अखबारों में वही छपा-छपाया आता है
जो कि मोटी रकम देकर
लिखवाया जाता है
बुद्धिजीवी कहते हैं
ऐसा इसलिए लिखवाया जाता है
ताकि प्रोग्राम पापुलर करके
जनता को भरमाया जाता है
पर 'शिशु' आपको
इससे क्या फर्क पड़ता है?
आपतो गधे के साथ जड़ हो
आपकी बुद्धि में भी जड़ता है

Sunday, August 16, 2009

इंतज़ार है शत्रु उस पर कर न यकीन....

इंतज़ार है पक्का शत्रु, उस पर कर न यकीन
जीना शान से चाह रहे तो ख़ुद को समझ न दीन
ख़ुद को समझ न दीन काम कल पर ना छोड़ो
लगन से करके काम दाम फल समझ के तोड़ो
इंतज़ार का फल मीठा है ऐसा कहते लोग
इंतज़ार कब तक करें ? क्या जब बढ़ जाए रोग
जब बढ़ जाता रोग तब इलाज़ महंगा हो जाता
इंतज़ार जो करवाता है तब उसके समझ में आता
'शिशु' कहें दोस्तों मेहनत से मत घबराना
इंतज़ार है शत्रु उसे तुम पास न लाना

Thursday, August 13, 2009

जन्म दिवस है आज प्रभु का मना रहे नर-नारी

लिया जेल अवतार कृष्ण ने भक्तों के हितकारी
जन्म दिवस है आज प्रभु का मना रहे नर-नारी

श्याम सलोने कहलाते हैं, मीरा के हैं मोहन
सूरदास के नटखट-नटवर नन्दलाल के सोहन
ग्वाल-बाल के सखा सलोने, माखन चोर मुरारी
जन्म दिवस है आज प्रभु का मना रहे नर-नारी

दुर्जन, दुष्ट सभी भय खाते, अर्जुन के रथ चालक
द्रुपद सुता की लाज बचाई साधु-संत के पालक
गीता ज्ञान दिया रण भीतर तुम पर जग बलिहारी
जन्म दिवस है आज प्रभु का मना रहे नर-नारी

न्याय मिलेगा खुद लड़ने से दुनिया को बतलाया
कर्म करो फल मिल जाएगा, ये सब को समझाया
यही समझ ना आया हमको बुद्धि हमारी हारी
जन्म दिवस है आज प्रभु का मना रहे नर-नारी

'शिशु' कहें है यही 'भावना' आस लगाता जाता
कष्ट हरो जग, जीवन भर के बलदाऊ के भ्राता
शांति सुखी जीवन को सबका जग तुम पर बलिहारी
जन्म दिवस है आज प्रभु का मना रहे नर-नारी

लिया जेल अवतार कृष्ण ने भक्तों के
हितकारी
जन्म दिवस है आज प्रभु का मना रहे नर-नारी

अजीब पहेली बन गयी जिंदगी

अजीब पहेली बन गयी जिंदगी
उन्हें हम पर भरोसा नही
हमें उन पर भरोसा नही
फिर भी जी रहे हैं साथ-साथ
एक-दूसरे के भरोसे !

जो अनाम कुर्बान हो गए, श्रधा सुमन करुँ अर्पण

आधी रात मिली आजादी,
कितने अरमानो के बाद!
पढ़कर मन भावुक हो जाता,
सुनकर कुर्बानी की याद !

नाम याद ही कुछ लोगों का,
उनको नमन करुँ अर्पण!
जो अनाम कुर्बान हो गए,
श्रधा सुमन करुँ अर्पण!

हत्या नही यज्ञ कहते थे,
क्रांतिवीर, अंग्रेज मारकर!
सत्य अहिंसा भी अपनाते,
गाँधी जी को सुनसुनकर!

कौन ठीक था कौन गलत,
कहना ठीक नही होगा!
सत्य सोच थी उनकी लेकिन,
देश का मेरे क्या होगा !

देश हुआ आजाद हमारा,
आज गर्व से हम कहते!
लेकिन क्या हम कभी सोचते,
उनका मान कभी करते!

अब ख़ुद की मूर्ती लगते नेता,
स्वयं का करते ख़ुद गुणगान!
जिसने दिलवाई आजादी,
उसका करते ये अपमान!

आज देश में मारा-मारी,
भाषा-प्रांती के चलते!
लगा बाग़ आजादी का जो,
उसमे बिच्छू हैं पलते!

'शिशु' कहें हैं शुक्र न जिन्दा,
जिसने दिलवाई आजादी!
देख देश की इस हालत को,
कहते अब है बर्बादी!

Tuesday, August 11, 2009

बने फिरंगी फिर रहे गली-गली गंगू तेली

गरम-गरम चाय हम पीते ठंडा पानी,
देख विदेशी बन गए हमसब हिन्दुस्तानी

पीजा मिलता यंहा पर वेज़-नानवेज
व्रत वाला भी बेचते राधे और परवेज़

मेकप मुंह पर थोपकर पुरूष घूमते आज
महिला मेकप कम ही करती इसमे गहरा राज

रिसेशन का दौर है पूरा विश्व तबाह
हिन्दुस्तान अछूता इससे हम कहते हैं 'वाह'

हिन्दी पढ़ डिग्री ले घूमे पढ़े लिखे हैं फिरते
दसवीं पढ़ अंग्रेजी वाले लिए नौकरी फिरते

बने फिरंगी फिर रहे गली-गली गंगू तेली
अजब-गजब की दाढी-बाल अनजानी है बोली

हम जैसों का होगा क्या? हम हैं बहुत निखट्टे

नौ दिन की है नौकरी, नौ महीने का काम,
नौ-नौ लोग लगे करने में ख़त्म न होता काम!

नए लोग आते गए, क्या अधिक मिलेगा दाम?
ऐसा मान काम पर लग गए, हैं पाले अरमान!

गए छोड़कर जो सभी उनका काम कमाल,
एक-आध को छोड़कर उनका नही मलाल!

नही मिला पैसा अगर तो क्या होगा हाल
छोड़ गए कुछ लोग हैं फाड़ के मकडी जाल,

उन्हें काम मिल जाएगा जो हैं हट्टे-कट्टे
हम जैसों का होगा क्या? हम हैं बहुत निखट्टे

यही सोंचकर आजकल आती नींद न रात
झूठ 'शिशु' कहता नही कहता सच्ची बात

Friday, July 31, 2009

सपने मुझको रात डराते इसीलिये हूँ जगता

सपने मुझको रात डराते
इसीलिये हूँ जगता
जाग-जाग कर इन रातों में
कुछ पढता कुछ लिखता

घर में छोटी है एक दुनिया
जिसमे रहती पुस्तक प्यारी
एक नही कई बार पढ़ गया
सबकी सब न्यारी- प्यारी

पढ़ी 'जीवनी लेनिन' की
और बागी सिख लड़े कैसे
कैसी किसने रखी 'प्रतिज्ञा'
थे जीवन मक्सिम के कैसे

'भगत सिंह की जेल नोट बुक'
दसियों बार पढ़ी मैंने
'आधी रात मिली आज़ादी'
यह जाना पढ़कर मैंने

'सन 1857 में दिल्ली का
था कौन दलाल'
खबरें देकर गोरों को
जो हो गया कैसे मालामाल

बीस बार तक पढ़ी 'नास्तिक'
अब तक समझ नही आयी
'नर्क' भी पढ़ गया उतनी बार
बात लेकिन बन पायी

'है रहस्य क्या हिंदुत्व' का
यह भी मैं खरीद लाया
पढ़कर के 'कबीर' को फिर से
जाना दुनिया सब माया

'सहकारी खेती' होती क्या
कुछ - कुछ समझ मेरे आया
'शहर में कर्फु' लगता कैसे
इसका मर्म समझ पाया

क्या है दर्द 'भाखडा' गाँव का
कैसे लोग हुए बेघर
'कौन लोग आगे बढ़ते हैं
किसको मिलता है अवसर'

'खुदा कहीं क्या चला गया है'
के साथ पढी मैंने 'गीता'
'बाइबिल' पढी 'कुरान' पढ़ गया
तुलसी की पढ़ था सीता

'कुछ तो कहो यारों' की कविता
अच्छी मुझको सब लगती
और 'विश्व के कोनो में क्या
दुनिया हम जैसी रहती'

इतिहास पढ़ गया 'पश्चिमी एशिया'
कैसे, कब, क्यूँ घटनाएं थीं
बंकिम के लेखों में देखा
भारत की क्या घटनाएं थी

कल की रात बीत गयी फिर से
लिखते लिखते गीतों में
आज सोचता हूँ क्या होगा
पता चला संगीतों में

Tuesday, July 28, 2009

बरस गया पानी!

बरस गया पानी!
हँसे मुस्कराए
गीत खूब गाए
भीग के घर आए
बाद में याद आयी नानी
बरस गया पानी

जब बोला मीठी बानी!
वो हो गए हैरान
बोले मान ना मान
मै तेरा मेहमान
सुनकर हुयी हैरानी
बरस गया पानी

किये काम खूब!
प्रात रात जारी
रात हुयी अंधियारी
लेकिन मति गयी थी मारी
बस एक बात न मानी
बरस गया पानी

मैडम जी मुसकायीं!
वो और कुछ समझ गया
खुद मुस्करा गया
इशारा और कर गया
पड़ गयी मार खानी
बरस गया पानी

श्रीमती का गुस्सा!
तौबा-तौबा बड़ा सख्त
आता वक्त-बे-वक्त
'शिशु' का सूख जाता रक्त
पता चला बाद में है ये प्यार की निशानी
बरस गया पानी

Thursday, July 23, 2009

मीठी बानी बोलता दुर्जन सिंह है आज.....

मीठी बानी बोलता दुर्जन सिंह है आज
पता नहीं क्यूँ दीखता है गहरा कुछ राज
है गहरा कुछ राज, रात को सपने में आता
बैठ के बाजू, राजू के खाना खा जाता
'शिशु' कहें राजू है भौचक्का-भौचक्का
मीठी बानी बोलता क्यूँ आजकल दुर्जन कक्का

नयी नौकरी खोज में लोग लगे हैं रोज
ढूँढ रहे वो लोग हैं जो ऑफिस पर बोझ
जो ऑफिस पर बोझ दूसरों को शिक्षा देते
जैसे ही खुद मौका मिलता अप्लाई कर देते
'शिशु' कहें आजकल बस यही चलता है
नयी नौकरी के चक्कर में काम टलता है

नाम डूब जाए भले लेकिन हम हैं नेक
हमने ही खुशियाँ दी सबको बाकी भ्रष्ट अनेक
बाकी भ्रष्ट अनेक नाम मेरा चलता है
काम नहीं कुछ खास हाथ राजू मलता है
'शिशु' कहें दोस्तों क्या-क्या बतलाएं
नाम न डूबे इसीलए लेख दूसरों से लिखवाये

नाश्ते में क्या है?

नाश्ते में क्या है?
जवाब मिला
दूध केला!
इसे क्यूँ लाये?
जबकि
पास नहीं है
एक धेला!
काली चाय बनाती
वो दूध तो बचाती ही
ऊपर से बीमारी
भी भगाती!

चलो खैर,
खाने में क्या है?
जवाब मिला दाल!
सुनकर श्रीमान जी
हो गए बेहाल
इतनी महंगाई!
दाल क्यों बनाई
अंडा करी बनाते
बीयर के साथ
मजे से खाते

क्या कहा रात में पियेंगे सूप!
दिन में क्या कम है धूप
कोका कोला पियेंगे
साथ-साथ जियेंगे
गर्मी भगायेगा
रात का खाना भी बच जाएगा!

Tuesday, July 14, 2009

कल तीस का हो जाऊंगा

कल तीस का हो जाऊंगा
इन तीस सालों में
अब मै हिसाब लगता हूँ
तो पाता हूँ
कि एक पैर से
अपाहिज होने के अलावा
कुछ भी तो ऐसा नहीं घटा
जिस पर हानि समझ कर रोऊँ,

हां यह कहना कि
मैंने पाया भी कुछ कम नहीं,
तो क्या इस पर
बखान करके खुश होऊं

सोचता हूँ क्या शादी, नौकरी, रुतबा
केवल दिखावे के लिए है
या
यही जीने का मकसद है मेरा,
बहुत दिमाग लगाया
पर आज तक नहीं समझ पाया

हाँ समाज से गरीबी कैसे दूर होगी?
क्या अंतर है शहरी गरीबी
और
गाँव की गरीबी में
यह डेवलपमेंट सेक्टर में
रहकर जरूर सीख पाया

लेकिन
क्या फर्क पड़ता है
यह सब जान लेने से,
गाँव से ज्यादा शहर में गरीब हैं
यह मान लेने से,
की शहरों में गरीबी का ग्राफ बढ़ा है

मेरी नज़र में तो जी बस गरीब तो गरीब हैं,
फिर क्या फर्क पड़ता है
कि
वे शहर में रहें या गाँव में
हमें क्या हक कि हम उन्हें
धर्मं-जाति और मज़हब
की तरह बाँट दें
सच तो यह है
कि
वो एक हिस्सा हैं
हमारे समाज का

हम तो केवल
रोजी-रोटी के लिए
उन गरीबों के लिए काम करते हैं
वर्ना
किसे फिक्र है
और
किसे पड़ी है कि
वो गरीबी दूर करे

बीते कई सालों से
इसी सेक्टर में काम करते-करते
और
यह देखते-देखते कि
कौन गरीबों का मशीहा है
थक गया हूँ
और यह सोचकर कि
क्या होगा आगे के सालों में
सोचकर पक गया हूँ

अब किसकी फिक्र करू
किसकी नही
ये कौन बताएगा
मुझे पक्का यकीन है की
जो भी बताएगा
अपने बारे में ही बताएगा

Monday, July 13, 2009

अंतर बस इतना सा है!

हमें शांति भाईचारा से प्यार है
उन्हें इस पर एतराज है

हमें गीत, संगीत से लगाव है
उन्हें इससे अलगाव है

हमें अहिंसा, सत्य पर विश्वास है
उन्हें इस पर नहीं आस है

हमें अँधेरे, अत्याचार से इनकार है
वो मारामारी पर तैयार हैं.

हम हमेशा बातचीत के लिए तैयार हैं
वो करने लगते तकरार हैं.

हमें तो बस यही अंतर नज़र आता है
वर्ना रिश्ता निभाने में हमारा क्या जाता है.

Thursday, July 9, 2009

गाँव देहात में भी समलैंगिगता पर छिड़ी बहस

हाल की ताज़ातरीन खबरों से गांव देहात में जिस खबर ने ज्यादा प्रभाव छोड़ा है वह है धारा 377 (समलैंगिकता को कानूनी ठहराने वाले दिल्ली हाई कोर्ट के फैसले) का समाप्त होना। अवगत करा दें कि दिल्ली हाई कोर्ट ने बीते सप्ताह एक याचिका निपटाते हुए कहा था कि वयस्कों के बीच सहमति से शारीरिक संबंध बने तो वह गैरकानूनी नहीं होगा। इस तरह अदालत ने समलैंगिकता को अपराध मानने से इनकार कर दिया था।

गावों में जहां आज भी रिश्तों की बुनियाद टिकी हुई है, इस प्रकार के रिश्तों को मानने के लिए बिल्कुल तैयार नहीं हैं। वंहा पान की गुमटी से लेकर गली चैराहों पर बस इसी खबर पर गहमागहम बहस जारी है। गांव देहात में रहने वाले हर वर्ग की अपनी-अपनी प्रतिक्रियाये दिल्ली हाईकोर्ट के इस ऐतिहासिक फैसले पर अलग अलग हैं।

युवावर्ग खबरों को जहां चटकारे लेकर दिलचस्प तरीके से मनगढंत कहानियां से गढ़ रहे हैं वहीं बुजुर्ग और बुद्धिजीवी वर्ग इस पर गंभीरता से विचार-विमर्ष कर रहे हैं। युवा वर्ग मसाले लगाकर दोस्तों के बीच खबर फैला रहे हैं कि ‘‘अब पुरूष-पुरूष के साथ और महिल-महिला के साथ शादी विवाह के रिश्ते होंगे, लेकिन यह मत पूछना कि इन रिश्तो के बाद मां कौन होगा और बाप कौन बनेगा।’’

एक बड़े बुजुर्ग ने यहां तक कहा कि ‘मुझे तो बस यही चिंता है कि कहीं इस बहकावे में हमारे लड़के और लड़कियां न आ जायं।’ गांव के ही एक सज्जन जो अभी पुलिस विभाग में दरोगा हैं, ने कहा-अच्छा हुआ कि धारा 377 खत्म हुई, आजकल थाने में समलैंगिकता के केस कुछ ज्यादा ही बढ़ रहे थे, पुलिस के पास इसके अलावा भी बहुत काम हैं।’’

गांव के एक भोले-भाले और बड़बोले नाई ने कहा-इससे एक बात तो तय है कि जनसंख्या पर लगाम जरूर लगेगी तथा अब लड़के लड़की पर छींटाकसी न करके लड़के लड़के पर और लड़की लड़की पर नज़र गड़ायेंगें। गांव के चरवाहे ने कुछ इस प्रकार से अपना मत प्रकट किया-ऐसे ही सब कुछ चलता रहा तो इस धरती से मानव जाति समाप्त हो जायेगी।

गांव की दादी अम्मा तो रीति-रिवाजों पर बात करने लगीं-यदि लड़का किसी की बहू बनकर आयेगा तो वह पैर में बिच्छू और मांग में सिंदूर लगायेगा कि नहीं।’’

पंडित और विद्वान व्यक्ति समलैंगिकता को अप्राकृतिक, मानवीय व्यवहार के खिलाफ व भारतीय संस्कृति के खिलाफ बताते हुए दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले पर खिन्न हैं! उनका कहना है कि इस फैसले से कई तरह की सामाजिक व कानूनी दिक्कतें पैदा होंगी। मैरेज एक्ट के अमल में भी दिक्कत आएगी।

बात चाहें जो भी हो यह खबर जरूर बहस में हिस्सा लेने के लिए प्रेरित करती है।

Wednesday, July 8, 2009

जीते जी मूर्ति लगाने से दुश्मन तो लोग बहुत होंगे

जीते जी मूर्ति लगाने से
दुश्मन तो लोग बहुत होंगे
पर मूर्ति अगर लग जाती है
फायदे भी क्या कुछ कम होंगे

जीते जी मूर्ति लगी मेरी
तो खुद को देख अभी लूंगा
कुछ कमी नज़र आती यदि है
खुद अभी सुधरवा मैं दूंगा

हां मूर्ति लगी यदि जीते जी
तो पता अभी लग जायेगा
असली ग्रेनाईट लगने से
असली का बिल ही आयेगा

यदि पांच साल तक टूट गयी
गांरंटी है लग जायेगी
यदि बाद में कहीं टूट जाती
मुश्किल ही है लग पायेगी

है एक फायद बड़ा एक
यदि मूर्ति अभी लगवायेंगे
जनता जो वोट मुझे देती
मूर्ति को शीष नवायेगें

इसलिए आज ही जयपुर में
मूर्ति का आर्डर देता हूं
लाओ तुम बजट बनाकर के
‘शिशु’ पास अभी कर देता हूं।

अजब-गजब का हाल

शादी लड़के से ही होगी,
लड़का लड़का ही लायेगा।
लड़की दूल्हा बनकर के अब,
लड़की के घर ही आयेगा।

सौतन भी लड़का ही होगा,
जोगन भी लड़का ही होगा।
लड़की-लड़की संग भागेगी,
मज़नू-लैला अब न होगा।

अब दोस्त दोस्त संग चलने से,
निश्चित यारों कतरायेगें।
लड़की-लड़की यदि साथ चली,
हां अर्थ बदल तो जायेंगे।

मां-बाप आजकल सोच रहे,
क्या लड़का लड़की लायेगा?
या लड़की मेरी भाग किसी,
लड़की का साथ निभायेगा!

हो रहा अजब का गजब हाल,
वैज्ञानिक युग जो है ठहरा,
इस युग में सब कुछ जायज है,
पहले नाजायज था पहरा?

सच बात कहें तो ‘शिशु’ बुरा
दुनिया भर का बन जाएगा
क्या फर्क पड़ेगा इससे कुछ
वो तो बस लिखता जायेगा।

Tuesday, July 7, 2009

शहरी गरीब को दो कोटा उनकी अब बारी आयी है...

जाति-पांति अब है नहीं, हाँ केवल दलित कहाते
कोटे के अन्दर देखो अब निर्धन ब्राम्हण भी आते

बात एक सीधे सी है है तर्क भी सीधासाधा
आधा जो दलित कहाते हैं बाकी ब्राम्हण का है आधा

बाकी कोई बचा नहीं इससे, हाँ कुछ लोग हाय-तोबा करते
वो भी बन जायेंगे दलित कुछ नेता वादा हैं करते

कोटे की सब माया भाई, कोटे से बाहर हो ना कोई
कोटे पर गोटे फिट बैठें यह सोच रहे हैं सब कोई

हो गए बरस नौ-आठ-सात महिला कोटे में ना आयी
तैंतीस या पैंतीस जो भी हो उसकी बारी है ना आयी

इस बार सुना है कोटे में सस्ता अनाज मिल पायेगा
पीले कारट वाला जो है 'कोटे' का लाभ उठाएगा

कोटा-कोटा था शोर मचा हो गया इलेक्शन भी कोटा
जो दल पहले था जितना लम्बा इस बार हुआ उतना छोटा

इसलिए आज से 'शिशु' ने भी कोटे पर बात उठाई है
शहरी गरीब को दो कोटा उनकी अब बारी आयी है

Thursday, July 2, 2009

ममता जी तुम ही कुछ ममता दिखादो

रेल में है रेलपेल बड़ी भीड़ भारी है
एक-एक डिब्बे में अनगिनित सवारी हैं

बीस डिब्बा वाली ट्रेन एक-आध जनरल का
उस पर से आधा समझो सेना के कर्नल का

बैठे वाले खड़े नही जब तक हो पाएंगे
खड़े वाले जब तक न उतर कहीं जायेंगे

बाथरूम जाना भी एक तरह जंग है
कठिन काम समझो यदि जोरू भी संग है

बच्चे-बुजुर्गों पर बड़ी दया आती है
बाथरूम तक जाने की नौबत ही नही आती है

लालू को लिखा था डिब्बा बढ़ाने को
चला दिया गरीब रथ मजाक उडाने को

ममता जी तुम ही कुछ ममता दिखादो
एक और डिब्बा बस ट्रेन में बढ़ा दो

झगड़ा पानी पर ना होगा, घर में भी पानी आएगा


बह चली हवा, वर्षा ने भी अपना कमाल दिखलाया है
जिसका था इन्तजार कबसे, वो मौसम कल ही आया है

डाली-डाली है झूम रही कलियाँ कोमल मुसकायी हैं
पंक्षी भी चहक रहे देखो जबसे ऋतु प्यारी आयी है

जंगल में जीव सभी मंगल गीतों पर तान दे रहे हैं
मानो मिल गयी मांगी मुराद ऐसा गीतों में कह रहे हैं।

फसलें जो सूख रही थी उनको जीवन दान मिल दूजा
खुश होकर मन ही मन किसान ईश्वर की करता है पूजा

पानी की कमी नहीं होगी इस मौसम के आ जाने से
बिजली भी पानी से बनती वो भी आयेगी आने से

झगड़ा पानी पर ना होगा, घर में भी पानी आएगा
मालिक मकान का खुश होकर मोटर भी रोज चलाएगा

छुट्टी करने वालों को भी बारिश में मौका मिलता है
'शिशु' कहते हैं इस बारिश में ही कमल-कुमुदिनी खिलता है

Thursday, June 25, 2009

तुम काम के हो मेरे तुम मांगलो इनाम

तुमने मेरा नाम किया खूब बदनाम
तुम काम के हो मेरे तुम मांगलो इनाम

तुम सत्य बोलते रहे तुम सत्य के गुलाम
मैं झूठ बोल जीत गया तुमको मेरा सलाम

तुम घूम - घूम कर करते रहे प्रचार
मैं भरी भीड़ बोला बस हो गया प्रचार

तुम जेल से हो डरते तुम्हे जेल का मलाल
मैं जेल जैसे पहुँचा बस हो गया कमाल

पहचान जाओगे अगर मैं कौन हूँ क्या नाम?
लिखकर मुझे बताना बस लिखना मेरा काम

Tuesday, June 16, 2009

लड़ता देख हम दोनों को बिल्ली चट कर गयी मलाई!

कुत्ता कुत्ते से बोला ये, क्यूँ लड़ता मेरे भाई,
लड़ता देख हम दोनों को बिल्ली चट कर गयी मलाई!

गधा मनुष्य को देखकर बोला मीठे बैन,
हम तो चलो गधे हैं दादा तुम हो क्यूँ बेचैन!

चिडिया घर में शेर देखकर बन्दर बोला बानी
मैं तो चलो शरारत करता तुमने क्या की थी शैतानी

देखि जीत ओबामा की माया जी थीं बोलीं
अब तक यूपी था मेरा अब दिल्ली मेरी होली

देखि गरीबी ग्राफ से प्रोग्रामर ये बोला
तुम सब बैठ के बज़ट बनाओ मैं फैलाता झोला

Sunday, June 14, 2009

चार दिनों से घंटी वाली मीटिंग में था भाई

चार दिनों से घंटी वाली मीटिंग में था भाई
इसीलिये मन की बातें ना ब्लॉग में हैं कह पाई

घंटी से होती शुरुआत घंटी बजी तो होती रात
घंटी बजते खाना होता घंटी बज जाती तो बात

घंटी वो भी देशी ना थी इसीलिये बैठना जरूरी
कुछ तो अपने मन से बोले कुछ लोगों की थी मजबूरी

घंटी घंटों के हिसाब से अपना काम कराती
जैसे ही कुछ देर करी तो घंटी थी बज जाती

घंटी बोली कार्यालय को रखो व्यवस्थित हर दम
हर मैनुअल को स्वयं बनाओ करो सुचारू हर दम

इस घंटी वाली मीटिंग में कुछ बड़बोले आते
बात सही थी पता ना उनको पर बोले ही जाते

'शिशु' का मकसद था बस इतना आपको यह बतलाऊं
रहा कंहा इतने दिन तक मै सच - सच बात बताऊँ

Tuesday, June 2, 2009

हे संसद के देवता तुमसे मेरी आस...............

कोटि-कोटि तुमको नमन, तुमसे है अरदास,
हे संसद के देवता तुमसे मेरी आस!

बिजली, पानी गाँव में पहुंचा दो सरकार,
सड़क बना दो देल्ली जैसी तुमसे है दरकार!

काम दिलादो गाँव में, हो जैसी जिसकी शिक्षा,
मांग रहा हक़ आपसे नहीं समझना भिक्षा!

गमन-आगमन हो सुगम ऐसा करो उपाय,
रेल चले या ना चले बस लेकिन चल जाय!

कसम तुम्हे जो दी गयी उसपर खरे उतरना,
लाज ना जाये कुर्सी की ऐसा कुछ न करना!

विनती अंतिम एक है, हे संसद के देव,
रोटी, घर, कपडा मिले उत्तम स्वस्थ सदैव!

गलत कहा यदि दास ने तो देव रखो ये ध्यान,
क्षमा करो 'शिशु' समझ कर या अज्ञानी जान!

Monday, June 1, 2009

जरूर-जरूर मिलेंगे जरूरी नहीं.........

जरूर-जरूर मिलेंगे जरूरी नहीं,
मिलेंगे इसलिए नहीं कोई मजबूरी नहीं है!
इशारों- इशारों में अब बात कम ही होती है,
क्यूंकि दोनों के बीच अब वो दूरी नहीं है!
दूरियां बांटी है मोबाइल और लिविंग रिलेशन ने
आगे और सुनो मियां बात अभी पूरी नहीं है!
फिल्मे भी कम ज्ञान नहीं देती दीवानों को,
प्यार कैसे करें सिखाते हैं ज़माने को,
अब लैला और मजनू कोई नहीं बनता,
मौका मिला एक दूसरे को फ़ौरन बदलता,
अब प्यार के लिए फैशन भी जरूरी है,
ब्रांड इसलिए पहना क्यूंकि मजबूरी है!
हाँ हमारे ज़माने की और बात थी
'शिशु' वो बात यंहा बताना जरूरी नहीं है!

Sunday, May 31, 2009

झूठा सभी जानते उसको फिर भी भाव सभी देते.........

दिन भर झूठ बोलता रहता
काम नहीं करता कोई
सत्य को झूठ बोलता चलता
झूठ भी झूठ कहे वो ही

झूठ बोलकर मिली नौकरी
झूठे उसके काम
झूठ खुशामद करता रहता
झूठे ही करता बदनाम

झूठ मूठ की करे लडाई
झूठा रोके झूठ दिखाता
रोज देर से ऑफिस आता
झूठ बोलकर के बच जाता

झूठे रूठ सभी से जाता
झूठ बोलदो मान भी जाता
काम करे जो गलत ही करता
झूठ बोल सब कुछ पा जाता

झूठा सभी जानते उसको
फिर भी भाव सभी देते
झूठ बोलकर उस झूठे से
अपना काम करा लेते

Thursday, May 28, 2009

अजीब शहर है ये, लोग बेगाने से लगते हैं

अजीब शहर है ये, लोग बेगाने से लगते हैं,
अपना यंहा कोई नहीं, सभी सयाने से लगते हैं।
मै खोजता हूँ वो जगह जंहा कुछ राहत मिले,
वर्दीधारी लोग वंहा से भी भगाने लगते हैं।
जिधर भी जाओ भीड़-भाड़ है, सोचता हूँ पैदल चलूँ,
पर कार वाले सड़क पर हड़काने लगते हैं।
सोचता हूँ कुछ सोकर वक्त गुजारूं,
रात को ऑफिस वाले जगाने लगते हैं।
देखने का मन करता है पुरानी इमारतें,
जब जाओ तो वंहा कुछ न कुछ बनाने लगते हैं।
दिल करता है जीभर कर रोऊँ,
लेकिन लोग आकर हँसाने लगते हैं।
'शिशु' यंहा किसी को कुछ पता नहीं,
फिर भी आकर समझाने लगते हैं।

Wednesday, May 27, 2009

मै गधा हूँ मुझे गधा ही रहने दीजिये

मै और मेरा गधा अक्सर ये बातें करते हैं,
कि काश मै गधा और तू इंसान होता,
मैं एसी में बैठता और तू सामान ढोता
मै यह सुनकर खुश होता कि
इंसान के रूप में भी उसे गधा कहा जाता
और मै जो वास्तव में एक गधा होता
मुझसे यह देख कर बड़ा मजा आता
कि इंसानों का मालिक जो काम कराता है
वह वास्तव में गधे के मालिक से अधिक ही कराता है
हां गधा काम करे या ना करे,
उसे डंडे जरूर पड़ते हैं
और उधर यह क्या कम है
जो गधा अभी इंसान है,
उसे मालिक तो मालिक
उसके चमचों से भी हाथ जोड़ने पड़ते हैं।
एक बात और इंसान को दाल रोटी के लाले पड़े हैं
क्यूंकि जंहा अनाज है वंहा ताले जड़े हैं
गधे को क्या बस काम करते जाओ
आजकल खेतों में भूषा वैसे ही नहीं होता
इसलिए इंसान कि तरह अनाज खाते जाओ
गधे का नाम भी हमेशा एक सा रहता है
इसलिए कि वह गधा है गधा ही रहता है
अब देखो मेरा गधा जो इंसान बन बैठा था
मेरे पास आया और बोला
बोला क्या, एक रहस्य खोला
हे मनुष्य हम गधे ही अच्छे क्यूंकि
तब भी मै गधा था और अब भी मुझे गधा कहा जाता
इसलिए मुझसे यह गम सहा नहीं जाता
आप इंसान हैं आपको पद और पदवी से लगाव है
इसलिए आप मेरी पदवी ले लीजिये
मै गधा हूँ मुझे गधा ही रहने दीजिये
मै गधा हूँ मुझे गधा ही रहने दीजिये

यदि दिल को सुकून मिलता है तो गाना गाना ही चाहिए

अक्सर लोग कहते हैं कि-
मनुष्य को हमेशा आशावाद में जीवन बिताना चाहिए,
बात बने या ना बने
फिर भी उसे बनाना चाहिए,
काम भले ही छोटे किये हों
उन्हें बड़ा बना कर बॉस को बताना चाहिए,
खुद झूठ बोलो
और दूसरों को सत्य का पाठ पढाना चाहिए,
गलती भले ही प्रेमिका ने की हो
लेकिन बॉस, उसे तुम्हे ही मनाना चाहिए,
गंगा - यमुना में पानी भले ही साफ़ न हो
फिर भी हर पर्व-त्यौहार उसमे नहाना ही चाहिए,
क्या फर्क पड़ता है यदि गाना नहीं आये
यदि दिल को सुकून मिलता है तो गाना गाना ही चाहिए,
'शिशु' तो ऐसे ही लिखते रहते हैं
क्यूंकि उसे तो बस लिखने का बहाना चाहिए

Tuesday, May 26, 2009

अब देखिये रात में हो रही बात है

क्या बात है?
आजकल हर किसी से हो रही मुलाकात है
दिल में अजीब सी खलबली मची है
क्यूंकि, यह पता नहीं किसकी करामात है
कि जबकि पास थे वो उनका नाम तक नहीं याद था
और अब जब मै भूल गया उनको, तब बन गए ऐसे हालात हैं
कि मुलाकात हो रही है,
वो भी ऐसे मौसम में जबकि झमाझम बरसात है
सोचते थे कि दिन में मिलेगें दोस्त
अब देखिये रात में हो रही बात है

Friday, May 22, 2009

कठिन काम गार्ड का है बाहर ही बैठा रहता

कठिन काम गार्ड का है बाहर ही बैठा रहता,
गर्मी, सर्दी, बरसातों की असली मार है सहता

घंटे १२ ड्यूटी करता, हरदम हँसता जाता
फिर भी अन्दर वालों से वह पैसा कम ही पाता

कहीं भूल से कोई अन्दर बिना पूछ कोई जाता
अगले दिन ही मालिक की वह कड़ी डांट पा जाता

भूल से भी यदि कहीं रात में नीद उसे आ जाती
अगले दिन की उसकी काम से छुट्टी कर दी जाती

'शिशु' की विनती ऑफिस से उसको कूलर दिलवादो
कुछ पैसा हम लोग लगायें कुछ ऑफिस से दिलवादो

Thursday, May 21, 2009

रूठ गई प्रेमिका सहेली ने बताया है

रूठ गई प्रेमिका, सहेली ने बताया है,
पहला प्रेम पता चला, पहली ने बताया है,

पहली को दरियागंज दूसरी को संगम में,
'दिलवाले' एक नही कई बार दिखाया है!

पहली को दिल्ली हाट, दूजी देख रही बाट,
अगले दिन उसको भी लोधी पार्क लाया है!

सोने की पालिश के कुंडल दिए पहली को,
कही रूठ जाए ना वही दिए अगली को!

'शिशु' कहें यही प्यार अब दिल्ली में दीखता है,
छोटा भाई बड़े से यह मुफ्त में ही सीखता है!

Wednesday, May 20, 2009

बड़ी लगन करके पप्पू ने, दूजे पप्पू से पिण्ड छुड़ाया

शौख़ एक ऐसा चर्राया
वोट डालने की ठानी।
बहुतों ने कितना समझाया
बात किसी की ना मानी।।

नाम से पप्पू पहले ही था
इसीलिए पप्पू पद छोड़ा।
जनरल डिब्बे में जा बैठा
भीड़-भाड़ में ही दौड़ा।।

जेब कटी और बैग भी टूटा
लेकिन हिम्मत ना हारी।
दूजा पप्पू अब ना बनना
कोशिश उसकी थी जारी।।

शहर से कस्बा जैसे पहुंचा
बस में भीड़-भाड़ भारी।
दूजा साधन था एक टैम्पो
उसमें थी मारा-मारी।।

कोस एक पैदल ही चल गया
नशा वोट का था ऐसा।
भरी धूप में ऐसा लगता
मौसम हो बरखा जैसा।।

मां जी बोली खाना खाओ
पप्पू देर हुई भारी।
पप्पू बोला पहले वोट
उसके बाद बात सारी।।

वोट डाल 'शिशु' जैसे आया
स्याही का निशान मन भाया।
बड़ी लगन करके पप्पू ने
दूजे पप्पू से पिण्ड छुड़ाया।।

Tuesday, April 21, 2009

हाय मंहगाई है! हाय मंहगाई है!

हाय मंहगाई है! हाय मंहगाई है!
शोर चहुंओर सुनाई रहा जोर जोर
काम-धाम कोई नहीं, लोग बेहाल हैं,
मालामाल जो पहले थे अभी फटेहाल हैं।
शेयर का गेयर फंसा है मोटर गाड़ी में,
फैशन को छोड़छाड़ महिला है साड़ी में।
डेटिंग भी नेट पर है कौन जाय होटल में
बिल बहुत आवत है टुटपुजिंया होटल में।
घरमा नहीं हल्दी है घरमा नहीं मिर्चा है।
लेइलेउ लोन संइयां कहीं से उधार में
खर्चा स्कूटर का उतना ही पड़े बलम
इसलिए हम घूमेंगे टाटा नैनों कार में।
'शिशु' कहें शर्म के मारे बुरा हाल है
बड़े बड़े अफसर की बदल गयी चाल है।

जबसे मैंने नया जूता खरीदा है मेरी चाल बदल गयी है

जबसे मैंने नया जूता खरीदा है
मेरी चाल बदल गयी है
पर जमाने की चाल वही है
दोस्त कहते हैं कि
मैं बायें पैर पर ज्यादा वजन डालने लगा हूं।
बात यह है कि
दाहिने पैर की तकलीफ टालने लगा हूं।
(सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता जूता-2 से साभार)

Wednesday, April 15, 2009

अर्थ का अनर्थ

आचार्य जी उपदेश दे रहे हैं-आत्मा अमर है। इस संसार में जो भी आया है जायेगा। लेकिन कोई भी इंसान मरता नहीं। बस एक चोला छोड़ा और दूसरा पकड़ा। मतलब। मतलब यह कि आत्मा अमर है। अब यह चोला शब्द जो है स्त्री और पुरूष दोनों के लिए प्रयोग में लाया जाता है, जबकि देखा जाय तो पुरूष के लिए चोला और स्त्री के लिए चोली होना चाहिए। लेकिन हमें अर्थ का अनर्थ नहीं करना है इसलिए इसे चोला ही कहना ठीक होगा।

खुशबू और बदबू दो अलग-अलग शब्द हैं। शहरी और पढ़े-लिखे लोग इसे बखूबी समझते हैं। लेकिन उन भोले-भाले गांव देहात के निवासियों के लिए अभी भी इसका एक ही शब्द है। वे इसे महक कहते हैं। यदि खुशबू है तो वे इसे कहते हैं कि क्या अच्छी महक है और यदि कहीं से बदबू आ रही है तो वे उसे भी महक कहते हैं लेकिन थोड़ा नाक सिकोड़ कर, क्या अजीब सी महक आ रही है। शहरी लोगों के सामने यदि कोई इसे कहे तो वे तो यही कहेंगे कि क्या अर्थ का अनर्थ कर रहे हो यार।

अर्थ का अनर्थ करने में यदि देखा जाय तो पुरूष कहीं महिलाओं की तुलना में आगे हैं। अब KLPD को ही ले लीजिए, किसी वैज्ञानिक से इसका अर्थ पूछेंगे तो वह किसी धातु का शूक्ष्म रूप ही बतायेगा। किसी इंगिलिष विज्ञान से पूछेंगे तो वह अलग-अलग शब्दों द्वारा इसका वर्णन करेगा, और यदि किसी महिला से पूछेंगे तो वह कहेगी- (K)क्या (L)लौट आये (P)पुराने (D)दिन। लेकिन अब यदि यही किसी सयाने पुरूष से पूछेंगे तो वह इसका अर्थ का अर्नथ कर देगा ।

मुझे
तो इस अर्थ के अनर्थ से यह समझना है कि क्या अर्थ के अनर्थ को करने वाले ज्यादा पढ़े-लिखे होते हैं क्या अनर्थ का अर्थ बताने वाले ज्यादा समझदार। सवाल का इंतजार है।

Wednesday, April 1, 2009

हैपी अप्रैल फूल..............

मित्र ने बधाई दी, कहा हैपी अप्रैल फूल,
सेम टू यू कहकर मैं भी हो गया कूल।
मैंने कहा क्या सेम टू यू बोलना ज़रूरी है?
उसने कहा बेवकूफ ज़रूरी नहीं, यह तो मजबूरी है,
क्योंकि जो भी पश्चिमी त्यौहार है,
उससे हम हिन्दुस्तानियों को प्यार है।
अरे मिया तुम क्या समझोगे,
तुमसे तो बोलना ही बेकार है।
इसलिए कि तुम अभी भी 20वीं सदी में जी रहे हो
बाजार में कब की इंग्लिश ही आ गयी तुम अभी देशी ही पी रहे हो
आदमी कहां से कहां पहुंच गया
नासमझ भी अंग्रेजी समझ गया
तुम अभी तक झूलेलाल ही रहे, तुम्हें कुछ नहीं पता
इसलिए कह रहा हूं अंग्रेजी सीख और हिंदी को बता धता
तभी पढ़े-लिखे कहलाओगे
नहीं तो गंवार हो और गंवार ही कहलाओगे।

Wednesday, March 25, 2009

खास आदमी चमचा बनकर पा लेता ऐशोआराम

चाँद चाँदनी दोनों है पर चाँद नही मेरा
चाँद अभी है वैजानिक का उसपर है उसका डेरा

सड़के नही आम लोगों की कुछ खास लोग ही उसपर हैं
खास लोग बंगलों में रहते आम लोग सड़कों पर हैं

आम आदमी करता काम बदले में मिलता कम दाम
खास आदमी चमचा बनकर पा लेता ऐशोआराम

आम आदमी सोता-रोता हँसता कभी कभी
खास आदमी हँसता रहता सोता कभी कभी

आम आदमी ने छेड़ी है अब रोटी पर जंग
खास आदमी खाकर पीजा बोला मैं हूँ तेरे संग

जिप्पी बोला पापा से मैं विदेश ही जाऊँगा

जिप्पी बोला पापा से मैं विदेश ही जाऊँगा
रोटी खाकर तंग आ गया अब पीजा ही खाऊँगा

एक तो पैसा यंहा नही है दूजे लोग मतलबी
बस जाऊंगा मैं विदेश में आऊंगा मैं कभी कभी

नाजी नाजी मैं न करता अपने देश कभी शादी
वहीं करूँगा गोरी से ही भले उम्र बीते आधी

बचपन से ही लगन लगी थी इसलिए नही मैं पढ़ पाया
कैसे हो विदेश जाना इसलिए गाँव से मैं आया

यंहा भले कुछ काम कराओ पर ऐसा उपाय कर दो
पैसा जो भी लगे लगाओ पर वीजे का उपाय कर दो

पता नही क्यूँ वीजा लगता अब तक मैं विदेश होता
दिन में मस्ती खूब मचाता और रात को जीभर सोता

बोल वचन की धूम है जैसे ही चुनाव आया

बोल वचन की धूम है जैसे ही चुनाव आया
जनता ने सब देख लिया है नेताओं ने फ़रमाया

भाषणबाजी हो रही घमासान गंभीर
हर दल में कोई ना कोई बना हुआ है वीर

वोट हमें ही दीजिये नाम मेरा बलवीर
मैंने ही विकास करवाया मैं ही बदलूँगा का तकदीर

आचार संहिता की हो रही छीछालेदर रोज
बोल वचन बोलने वालों को आयोग रहा है खोज

पिता-पुत्र आजमा रहे अपना अपना भाग्य
जीत गए तो ठीक है ना जीते वैराग्य

Thursday, March 19, 2009

लिविंग रिलेशन में रहें आज लोग खुशहाल

लिविंग रिलेशन में रहें आज लोग खुशहाल
शादी करने वाले जो हैं घूमें हाल बेहाल

आंखों में पानी नही काज़ल लिया लगाय
पार्क घूमते खुल्लमखुल्ला शर्म हया न आए

लड़की सिगरेट फूंकती नारीवाद के नाम
घर का काम पुरूष अब करते वो करती आराम

अपने देश लोग बेगाने जिनकी इंग्लिश कच्ची
बाबू जी को हड़काती है इंग्लिश बोले बच्ची

कोर्ट कचहरी के चक्कर में आम लोग बेहाल
उन्हें जमानत जल्दी मिलती जो हैं मालामाल

आते ही ऋतू चुनाव की नेता बोला बानी
मैंने ही विकास करवाया पंजा मेरी निशानी

Thursday, March 5, 2009

छोटे अकडू जो दल सारे उनको कोई फिक्र नहीं

चोर-चोर मौसेरे भाई अब अच्छे हो गए
कितना झूठ बोलते थे वे अब सच्छे हो गए

गुंडे और मवाली जो थे संरक्षक बन गए
सपा से पिछले प्रत्याशी बसपा में चले गए

नारे बदले नीति भी बदली वादों की फुलझडी लगी
कब्र में पांव लटकाए बैठे पर चुनाव की लगन लगी

मंदिर मुद्दा फिर गर्माया यह बोलीं माया
केंद्र में जो कांग्रेसी हैं उनका काम नहीं भाया

कहे भाजपा और दुबारा दलित हमारे साथी हैं
कुछ न किया है बसपा ने केवल उनको भरमाती है

पूंजीपति का करें समर्थन कामरेड हैं कहलाते
इससे उसमे शामिल होकर जनता को हैं भरमाते

छोटे अकडू जो दल सारे उनको कोई फिक्र नहीं
बाहर से ही करें समर्थन पद मिलता निश्चित कोई

'शिशु' कहें देखो चुनाव में मिला दोस्त दुश्मन का मन
पिता पुत्र और भाई - भाई आपस में बन गए दुश्मन

असली न लोग रंग किसको लगाऊं मै.....

रंग भी न असली है ढंग भी न असली है,
असली न लोग रंग किसको लगाऊं मै!
रंग किसको लगाऊं मै!

प्यार है दिखावा ही प्रेमिका न अपनी है,
अपनी न भाभी कोई सारी ही मैडम हैं !
रंग किसको लगाऊं मै!

भीड़-भाड़ इतनी है मेला हाट जितनी है,
कौन कौन अपनों है कुछ न समझ आवे है!
रंग किसको लगाऊं मै!

इंग्लिश ही मिलती है देशी का नाम नहीं,
और हम जैसे लोंगन का यंहा कोई काम नहीं !
रंग किसको लगाऊं मै!

'शिशु' कहें पीने पिलाने का दौर यंहा कन्हा,
जितना मज़ा गाँव में है उतना और कन्हा
रंग किसको लगाऊं मै!

Wednesday, February 25, 2009

राम राम कहो माखन मिश्री घोलो ... व्यंग मत बोलो

व्यंग मत बोलो
काटता है जूता तो क्या हुआ
पैर में न सही सर पर रख डोलो
व्यंग मत बोलो

कुछ सीखो गिरगिट से जैसी साख वैसा रंग
जीने का यही है सही सही ठंग
अपना रंग दूसरों से है अलग तो क्या हुआ
उसे रगड़ धोलो
पर व्यंग मत बोलो

भीतर कौन देखता है बाहर रहो चिकने
यह मत भूलो यह बाज़ार है सभी आये बिकने
राम राम कहो माखन मिश्री घोलो
व्यंग मत बोलो
(यह कविता सर्वेश्वर दयाल सक्सेना के संकलन से ली गई है)

खुदका हित बनता है यदि तो झूठ बोलते जाओ ....

सोच समझकर बोलना भले झूठ हो सत्य
जितना संभव हो सके छिपा सभी लो तथ्य
छिपा सभी लो तथ्य झूठ का दामन पकडो
काम करे जो जितना ही उसको ही रगडो
कहें 'शिशु' सत्यता ना कटु बनाओ
खुदका हित बनता है यदि तो झूठ बोलते जाओ

दोस्त भले दुश्मन बने अपना हित लो साध
सबसे पहले खुद को देखो उसके बाद एकाध
उसके बाद एकाध और वो भी अपने हो
भले इन्ही अपनों की खातिर नाम कई क्यूँ जपने हो
'शिशु' कहें बात है सीधी साधी
साध के अपना हित करो दूसरों की बर्बादी

गाँव गाँव नौबत बजी अच्छो को लो खोज
पकड़ पकड़ लाओ यंहा देता हूँ मै डोज़
देता हूँ मै डोज़ बड़े अच्छे बनते हैं
है कठोर कलयुग फिर भी सच्चे बनाते हैं
'शिशु' कहें शुभ चुनाव की बेला आई
गुंडों और बदमाशों ने यह नौबत बजवाई

अभिनेता नेता बने अभिनय फेंका दूर
जैसे ही कुर्सी मिली वादे हुए कफूर
वादे हुए कफूर राह अभिनय की पकडी
और दूसरे एक संसद की कुर्सी जकड़ी
'शिशु' कहें आज नेता ही अभिनेता पूरे
इसीलिये जनता के वादे रहते सदा अधूरे

Tuesday, February 24, 2009

'शिशु' कहे इसलिए आज से चिकनी चुपडी बोलूँगा.....

कटु सत्य कह देने में कठिनाई बहुत बड़ी होती
और बाद में यह उसके धन की हानि है कर देती

कभी कभी इस कटु सत्य से दोस्त भी दुश्मन हो जाते
और दुश्मनों के मन में हम अपनी छाप बना जाते

पहले के युग में थी अपनी इसकी अलग बड़ी पहचान
आज अगर कटु सत्य सुनाओ आफत में पड़ जाती जान

क्यूंकि कान अब कच्चे हो गए सुनने को तैयार नहीं
कहा कही यदि साथी को तो समझो अब वो यार नहीं

कार्यालय में कटु सत्य तो और भी है आसान नहीं
यदि धोखे से निकल गया तो समझो कोई मान नहीं

'शिशु' कहे इसलिए आज से चिकनी चुपडी बोलूँगा
भले देख लूं आखों से मगर सत्य न बोलूँगा

Wednesday, February 18, 2009

हँसना हितकर है बहुत, हँसों जोर से रोज

हँसना हितकर है बहुत, हँसों जोर से रोज
कैसे हँसना हो अभी, सभी लोग लो खोज
सभी लोग लो खोज और हँसते ही जाओ
नही अगर हो ऐसे हो हंसने की गोली खाओ
कह कवि 'शिशु' बात तुम मेरी मानो
हँसना है हितकर हसीं की कीमत जानो

रोना अच्छी बात ना इससे कर परहेज
कैसे भी कुछ भी करो आंसू रखो सहेज
आंसू रखो सहेज कीमती मोती ना खोना
कुछ भी हो जाए लेकिन तुम कभी ना रोना
कह कवि 'शिशु' दुआ कोई न रोये
आंसू जो मोती जैसे कोई न खोये

Thursday, February 12, 2009

सड़क किनारे भीख मांगते बच्चे जो दिखते हैं सारे

सड़क किनारे भीख मांगते बच्चे जो दिखते हैं सारे
जाने कब? कैसे निकलेगे? इस दलदल से तारे

भीख मिलेगी ज्यादा क्या? इसलिए बेचारे रोते
सुबह-रात हो सभी दीखते जाने कब ये सोते

जाड़ों की भीषण रातों में सदा उघारे रहते
गर्मी अब आयेगी तब ये मैला कोट पहनते

जो बच्चे हैं भीख मांगते उनकी उम्र है कच्ची
बड़ी उम्र के किताब बेचते करते माथा-पच्ची

कुछ बच्चे तो गाड़ी भी उन कपड़ों से चमकाते
जिन्हे पहन सर्दी-गर्मी में चौराहों पर आते

दशा कहें या अति दुर्दशा उन बच्चों की होती
जिनको चलने-फिरने या फिर कमी अंग में होती

वे सड़कों के खड़े किनारे बेबश हो बेचारे
देखें कातर नजरों से, कोई उनको देख पुकारे

कुछ बच्चे जो अच्छे-खासे बने अपाहित फिरते
क्योंकि मिलेगा पैसा ज्यादा इसी ताक में रहते

जैसे ही रेड लाइट पर गाड़ियां रूकेगी सारी
कभी-कभी भीख की खातिर करते मारा-मारी

नियम बने कानून बने पहले से इतने ज्यादा
किन्तु आज तक लागू हो पाया देखो आधा

इन गरीब बच्चों के नाम, कुछ लोग जहाज में चलते
मोटी-मोटी तनख्वाहों से अपनी जेबें भरते

प्लानिंग करते, मीटिंग करते, मंहगे होटल में रूकते
उन बच्चों की फिक्र न कोई जो कष्ट अनेकों सहते

वर्कशाप अंग्रेजी में हो यह ध्यान हमेशा रखते
किन्तु न करते जरा ध्यान भी जिनकी दम पर चलते

राइट बेस अप्रोच बनाते एडवोकेसी करते
जितनी भी एनजीओ हैं सब देखा-देखी करते

'शिशु' कहें लिखने में मेरा हृदय द्रवित हो जाता
इससे ज्यादा हाल बुरा अब लिखा नही है जाता

Wednesday, February 11, 2009

जो दिल में घाव करे गहरे उसको ही प्यारा कहते हैं

हंसी-हंसी में दिल को लगाया रोने वाली बातों को।
क्या बतलायें कैसे झेला उन अंधेरी रातों को।।

जबसे तूने प्यार के बदले कीमत देनी चाही है।
तबसे हमने ठान लिया तेरे आने की मनाही है।।

जो प्यार करे इस दुनिया में उसको आवारा कहते हैं।
जो दिल में घाव करे गहरे उसको ही प्यारा कहते हैं।।

मनचलों को मनमाना कहते, मनचला नहीं, तो प्यार करें।
जो प्यार करे सच्चा-सच्चा, उस पर ना वो इतबार करें।।

रोने वालों को लोग कहें, दुख इसके बहुत बड़े होंगे।
जो हंस कर कष्ट छिपाते हैं वो उनसे बहुत बड़े होंगे।

बेवफ़ा यहां पर हर कोई, ये बात अलग बतलाये ना।
है सच्चा जो बतलाये ये, जो झूठी कसमें खाये ना।

क्या 'शिशु' कभी झूठा होगा ये आज तुम्हें बतलाता है।
बतलाने से पहले यारों खुद झूठी कसमें खाता है।

अब यार रहे ना याराना, अब हीर नहीं कोई रांझा
अब प्यार भी चलता है वैसे जैसे धंधों में है साझा

फूल देते 'फूल लोग' ताकि प्यार याद रहे!

प्यार, तकरार, रार आदमी की देन है,
आदमी ही आदमी का बहुत बड़ा फैन है!

प्यार जब करे कोई देखता न रूप-रंग,
उम्र सीमा कोई नही, देखता ना कोई ढंग!

प्यार के इज़हार की है आदि-अंत कोई नही,
दूजी बात जाती-पांति उम्र सीमा कोई नही!

पहला प्यार भूलना है काम आसान नही
और दूजे प्यार पाना भी यार है आसान नही

प्यार का ना कोई दिन, रोज़-रोज़ प्यार रहे
फूल देते 'फूल लोग' ताकि प्यार याद रहे!

'शिशु' कहें प्यार में तकरार एक आम बात,
किंतु तकरार में यदि प्यार रहे बड़ी बात!

Thursday, February 5, 2009

भारत की ऋतुएँ सब प्यारी .............

डाल-डाल पर फूल खिले हैं
कलियाँ भी मुस्काईं
भौंरे तितली गीत गा रहे
पतझड़ की ऋतु आई

बोल पपीहा रहा कहीं पर
कोयल गाती है मधुर गीत
भौरें गुंजन करते रहते
जैसे साजन-सजनी की प्रीत

सूरज की तपन बढ़ी ऐसी
कुछ-कुछ गर्मी लगती है
जाड़ा समझो हो गया ख़त्म
नयी ऋतु प्यारी ये लगाती है

इस मनमोहक ऋतु का
हर कोई करता रहता इन्तजार
सुंदरियाँ करती हैं श्रृंगार
प्रिय का पाती भरपूर प्यार

फसलें पक जायेंगी
होगा अनाज भरपूर
यह सोच रहा है एक किसान
अब पल वो नही है दूर

भारत की ऋतुएँ सब प्यारी
हर ऋतु का अपना अलग मजा
लेकिन इस बसंत ऋतु का
सबसे बढ़कर है अलग मजा

होली के हुडदंग में उसने पीली कुछ ऐसी

होली के हुडदंग में उसने पीली कुछ ऐसी
होश गवां बाप से बेटा बोला तेरी ऐसी- तैसी

बिना पिए, कह देता हूँ इस बार नही रंग खेलूँगा
अब मै बच्चा रहा नही, इसलिए नही रंग खेलूँगा

ख़ुद विस्की पीकर खुश होते मुझे रंग की पुडिया
बेटा हूँ मै, बेटी कोई जो दिखलाते गुडिया

चल निकाल सौ सौ के नोट, दो अद्धे लाऊंगा
दे दस दस के खुल्ले नोट नमकीन भी लेता आऊंगा

होली में रंग का क्या लेना कीचड कब काम में आएगा
खालो - पीलो मौज मनालो साथ में कुछ न जाएगा

सुनकर ये बातें बेटे की बाप तुरत ही बोला
हाय! व्यर्थ जीवन में बीता, अब सच तूने बोला

जर जमीन जोरू जो है उसको जल्दी बिकवादे
अद्धे को तू मार दे गोली पूरी बोतल पिलवादे

Wednesday, February 4, 2009

चुम्में और अश्श्लीलता

दोस्तों एक बहुत खतरनाक मुद्दे पर लिखा रहा हूँ, लेकिन डर है कि कहीं बीबी ने पढ़ लिया तो जूते पड़ जायेंगे। बोलेगी कि निजी जीवन को सार्वजनिक करते हो। खैर जब बात उठी ही है तो कुछ लिखते हैं, लेकिन खुल कर नहीं। अभी हाल ही में डेलही हाई कोर्ट ने आदेश सुनाया कि अब पति और पत्नी खुले आम कही भी चूमाचाटी कर सकते हैं। लेकिन ध्यान यह रखना होगा कि कोई उसका गवाह न बने. डेलही जैसे भीडभाड वाले शहरों में जंहा हर आदमी काम बस काम और जल्दबाजी में रहता है ऐसे में किसको पड़ी है कि वो किसी के चूमाचाटी के लिए कोर्ट कचहरी के चक्कर लगाये. सो ये बात अब तय है कि कोई भी कहीं भी चूमाचाटी कर सकता है.

अभी हॉल ही में भारत की एक अदालत ने दिल्ली में सार्वजनिक स्थान पर चुंबन के कारण अश्लीलता के आरोप झेल रहे एक दंपत्ति के ख़िलाफ़ मामले को ख़ारिज़ कर दिया है।दिल्ली उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि कैसे किसी युवा विवाहित दंपत्ति के प्यार जताने पर अश्लीलता का आरोप लगाया जा सकता है?

इससे पहले हमारे यंहा किसी पर अश्लीलता का आरोप तब लगाया जाता है जब इससे जनता को परेशानी हो, ऐसे अश्लील आचरण के लिए अधिकतम तीन महीने क़ैद का प्रावधान है। लेकिन इस बार डेलही की एक अदालत में जज ने फैसला सुनते हुए कहा कि अगर पुलिस की रिपोर्ट सही भी है तो भी यह बात समझ में नहीं आती कि एक युवा विवाहित जोड़े के प्रेम प्रदर्शन को कैसे अश्लीलता के दायरे में लाकर कानून की उत्पीड़क प्रक्रिया में डाला जा सकता है.

याद दिला दें कि इस विवाद का जन्म तब हुआ जब मशहूर होलिहूड अभिनेता रिचर्ड गियर ने एक समारोह में शिल्पा शेट्टी का चुंबन लेकर विवाद पैदा कर दिया था! सन 2007 में हॉलीवुड के अभिनेता रिचर्ड गियर ने दिल्ली में आयोजित एक समारोह में भारतीय अभिनेत्री शिल्पा शेट्टी का सार्वजनिक रूप से चुंबन लेकर विवाद पैदा कर दिया था। इसके विरोध में अनेक प्रदर्शन भी हुए थे.

इस सबसे एक बात तो तय है कि अब इस चूमाचाटी से मनचले प्रेमी और प्रेमिकाओं को शादी के नाम पर चूमाचाटी का मौका जरूर मिल जाएगा!

Wednesday, January 28, 2009

उपदेशों की बानगी

हमारे यहां एक कहावत है- ‘पर उपदेश कुशल बहुतेरे’।

उपदेश
और उपदेशक हमारे देश की महानता को दर्शाते हैं। कहा जाता है कि हमारे देश से बढ़कर दुनिया में कहीं भी अच्छे उपदेश और उपदेशक और कहीं नहीं हैं। बात सौ आने सही है। अब उपदेश भी ऐसे-ऐसे हैं कि जरूरी नहीं कि वो हर किसी के जीवन में काम आयें। यदि इन उपदेशको को सुनें तो उन्हें समझने के लिए भी उपदेश लेने पड़ते हैं। यहां कुछ उपदेशों की बानगी देखिये-

धर्म गुरू (प्रवचन करते बाबा) कहते हैं बच्चा दुनिया के बखेड़ों में मत पड़ो। दुनिया बहुत लुटेरी है। जो कुछ कमाओ भगवान को अर्पण करो। मुझे कुछ नहीं चाहिए लेकिन आश्रम में दान-धर्म हो जाये तो आने वाली पीढ़ी को अर्धम से बचाया जा सकेगा।

पादरी साहब उपदेश देते हैं-प्रभु ईशा की सरन गहो, वो तुम्हारे पाप की गठरी को सिर उठाये सूली पर चढ़ गया था। न कुछ दान करो, न तपस्या की ज़रूरत है और न ही व्रत की आवश्यकता है, जमकर शराब पियो और प्रभु ईशा पर ईमान लाओ। बस। सब ठीक होगा।

आरएसएस और हिन्दू धर्म के आधुनिक विचारक उपदेश देते हैं-बाप-दादा की लीक पीटते जाओ। यही सम्पूर्ण वेद-शास्त्र का निचोड़ है। संस्कृति और सभ्यता को समझो। धर्म पर चलो। स्त्रियों को घर पर रहकर पति की सेवा और सत्कार में मन लगाना चाहिए। पाश्चात्य देशों ने हिंदू धर्म का बेड़ा गर्क कर दिया है। इसलिए उनका बताये रास्तों पर न चलकर प्राचीन धर्मशास्त्रों को पढ़ो और उन पर अमल करो।

यार-दोस्तों के उपदेश कुछ ऐसे होते हैं-तुम भी यार क्या हो? बस काम-काम और काम! कभी हमारे साथ चलो। खाओ-पियो बेटा। कोई अमर नहीं है। सब यहीं का यहीं रह जायेगा। फिर पीछे बोलोगे यार सारा जीवन व्यर्थ गया। इसलिए अभी से मजे करो। भाड़ में जाय दुनिया।

ऑफिस में बॉस समझाते हैं-गीता पढ़ो। उसमें लिखा है कर्म किये जा फल की इच्छा करना मनुष्य का काम नहीं। यदि कर्म करोगे तो फल तो कभी न कभी मिलेगा ही। ऑफिस के आर्थिक और प्रशासनिक और आर्थिक विशेषज्ञ समझाते हैं क्या फर्क पड़ता है तुम स्टॉफ रहो या कंस्लटेंट तनख्वाह मिलनी चाहिए और वो तुम्हे मिलेगी। छुट्टी और पीएफ का क्या करोगे वो सब को मोह-माया है बच्चा।

मां-बाप समझाते हैं-बेटा बहू से कहो कभी-कभी गांव भी आया करे। क्या यह उसका घर नहीं? हमारा भी मन करता है कि हम बेटा बहू साथ-साथ घर आयें तो अच्छा लगता है। 80 साल की बुढ़िया (दादी मां) समझाती है-बेटा अब तुम सयाने हो गये हो। घर-बार की फिक्र करो। ऐसी चाल चलो जिसमें जग-हंसाई ना हो।

घरवाली समझाती है- महीने में जो भी कमाते हो, भाई-बहन को खिलाने-पिलाने और मां-बाप को सौंप देते हो। यदि उसी धन को जमा करते रहो तो मैं सिर से पैर तक सोने के गहनों से लद जाऊँ। तुम्हें क्या पता नहीं बाप-बड़ा ना भइया, सबसे बड़ा रूपइया।

रास्ते पर चलता हुआ भिखारी समझाता है-साहब अब 1 रूपये में क्या मिलता है। कम से कम 5 रूपये मिलने चाहिए। अब आप ही बतायें आजकल 1 रूपये में क्या मिलता है।

बात यह है कि इस बारे में जितना लिखा जाये कम ही है। अब तो आपलोग भी समझ गये होंगे कि यह भी लिखकर उपदेश ही दे रहा है। इसलिए मैं उपदेश न देकर उपदेशों को सुनना पसंद करूंगा।

पीकर मदहोशी के चलते सूझी उनको समाजसेवा

पीकर मदहोशी के चलते सूझी उनको समाजसेवा
सभ्य सभी को कर देंगे सौगंध उन्हें तेरी देवा

तू राम है वो हैं रामबीर, कलयुग की सेना कहलाती
वैसे भी अमन है जहाँ-तहां, है कहर वंही पर बरसाती

तूने सीता को त्यागा था एक आम पुरूष के कहने पर
वो उसी रह पर चलते हैं कुछ नेताओं के कहने पर

जिस तरह आपके लव कुश थे लड़की का कोई नाम नही
ये लोग भी वही सोचतें हैं महिला का कोई काम नही

ये पूजा करते देवी की जो मन्दिर में बैठी होती
उस महिला पर ये जुल्म करे जो घर - घर कम होती रहती

संस्कृति सभ्यता संस्कार उनके ये अस्त्र कहते हैं
उन अश्त्रो-शस्त्रों को लेकर महिला पर जुल्म वो ढाते हैं

ख़ुद जींस पैंट में घूम रहे सभ्यता का पाठ पढायेंगे
ख़ुद फिल्मी गीत गा रहे हैं औरों को भजन सुनायेंगे

'शिशु' कहें वो वीर नही कायर जो स्त्री पर अत्याचार करें
यदि वीर कहाते अपने को शरहद पर जाकर वार करें।

Monday, January 26, 2009

बदलते रिश्ते और बदलती परिभाषाएं

बद्ज़ातों की इस दुनिया में इंसानों की औक़ात कहां।
पहले जो रिश्ते बनते थे, अब उनमें वैसी बात कहां।।


पहले मम्मी थीं माता जी अब बापू डैडी कहलाते।
आंटी और अंकल जो अब हैं चाचा-चाची थे कहलाते।।


पहले का चंदामामा अब बच्चों के काम न आयेगा।
वैज्ञानिक करते हैं रिसर्च, रहने के काम में आयेगा।।


पहले थे केवल ही गरीब, अब परिभाषा उनकी बदली।
गांवों में अब कुछ ही गरीब, शहरों में दिखते हैं असली।।


रूपये की हालत अब पतली, तब पतली दाल हुआ करती।
अब उस रूपये में मिलता क्या? जिसमें तब दाल मिला करती।।


पहले था प्यार इशारों में, जो पकड़े गये तो हंगामा।
अब होता खुल्लम-खुल्ला है, ना होता कोई हंगामा।।


पहले की चिट्ठी प्यारी थी, उसमें था गहरा प्यार छुपा।
यदि प्रेम पत्र होता कोई पढ़ता हर कोई छुपा-छुपा।।


अब मेल का नया ज़माना है, चैटिंग करते खुल्लम-खुल्ला,
जीमेल का नया जमाना है, एसएमएस करे खुल्लम-खुल्ला।।


पहले तो गांव की गोरी को शहरों के लड़के प्यार करें।
अब शहरी लड़की को देखो? गांवों के लड़के प्यार करें।।


पहले तो 'शिशु' अकेला था, तब लिखने की हसरते नहीं।।
अब लिखने का मन करता है तो देखो उस पर समय नहीं।।

Friday, January 23, 2009

छूट! डिस्काउंट के नाम पर लूट।

छूट!
डिस्काउंट के नाम पर लूट।


दम!
ताक़तवर हैं हम।


ग़म!
आंख हुई नम।


धूप!
बदले लड़की का रंगरूप।


निशानी
बाद में याद दिलाये, बीती हुई कहानी।


नेता!
हरदम लेता। कभी नहीं कुछ देता।


सरकारी चपरासी!
अफ़सर से ज्यादा लेता घूस में राशि ।

Thursday, January 22, 2009

अश्रु बहे जो नयनों से, वो मेरे नहीं अकेले थे

अश्रु बहे जो नयनों से,
वो मेरे नहीं अकेले थे।
प्रिय भी उन दुख में शामिल थे,
जो कष्ट दिलों ने झेले थे।।


अधरों पर थे शब्द अधूरे,
जब हम बिछड़ रहे थे।
नहीं भूलना प्रियतम मुझको,
दिल दोनों के बोल रहे थे।।


व्यथा हृदय में ऐसी थी कुछ,
प्रियतम अब आयेंगे कब तक।
ये सोच के मन घबराता था,
कहीं प्राण निकल ना जाये तबतक।।


क्या प्रीति की रीति यही होती,
कि मिलन के बाद जुदाई हो।
जब मिले प्रिया-प्रीतम दोनों,
ऐसी बेला क्यों आयी हो।।


यह सोच रही थी मन ही मन,
आंशू की धारा बह निकली।
प्रिय चले गये एक पल ही में,
मैं खड़ी रही जैसे पगली।।


घर पहुंची कैसे द्वार खुला,
कुछ मालून नहीं पड़ा मुझको।
मैं बैठ गयी सिर टिका पलंग,
फिर याद किया दिल ने उनको।।


यादें जीवन का हिस्सा हैं,
उनको कोई बिसराये क्यों।
बोले थे प्रिय आकर एकदम,
वो कैसे यहां छिपाऊ क्यों।।


जिस तरह मिलन में प्यार बड़ा,
उस तरह जुदाई ना होती।
लेकिन वो वक्त जुदाई का,
उस प्यार को और बढ़ा देती।।


कहते हैं लोग मिले हरदम,
दूरी मिट जाये एकपल में।
लेकिन क्या सत्य ये सम्भव है,
खुशियाँ आयेगी हरपल में।।


उन प्यार भरी इन यादों से,
मुस्कान दौड़ गयी अधरों पर।
फिर मिलेंगें जल्दी हम दोनों,
खुशियों के अच्छे मौके पर।।